सांभर में पक्षियों की मौत: एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं पशुपालन और वन विभाग- रिपोर्ट

हाइकोर्ट में पेश की गई तथ्यात्मक रिपोर्ट में न्याय मित्र नितिन जैन ने लिखा है कि जिस तरह से अभी रेस्क्यू का काम चल रहा है, उस हिसाब से मृत पक्षियों को निकालने में एक-दो महीने और लग जाएंगे।
सांभर में पक्षियों की मौत: एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं पशुपालन और वन विभाग- रिपोर्ट
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माधव शर्मा

राजस्थान की सांभर झील में पक्षियों की मौत के बीच विभागीय लापरवाहियों के कई और सच सामने आए हैं। पक्षियों को बचाने की बजाय पशुपालन विभाग और वन विभाग अपनी जिम्मेदारी और भार एक-दूसरे पर डाल रहे हैं। दोनों विभागों के बीच सामंजस्य की बेहद कमी है। क्योंकि सांभर झील का एरिया दोनों विभागों से संबंधित नहीं है।

साथ ही यह भी खुलासा हुआ है कि 10 नवंबर को मीडिया में मामला आने से काफी पहले स्थानीय लोगों और पक्षी प्रेमियों ने सरकारी एजेंसियों को पक्षियों की मौत के बारे में बताया दिया था, लेकिन विभागों ने समय रहते कोई कदम नहीं उठाया।

मामले में 13 नवंबर को स्वतः प्रसंज्ञान लेते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने वकील वकील नितिन जैन को न्याय मित्र नियुक्त किया था। इन्होंने जैन ने 22 नवंबर को कोर्ट में अपनी तथ्यात्मक रिपोर्ट पेश की है। यह हकीकत इसी रिपोर्ट में सामने आई हैं। रिपोर्ट में न्याय मित्र जैन ने लिखा है कि जिस तरह से अभी रेस्क्यू का काम चल रहा है, उस हिसाब से मृत पक्षियों को बाहर निकालने में एक- दो महीने का वक्त और लग जाएगा। इस तरह की सुस्ती आपदा की स्थिति को और बड़ा कर सकती है।

10 पेज की इस रिपोर्ट में प्रशासन की बचाव कार्य और पक्षियों के बचाव कार्य से संबंधित कई खामियों को उजागर किया गया है। साथ ही कई सुझाव भी दिए हैं। रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय लोगों का कहना है कि झील में 20 हजार से ज्यादा पक्षियों की मौत हुई है।  झील के गहरे पानी वाला इलाके में अभी भी कई मृत पक्षी तैर रहे हैं।

रिपोर्ट में पक्षियों के रेस्क्यू करने पर भी सवाल उठाए गए हैं। इसके मुताबिक जिन पक्षियों को रेस्क्यू किया गया उन्हें तुरंत रेस्क्यू सेंटर नहीं ले जाया गया। घायल पक्षियों को एक खुले कार्डबॉक्स में कई घंटों तक रखा गया। झील के पास कोई अस्थाई रेस्क्यू सेंटर भी नहीं बनाया गया है। एक रेस्क्यू सेंटर है जो झील से करीब 15 किमी दूर है। यहां भी उपलब्ध साधन काफी नहीं हैं.

न्यायमित्र के अनुसार सांभर सॉल्ट लिमिटेड के अधिकारियों ने भी सरकारी एजेंसियों को सूचित करने में गंभीरता नहीं दिखाई जबकि इनके पास पूरी झील में जाने के लिए ट्रेन भी है।  कंपनी ने झील के कई हिस्से निजी नमक उत्पादकों को लीज पर दे रखे हैं। ये उत्पादक झील में जहरीला कचरा झील में डाल रहे हैं।

तथ्यात्मक रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया कि बचाव कार्य के लिए लोगों की कमी है।  अगर जल्द ही पक्षियों की लाशें नहीं हटाई गईं तो झील में मौजूद लाखों देशी-विदेशी पक्षी भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। लेकिन मृत पक्षियों को गहरे पानी से बाहर लाने के लिए सरकारी एजेंसियों के पास कोई सुविधा नहीं है।

हैरान करने वाली बात है कि सरकारी एजेंसियां हवा की दिशा बदलने का इंतजार कर रही हैं ताकि मृत पक्षी किनारे पर आ सकें और उन्हें इकठ्ठा किया जा सके।

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