बैठे ठाले: एक लोक कथा

राजा नकटा है और दुष्ट सौदागर के साथ जंगल को काटने वाला है
सोरित
सोरित
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“बहुत दिन पहले की बात है। एक था राजा।” हसदेव के जंगलों के बीच बसे एक छोटे से गांव में झोपड़ी के बाहर बिछी खटिया पर हुक्का गुड़गुड़ाता बूढ़ा सुगना मकरम अपने नन्हे पोते-पोतियों को कहानी सुना रहा था। शाम ढल चुकी थी। चारों ओर से टिड्डियों का शोर हो रहा था। सुगना ने कहानी जारी रखी, “वह बड़ा अत्याचारी और लालची था। उसके राज में जनता का बुरा हाल था। जनता भूख और गरीबी से परेशान थी, पर राजा को उससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह हर रोज नए-नए कपड़े पहनकर बड़े से शीशे के सामने जाता और खूब इतराता। मगर उसकी एक बहुत बड़ी कमजोरी थी। उसकी नाक नकली था और इस बात को लोगों से छुपाकर रखता था। एक बार उसके राज में दुष्ट सौदागर आया और राजा को ढेर सारा सोना-चांदी-रुपया दिया।”

इतने सारे पैसों-सोना-चांदी को देखकर नकटे राजा की आंखें चमकने लगीं। उसने उस सौदागर से कहा, “आप तो मेरे मालिक हैं। आप जो कहेंगे मैं वही करूंगा!” दुष्ट सौदागर ने कहा, “तुम्हारे राज्य के जंगलों के नीचे बहुत सारा कोयला और मणि-माणिक्य दबा हुआ है। मुझे वह सारा चाहिए। लालची नकटा राजा बोला, “हुजूर! आज से हमारे सारे जंगल आपके हुए। मैं कल ही पूरे राज्य के लकड़हारों को बुलाता हूं। वह लोग देखते ही देखते जंगल के सारे पेड़ काट डालेंगे। आप बस मुझे इसी तरह सोना-चांदी देते रहिए। मुझे बहुत सारा सोना-चांदी चाहिए और मुझे देश-विदेश घूमने का भी बड़ा शौक है।”

दुष्ट सौदागर ने कहा, “वह मुझ पर छोड़ दीजिए बस आप अपनी जनता को मना लीजिए कि वह जंगलों के काटे जाने का विरोध न करे।” अगले दिन राजा ने दरबार में कहा, “हमारे राज्य में बिजली का संकट है। इसकी वजह से हमारे राज्य का विकास नहीं हो पा रहा है। हमारे जंगलों के नीचे बहुत सा कोयला दबा है जिसे हम निकालकर ढेर सारी बिजली बनाएंगे। आपको बिजली चाहिए या पेड़?”

इतना कहकर बूढ़ा सुगना हुक्का गुड़गुड़ाने के लिए कहानी पर ब्रेक लगाने ही वाला था कि पास बैठा नन्हा बिस्कू बोल उठा, “हमको जंगल चाहिए, बिजली तो पैसे देकर भी खरीद सकते हैं लेकिन प्राकृतिक संपदा पैसा देकर नहीं खरीद सकते।” इतना सुनना था कि बूढ़े सुगना के हाथों से हुक्का फिसल कर गिरते–गिरते बचा। वह बोल उठा, “शाबाश बिस्कू!” “कहानी में आगे क्या हुआ?” पास बैठे एक दूसरे बच्चे ने पूछा।” आगे बड़ी मजेदार बात हुई, बूढ़े सुगना ने हुक्के का दम मारते हुए कहा, “राजा और दुष्ट सौदागर जंगल को काटने की योजना बना रहे थे। साथ ही राजा अपने नाई से हजामत बनवा रहा था।

अचानक राजा की नाक खुलकर गिर गई। राजा ने जल्दी से अपनी टूटी नाक को वापस लगा लिया पर राज तो खुल चुका था। राजा ने नाई को धमकी दी कि अगर यह बात महल के बाहर लोगों को पता चली तो उसे मौत की सजा दी जाएगी। नाई ने यह बात किसी को न बताने की कसम खाई पर अगले दिन से उसका पेट फूलता गया। आखिर में नाई ने जंगल में एक गढ्ढा खोदा और गढ्ढे से कहा कि राजा नकटा है और दुष्ट सौदागर के साथ जंगल को काटने के फिराक में है।”

इतना कहकर उसने गढ्ढे को मिट्टी से ढंक दिया। कुछ दिन बाद वहां नन्हा सा पौधा उगा जो जल्द महोगनी का पेड़ बन गया। जब भी उसके पत्तों से ढंकी शाखों से हवा गुजरती तो आवाज आती, “राजा नकटा है और दुष्ट सौदागर के साथ जंगल को काटने वाला है।” कभी किसी पेड़ से होकर हवा गुजरती तो आवाज आती, “जल-जंगल-जमीन को बचाओ!” कभी आवाज आती, “ऐसा विकास किस काम का जो जीव जगत को नुकसान पहुंचाए।” कभी किसी पेड़ से गुजरती हवा से आवाज आती, “हमको पेड़ चाहिए, बात खतम!” जल्द ही हवाओं ने इस आवाज को दुनिया भर के जंगलों और लोगों में फैला दिया। एक दिन तेज हवाओं के झोंके ने दुष्ट सौदागर का पीछा किया। सौदागर मारे डर के वहां से भाग गया। उसके बाद लोगों ने राज्य से नकटे राजा को भी भगा दिया।

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