हरिद्वार में श्यामपुर क्षेत्र में ट्रेन की टक्कर से दो हाथियों की मौत ने एक बार फिर हाथियों के सिकुड़ते कॉरीडोर और उनमें आने वाली बाधाओं को लेकर सवाल खड़े किए हैं। ये दोनों हाथी सिर्फ इसलिए मारे गए, क्योंकि इनके आने जाने के रास्ते पर नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी एनएचएआई सड़क चौड़ीकरण का कार्य कर रही है। एनएच-74 पर सड़क चौड़ी करने का कार्य चल रहा है। पिछले वर्ष इस योजना को मंजूरी दी गई थी। साथ ही ये भी कहा गया था कि चूंकि ये हाथियों के गुज़रने का रास्ता है इसलिए सडक चौड़ी करने से पहले यहां 290 मीटर का फ्लाई ओवर बनाया जाएगा। जिसके उपर से वाहन गुजर सकेंगे। और इसके नीचे हाथियों का अंडर पास हो जाएगा।
एनएचएआई ने फ्लाई ओवर बनाने के बारे में नहीं सोचा और सड़क चौड़ी करने का कार्य शुरू कर दिया। जिससे हाथियों की आवाजाही बाधित हो गई। हरिद्वार के डीएफओ आकाश वर्मा कहते हैं कि ये हाथी श्यामपुर के जंगलों से होकर, तिरछी पुलिया पर एनएच-74 को क्रॉस करते हुए नदी की तरफ आते हैं। बरसों से हाथियों का ये तय पारंपरिक रास्ता रहा है।
आकाश वर्मा बताते हैं कि हाथियों के आने का समय भी करीब-करीब तय रहता है। वे शाम को चार-पांच बजे के आसपास जंगल से बाहर आकर नदी में अपनी प्यास बुझाया करते थे। हाथियों को यहां मानवीय गतिविधियों का भी पता है। इसलिए वे सड़क किनारे खड़े होकर ट्रैफिक रुकने का इंतज़ार करते थे। तिरछी पुलिया पर सड़क को पार करते थे। वहां से निकलकर प्यास बुझाने के लिए गंगा नदी की ओर जाते थे। पानी पीने के बाद वापस जंगल में लौट जाते थे।
डीएफओ बताते हैं कि इन दिनों में हाथी गन्ने-गेहूं की फसल की तरफ भी आकर्षित होकर आया करते थे। यहां रहने वाले स्थानीय लोगों को भी हाथियों के मूवमेंट के बारे में अच्छी तरह पता है। इसलिए लोग भी हाथियों के इस व्यवहार से परीचित थे।
हाथियों की रोजमर्रा की ये ज़िंदगी तब प्रभावित हुई, जब पिछले वर्ष यहां एनएच-74 को चौड़ा करने के कार्य को मंजूरी दी गई। इसके साथ ही, यहां 290 मीटर का फ्लाईओवर बनाने को कहा गया। जो कि दो-तीन महीने में बनकर तैयार हो जाना था, जबकि सड़क चौड़ीकरण के कार्य में दो-तीन साल का समय लग जाता। डीएफओ आकाश वर्मा कहते हैं कि दो-तीन महीने हाथियों की आवाजाही को नियंत्रित करने की कोशिश की जा सकती थी। इसके बाद हाथी अंडर पास से गुज़रकर अपने तय रास्ते से आवाजाही शुरू कर देते। लेकिन फ्लाईओवर बना ही नहीं और सड़क का कार्य शुरू कर दिया गया।
हाथियों के कॉरीडोर में मानवीय गतिविधियां शुरू हो गईं। जेसीबी, बुल्डोजर, डंपर, लैंडक्रूजर, पावर मशीनें चलने लगीं। चौड़ी करने के लिए आसपास खुदाई की गई। मिट्टी काटकर भरा जाने लगा। झाड़ियों की कटाई की जाने लगी। इन डिस्टर्बेंस की वजह से हाथियों ने अपना रास्ता बदल दिया। वे रिहायशी इलाकों में जाने लगे। रेल की पटरी से गुजरने लगे।
आकाश वर्मा कहते हैं कि करीब तीस किलोमीटर के दायरे में हाथी कहीं से भी आवाजाही कर सकते हैं। इससे दुर्घटना की आशंका बनी रहेगी। यदि उनके पास रास्ता होता तो उनकी आवाजाही को नियंत्रित करने के बारे में सोचा जा सकता था। लेकिन तीस किलोमीटर के स्ट्रेच में हाथियों की आवाजाही को नियंत्रित करने के संसाधन वन विभाग के पास नहीं हैं।
आकाश वर्मा कहते हैं कि एनएचएआई के अधिकारियों से इस बारे में कई बार बात की गई। इस पर एनएचएआई का जवाब होता है कि अंडर पास बनाना उनके लिए बहुत महंगा है। इसके लिए उन्हें अनुमति लेनी होगी।
इसी अप्रैल महीने में सेंटर फॉर वाइल्ड लाइफ एंड इनवायरमेंटल लिटिगेशन की रिपोर्ट पर एनजीटी में इस मामले पर सुनवाई भी हुई। अधिवक्ता गौरव बंसल बताते हैं कि एनजीटी ने एनएचएआई को कहा है कि एक साल के भीतर जितना भी निर्माण कार्य कर सकते हैं, वो करें, इसके साथ ही वहां फ्लाईओवर बनाएं। जिस पर एनएचएआई के अधिकारियों ने सहमति जतायी है।
सीतापुर श्यामपुर में जिस जगह हादसा हुआ। वहां रेल की पटरी के दोनों तरफ आबादी है। एक तरफ लोगों के घर बने हैं। दूसरी ओर गुरुकुल विश्वविद्यालय का कैंपस है। जहां विद्यार्थी रहते हैं। उससे थोड़ा आगे रेलवे क्रॉसिंग है, बैरियर है, दुकानें हैं, बाज़ार हैं। ये जंगल का इलाका नहीं है। राजाजी नेशनल पार्क में जो रेलवे ट्रैक है, वहां हाथियों की सुरक्षा के लिए इंतज़ाम जरूर किये गये हैं। ट्रेन की रफ़्तार को भी धीमा किया गया है। लेकिन रिहायशी इलाकों में ट्रेन की पटरियों के पास हाथियों को रोकने के लिए कोई इंतज़ाम नहीं है।
हाथियों की मौत के बाद राज्य के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जयराज ने जांच के आदेश दिये हैं। विभागीय लापरवाही समेत अन्य वजहों की जांच कराने को कहा। इस घटना के बाद राज्य में जंगल से लगे क्षेत्रों से गुजरने वाली सभी रेलवे ट्रैक पर वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाने की बात कही है। क्योंकि जब वन विभाग को ये पता था कि इस रूट पर हाथियों की आवाजाही है तो सुरक्षा के इंतज़ामों के बारे में क्यों नहीं सोचा गया।
चिंता की बात ये है कि जिस जगह दो हाथी मारे गए, वहां से अन्य हाथी अब भी गुज़र रहे हैं। वे अब भी खतरे की जद में हैं।