30 साल बाद फिर से मिला दुर्लभ प्रजाति का चांदी का हिरण!

आगे से चूहे जैसे दिखने वाले इस हिरण के पीठ पर चांदी जैसा रंग होता है, इसलिए इसे सिल्वर-बैकेड चेवरोटाइन या माउस हिरण कहा जाता है, इससे पहले इसे 1990 में देखा गया था
Source : Nature Ecology & Evolution
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विलुप्त होने की कगार पर पहुंचे छोटे हिरण जैसे जानवर की एक बहुत ही दुर्लभ प्रजाति को लगभग 30 वर्षों में पहली बार वियतनाम के उत्तर पश्चिमी जंगल में देखा गया है। 

नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, इस दुर्लभ प्रजाति के जानवर को सिल्वर-बैकेड चेवरोटाइन या माउस हिरण के रूप में जाना जाता है, जिसे आखिरी बार 1990 में देखा गया था। इसे भारत में मायावी हिरण कहा जाता है।

ट्रागुलस वर्सीकोलर नामक प्रजाति का वर्णन पहली बार 1910 में हुआ था। यह हो ची मिन्ह सिटी से लगभग 450 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में न्हा ट्रांग के पास पाए गए कई जानवरों में शामिल था। प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ द्वारा बनाए गए खतरे की प्रजातियों की सूची में सिल्वर-बैकेड चेवरोटाइन (ट्रागुलस वर्सीकोलर) को 'रेड लिस्ट' अथवा विलुप्त होने वाली श्रेणी में रखा गया है। 

सिल्वर-बैकेड चेवरोटाइन की 1990 के बाद से कोई पुष्टि न होने के कारण विशेषज्ञों ने मान लिया था कि यह प्रजाति अवैध शिकार किए जाने से विलुप्त हो गई है।

ग्लोबल वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन के साथ काम करने वाले और लाइबनिट्स इंस्टीट्यूट फ़ॉर जू एंड वाइल्ड लाइफ रिसर्च में पीएचडी के छात्र वियतनामी जीव विज्ञानी एन नगुयेन का मानना था कि सिल्वर-बैकेड चेवरोटाइन अभी भी कहीं न कहीं मौजूद है।

इसके लिए विशेषज्ञों को स्थानीय ग्रामीणों के साथ उस जगह पर ले गया, जहां माउस डियर को देखा गया था। इन्हें कैमरे में कैद करने के लिए जंगल में 30 से अधिक मोशन-एक्टिवेटिड कैमरे लगाए गए थे। नगुयेन ने कहा कि जब हमने कैमरा ट्रैप की जांच की तो हम चौंक गए, हमने सिल्वर फ्लैक्स के साथ सिल्वर-बैकेड चेवरोटाइन की तस्वीरें देखीं।

विलुप्त होती प्रजातियों के लिए दो बड़े खतरे हैं, पहला विकास के नाम पर जंगलों को काटे जाने से इनका निवास स्थान बदल रहा है। दूसरा, अवैध शिकार होने की आशंका है। दक्षिण पूर्व एशिया खासकर वियतनाम में अवैध शिकार व्यापक रूप से फैला हुआ है, निश्चित रूप से अवैध शिकार के दबाव के कारण सिल्वर-बैकेड चेवरोटाइन की आबादी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है।

टिलकर ने एक ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से चेतावनी दी है कि क्योंकि हमने इस प्रजाति को पुन: आसानी से पाया है, इसका मतलब यह नहीं है कि ये खतरे से बाहर हैं। दक्षिण पूर्व एशिया में वनों पर बढ़ती आबादी और विकास का भारी दबाव है, इसलिए हमें इनका संरक्षण करना होगा।

मई 2019 में, यूनाइटेड नेशंस बॉडी ऑफ़ बायोडायवर्सिटी के विशेषज्ञों के समूह, जिसे आईपीबीईएस के रूप में जाना जाता है, ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि मानवों के हस्तक्षेप के कारण ग्रह पर से एक लाख से अधिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है।

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