दुनिया भर में एलियम वंश की लगभग 1,100 प्रजातियां हैं। जिनमें प्याज, लहसुन, स्कैलियन, छोटे प्याज की तरह का एक पौधा या शलाट और चाइव जैसे कई प्रमुख खाद्य पदार्थ शामिल हैं। भले ही सब्जियों का यह समूह सदियों से पारिवारिक रात्रिभोज में दिखाई देता रहा हो, लेकिन भारत के शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक नए पौधे के बारे में पता लगाने में एक लंबा रास्ता तय किया है।
शोध के मुताबिक भारतीय हिमालयी क्षेत्र में जैव विविधता के दो अलग-अलग केंद्र हैं, पश्चिमी हिमालय जहां की कुल विविधता का 85 प्रतिशत से अधिक है वहीं दूसरी ओर पूर्वी हिमालय जो 6 प्रतिशत पर सीमित है जोकि अल्पाइन-उप समशीतोष्ण क्षेत्र को कवर करता है।
नई दिल्ली के नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज (आईसीएआर) की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ.अंजुला पांडे ने सहयोगी वैज्ञानिकों के साथ मिलकर यह शोध किया। इसमें माधव राय, पवन कुमार मालव और एस राजकुमार शामिल है जो एलियम वंश के व्यवस्थित वनस्पति विज्ञान पर काम कर रहे थे। इन वैज्ञानिकों को भारतीय क्षेत्र में एक नई प्रजाति के पौधे के बारे में पता चला है।
एलियम नेगियनम नामक पौधे की खोज उत्तराखंड में चमोली जिले की नीति घाटी के मलारी गांव के भारत-तिब्बत सीमा क्षेत्र में की गई है। यह पौधा समुद्र तल से 3000 से 4800 मीटर की ऊंचाई पर उगता है। यह खुले घास के मैदानों, नदियों के किनारे रेतीली मिट्टी और अल्पाइन घास के मैदानों जिन्हें स्थानीय रूप से "बुग्याल" के रूप में जाना जाता है। साथ यह जहां बर्फ से ढके मैदान होते हैं यह उन जगहों पर पाया जा सकता है।
बर्फ के पिघलने के बाद वास्तव में इसके बीजों को पानी अधिक अनुकूल क्षेत्रों में ले जाने में मदद करता है। यह बहुत ही कम जगहों पर पाया गया है, नई प्रजाति पश्चिमी हिमालय के क्षेत्र तक ही सीमित है और अभी तक दुनिया में कहीं और से इसके पाए जाने की जानकारी नहीं है। एलियम नेगियनम का वैज्ञानिक नाम भारत के प्रख्यात खोजकर्ता और एलियम संग्रहकर्ता स्वर्गीय डॉ. कुलदीप सिंह नेगी के सम्मान में रखा गया है।
हालांकि यह विज्ञान के लिए नई प्रजाति है पर स्थानीय लोग इसका लंबे समय से घरेलू खेती कर रहे हैं। इस समूह पर काम करते हुए, शोध दल ने फ्रान, जंबू, सकुआ, सुंगडुंग और कचो के बारे में सुना, जोकि प्याज को मसाले के रूप में उपयोग करने के लिए जाना जाने वाले अलग-अलग स्थानीय नाम हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, नीति घाटी के लोग इसे बहुत अधिक पसंद करते हैं, यहां तक कि स्थानीय बाजार में इसकी मांग बहुत अधिक है तथा इसे सबसे अच्छा माना जाता है।
अब तक इसके बारे में केवल पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में ही जाना जाता है, एलियम नेगियनम पर इसका स्वाद लेने वाले लोगों का दबाव पड़ सकता है। शोधकर्ताओं को डर है कि सीजनिंग के लिए इसके पत्तों और कंद की अंधाधुंध कटाई इसकी जंगली आबादी के लिए खतरा पैदा कर सकती है। यह शोध फोटोकीयस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।