बैठे ठाले: शहर में बाघ

ईंट-पत्थर और लाठियों से लहूलुहान वह अपनी उखड़ती हुई सांसों से बस इतना कह पाया, “यह तुम्हारा शहर नहीं, मेरा जंगल है…!”
बैठे ठाले: शहर में बाघ
सोरित / सीएसई
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उसने अभी कुछ देर पहले ही एक हिरण का शिकार किया था। अच्छे भोजन के बाद एक ऊंचे दरख्त पर सुस्ताना उसे अच्छा लगता है पर आज जाने क्यों उसे बस यूं ही चलते जाने का मन किया। काफी देर से वह धीरे-धीरे अलमस्त सा चलता ही चला जा रहा था।

उसे अपने पूरे इलाके का चप्पा-चप्पा पता था। जंगल के एक छोर से चलता हुआ वह एक सड़क के किनारे आ गया। उसके सामने कुछ खुली गाड़ियां खड़ी थीं जिन पर कुछ इंसान दम साधे उसे देख रहे थे। उसने एक बार धीरे से इंसानों की भीड़ की ओर देखा और फिर रास्ते के दूसरी ओर के घने जंगलों में उतर गया। वह यह सब चीजें बचपन से ही देखता आ रहा था। बचपन में अक्सर उसकी मां उसके भाई-बहनों को लेकर जंगल के एक इलाके से दूसरे इलाके में ले जाती थी। एक दिन उसकी मां मर गई। उसके बहन-भाइयों में कुछ शिकारियों के लालच की भेंट चढ़ गए। अब वह अकेला रह गया था जिससे कभी-कभी उसे अकेलापन भी महसूस होता। चलते हुए अचानक वह रुक गया। उसे एक बहुत हल्की पर जानी पहचानी सी गंध मिली। यह तो उसके भाई-बहनों और मां की गंध थी।

उसे याद आया कि कभी यहां बहुत घना जंगल होता था और उसकी मां अक्सर यहीं ठहरती थी। पर कल जहां घना जंगल था अब वहां पक्का हाइवे बन गया था। उसे इस डामर की सड़क और पेट्रोल-डीजल की बदबू के बीच भी अपने भाई-बहनों और मां की गंध मिल रही थी। तभी उसके सामने से तेज रोशनी और आवाज करता हुआ बड़ा सा ट्रक तेज रफ्तार से गुजर गया। वह थोड़े से फासले से बच गया वरना उस तेज रफ्तार ट्रक से टकरा ही जाता। उसे सड़क पर कहीं किसी पेड़ की गंध मिलती तो कहीं किसी झरने की।

वह उन पेड़ों, झरनों को खोजता हुआ सड़क पर दौड़ने लगा, पर अब वहां न कोई झरना बचा था, न ही कोई पेड़। जितनी दूर नजर जाए तो बस बहु-मंजिला इमारतों की कतारें थीं। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि जंगल, उसके पेड़, जंगल के दूसरे जानवर आखिर कहां चले गए? एक समय उसने खुद को इन्हीं बिल्डिंग-शॉपिंग मॉल और मकानों की भीड़ में घिरा हुआ पाया। अचानक उसे अपने पीछे लोगों का शोर सुनाई पड़ा, “मारो! मारो! हमारे शहर में बाघ आ गया है! इसे मार डालो! यह बचकर जाने न पाए!”

शोर धीरे-धीरे उसके पास आता ही जा रहा था। अचानक एक डर और घबराहट ने उसे बुरी तरह से जकड़ लिया। वह अपने जंगल में लौटना चाह रहा था। एक बार उसे लगा कि वह तो जंगल में ही है क्योंकि अभी कुछ दिनों पहले तक यहां एक बेहद घना हराभरा जंगल हुआ करता था।

“मारो! मारो” का शोर उसके एकदम पास आ गया।

उसने पीछे मुड़कर शोर की ओर देखा और चीखकर कहा, “मैं तुम्हारे शहर में नहीं आया। तुम्हारा शहर मेरे जंगल में आ गया है!”

इंसान चिल्लाए, “देखो रे! कैसे गुर्रा रहा है! मार डालो इसे!”

इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, उस पर डंडे पड़ने लगे और ईंट–पत्थरों की बारिश शुरू हो गई। एक ईंट उसके सिर पर आकर लगी और उसका सिर फट गया। वह दर्द से चीख उठा। जंगल में उसने अब तक बड़े से बड़े जानवरों का शिकार किया था, उफनती नदी में कूद कर विशाल घड़ियालों का शिकार किया था पर शहर में आज वह एकदम असहाय हो गया था। वह आज इंसानों से घिरा हुआ था जो उसे जान से मारने पर आमादा थे, जबकि उसने तो किसी पर हमला भी नहीं किया था।

ईंट-पत्थर और लाठियों से लहूलुहान वह अपनी उखड़ती हुई सांसों से बस इतना कह पाया, “यह तुम्हारा शहर नहीं बल्कि मेरा जंगल है…।”

दूसरे दिन शहर के हर अखबार में एक मरे हुए बाघ की तस्वीर, “शहर में खूंखार बाघ का हमला” हेडिंग के साथ छपी।

कहते हैं उस रात शहर के लोगों को चैन की नींद आई।

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