वैज्ञानिकों ने अरुणाचल और सिक्किम में गुबरैला की दो नई प्रजातियों की खोज की

इस वंश में नई प्रजाति का वर्णन 127 साल बाद किया गया है, वे वंश मेलोलोन्था से संबंधित हैं, जिन्हें स्कारैबाइडे परिवार के तहत वर्गीकृत किया गया है।
फोटो साभार : जूटाक्सा पत्रिका
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वैज्ञानिकों ने सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में गुबरैला की दो नई प्रजातियों की खोज की है। जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के शोधकर्ताओं को नई प्रजाति तब मिली जब वे नमूनों की जांच कर रहे थे। 1992 से 2015 के नमूनों की जांच के बाद इन्हें नई प्रजातियों में शामिल किया गया। यह अध्ययन देवांशु गुप्ता, डेनिस कीथ, देबिका भुनिया, प्रियंका दास और कैलाश चंद्र द्वारा किया गया है।

गुबरैलों पर काम कर रहे वैज्ञानिक देवांशु गुप्ता ने बताया कि, हम कोलकाता के भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के तहत राष्ट्रीय प्राणी संग्रह पर काम कर रहे थे, जब हमें गुबरैले के दो प्रजातियों के नमूने मिले, जो उनकी संरचना और उपस्थिति में अनोखे थे और जांच के बाद उन्हें जीव विज्ञान के लिए नया माना गया।

वैज्ञानिकों ने प्रजातियों के इलाकों के आधार पर इन नई प्रजातियों को मेलोलोन्था अरुणाचलेंसिस और मेलोलोन्था लाचुगेंसिस नाम दिया है।

गुप्ता ने कहा कि इस वंश में नई प्रजाति का वर्णन 127 साल बाद किया गया है। वे वंश मेलोलोन्था से संबंधित हैं, जिन्हें स्कारैबाइडे परिवार के तहत वर्गीकृत किया गया है।

इस वंश में वयस्क 25 से 30 मिमी लंबे होते हैं और मुख्य रूप से भारत में हिमालयी क्षेत्र में फसलों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं।

मेलोलोन्था अरुणाचलेंसिस के नर नमूने 2015 में अरुणाचल प्रदेश में पंगे घाटी से एकत्र किए गए थे, जबकि मेलोलोन्था लाचुंगेंसिस के नर 1992 में उत्तरी सिक्किम के लाचुंग वन से एकत्र किए गए थे। दोनों नई प्रजातियों की मादाएं अभी तक जीव विज्ञान के लिए अज्ञात हैं। 

इन नई प्रजातियों का निकटतम रिश्तेदार लाओस और वियतनाम में पाया जाता है, जिसका नाम एम. फूपनेंसिस है, जिसका वर्णन 2008 में किया गया था।

शोधकर्ताओं ने बताया कि, एम. अरुणाचलेंसिस और एम. लाचुंगेंसिस के साथ एम. फूपेनेंसिस का अपना एंटेना क्लब बाहरी रूप से मजबूती से मुड़ा हुआ होता  है, आधार खंडों की लंबाई के रूप में 3.5 गुना, मेटाटार्सोमेरेस एक और दो, दोनों की लंबाई में बाहरी मेटाटिबियल समान होते हैं।

पाइजिडियम का शिर वाला भाग संकुचित नहीं होता है, कम या ज्यादा गोल होता है। दोनों नई प्रजातियां अपनी संरचना और आकार को लेकर अनोखे हैं।

डॉ. गुप्ता ने बताया कि जीनस मेलोलोन्था में 63 प्रजातियां शामिल हैं, जिनमें से 50 से अधिक मुख्य रूप से पेलारक्टिक क्षेत्र में फैली हुई हैं। इन नई खोजों के बाद, भारत से इस वंश की कुल प्रजातियों की संख्या अब 12 हो गई है और अधिकांश प्रजातियां हिमालयी क्षेत्र में पाई जाती हैं।

वयस्क मेलोलोन्था गुबरैला अप्रैल के अंत या मई की शुरुआत में निकलते हैं और लगभग पांच से सात सप्ताह तक जीवित रह सकते हैं। मादाएं 60-80 अंडे देती हैं और 10 से 20 सेमी. गहराई में जमीन में गाड़ देती हैं। लार्वा चार से छह सप्ताह में निकलते हैं, मुख्य रूप से पौधों की जड़ों, जैसे आलू की जड़ों को खाते हैं।

उन्होंने कहा कि हिमालय में पाई जाने वाली 30 हजार जीव प्रजातियों में से एक तिहाई गुबरैला प्रजातियां हैं। यह शोध जूटाक्सा पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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