मूंगा चट्टानों के लिए बेहद लाभकारी हैं समुद्री पक्षी, जानें कैसे

समुद्री पक्षी का मल बारिश से बहकर पास की मूंगा चट्टानों में पहुंचता है, जिससे उन्हें महत्वपूर्ण पोषक तत्व मिलते हैं
फोटो: आईस्टॉक
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मूंगे की चट्टानें विभिन्न प्रकार की समुद्री प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण आवास हैं, और इसलिए उन्हें पनपने के लिए सही "पोषक तत्वों" की आवश्यकता होती है, लेकिन जहां स्थलीय उद्यान मानव माली और उर्वरकों पर निर्भर हैं, वहीं मूंगा चट्टानों को पोषण का एक आश्चर्यजनक स्रोत मिला है - समुद्री पक्षी!

पीढ़ियों से हमने समुद्री पक्षियों को डुबकी लगाते और गोता लगाते हुए अद्भुत चपलता के साथ मछलियां पकड़ते देखा है, लेकिन हाल ही में डॉ. कैसेंड्रा बेनक्विट (लैंकेस्टर विश्वविद्यालय, ब्रिटेन) की टीम द्वारा शोध पत्रिका 'साइंस एडवांसेज' में प्रकाशित एक अभूतपूर्व अध्ययन से उनकी कहानी के एक छिपे हुए पक्ष का पता चलता है। 

समुद्री पक्षी घनी बस्तियों में घोंसला बनाते हैं, कई बार छोटे समुद्री द्वीपों पर प्रवाल भित्तियों के पास भी बनाते हैं। ऐसी स्थितियों में, उनका मल बारिश से सतही जल प्रवाह के माध्यम से पास की मूंगा चट्टानों में बहता है, जिससे उन्हें महत्वपूर्ण पोषक तत्व मिलते हैं और जलवायु परिवर्तन जैसे बढ़ते खतरों के खिलाफ उनकी तन्यकता बढ़ जाती है। 

इन समुद्री पक्षियों के घोंसले वाले समुद्री/तटीय आवासों को चूहों से भी खतरा है - जो हमेशा समुद्री द्वीपों पर मानवजनित हस्तक्षेप के कारण आते हैं - जो अंडों और चूजों का शिकार करते हैं। 

हिंद महासागर में चागोस द्वीपसमूह के समुद्री संरक्षित क्षेत्र के भीतर किए गए शोध में दो महत्वपूर्ण प्रश्नों पर प्रकाश डाला गया: 

  1. क्या समुद्री पक्षी मूंगे के विकास और स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं? 
  2. क्या वे समुद्री लू जैसे पर्यावरणीय झटकों के विरुद्ध चट्टानों को मजबूत कर सकते हैं? 

उनके उत्तर जितने आकर्षक थे उतने ही अप्रत्याशित भी। समुद्री पक्षी बाहुल्य द्वीपों के पास स्थित मूंगे (जहां चूहे अनुपस्थित थे) कम समुद्री पक्षियों और चूहों की उपस्थिति वाले द्वीपों के पास स्थित मूंगों की तुलना में दोगुनी तेजी से बढ़े। 

यह विकास वृद्धि केवल एक अस्थायी घटना नहीं थी। 2015-16 में आई भीषण समुद्री लू के कारण बड़े पैमाने पर मूंगा विरंजन (अंग्रेजी में “कोरल ब्लीचिंग”) हुआ, इसके बाद समुद्री पक्षी बाहुल्य आश्रयों के करीब की चट्टानें तेजी से बढ़ीं, जिन्होंने अपने जीवंत रंग को पुनः प्राप्त किया और विविध समुद्री जीवन को आकर्षित किया। 

इसका रहस्य "पोषक पाइपलाइनों" में छिपा है। समुद्री पक्षी मछलियों का भोजन करने बाद अपने द्वीप के घोंसलों में लौट आते हैं। इन घोंसले वाले द्वीपों में और उसके आसपास वे नाइट्रोजन, भास्वर (फास्फोरस) और अन्य आवश्यक तत्वों से भरपूर मल छोड़ती हैं। 

बारिश इन प्राकृतिक उर्वरकों को समुद्र में बहा देती है, जिससे आस-पास की मूंगा चट्टानों के लिए पोषक तत्वों की बौछार हो जाती है। बेनक्विट की टीम ने मूंगा ऊतकों का विश्लेषण करके, स्वस्थ चट्टानों में समुद्री पक्षी-व्युत्पन्न पोषक तत्वों के उच्च स्तर का पता लगाकर इस लिंक की पुष्टि की। 

लेकिन यह कहानी चुनौतियों से रहित नहीं है। चूहों जैसे अप्राकृतिक शिकारी समुद्री पक्षियों के अंडे और चूजों को खा जाते हैं और पोषक तत्वों के प्रवाह को बाधित करते हैं। अध्ययन बहुआयामी संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है: 

  • चूहों का उन्मूलन: इन अप्राकृतिक शिकारियों को खत्म करने से मौजूदा समुद्री पक्षी बस्ती को पनपने की परिस्थिति मिलती है, जिससे मूंगा चट्टानों के लिए पोषक तत्वों की आपूर्ति की संभावनाएँ बढ़ जाती है। 
  • आवास बहाली: द्वीपों पर गैर-प्राकृतिक नारियल के बागानों को देसी वनस्पति से प्रतिस्थापित कर समुद्री पक्षियों के लिए उपयुक्त आवास का निर्माण होता है। 
  • समुद्री पक्षियों का स्थानांतरण: कुछ मामलों में, सावधानीपूर्वक नियोजित पुनरुत्पादन कार्यक्रम समुद्री पक्षियों की आबादी को उपयुक्त द्वीपों में पुनर्स्थापित कर सकते हैं। 

अपनी व्यापक तटरेखा और विविध प्रवाल पारिस्थितिकी तंत्र के साथ, यह शोध भारत के लिए भी आशाजनक है। हमारी बहुमूल्य मूंगा चट्टानों की सुरक्षा के लिए समुद्री पक्षियों की आबादी की रक्षा करना एक लागत-प्रभावी, प्रकृति-आधारित समाधान हो सकता है। समुद्र पक्षी न केवल मूंगा चट्टानों के लिए, बल्कि पूरे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए प्रहरी के रूप में कार्य करते हैं, जो हमारे साथ जुड़ा हुआ जीवन का जाल है। 

लेखक रोहित आर.एस. झा एक प्रशिक्षित वन्यजीव जीवविज्ञानी हैं और वर्तमान में भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून में एक वरिष्ठ शोधकर्ता के रूप में कार्यरत हैं

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