मामले की सच्चाई जानने के लिए हमने दुबारा क्षेत्रीय वन अधिकारी आर. के. सिंह से बात की। वे कहते हैं कि "गांव वाले ऐसा बता रहे हैं कि दूसरी डॉल्फिन भी थी लेकिन उसका कोई सिग्नल ट्रेस नहीं हो रहा है। बाकी वहां पानी बहुत कम था, मौके पर दूसरी डॉल्फिन होने की गुंजाइश ही नहीं थी।"
डाउन टू अर्थ ने आर. के. सिंह से 31 दिसम्बर को मारी गई डॉल्फिन के गर्भवती होने की बात पूछी तो उन्होंने जानकारी नहीं होने की बात की। लेकिन पोस्टमार्टम स्थल पर तो आप रहे होंगे? इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं कि "पोस्टमॉर्टम के समय जिला वन अधिकारी, कुछ एनजीओ और पशु डॉक्टर भी मौजूद थे। हम इतनी गहराई से उसके (डॉल्फिन) के पेट में नहीं झांक रहे थे। लेकिन डॉक्टर ने जो देखा होगा उसे लिखा होगा। हमें ज्यादा पता नहीं है। मैं तो जेसीबी लाकर, गड्ढा खुदवा कर दफन करने का इंतजाम कर रहा था।"
नवाबगंज थाना क्षेत्र के वन दरोगा भइया रामपांडेय ने भी डॉल्फिन के गर्भवती होने की बात पर कॉल काट दिया। वहीं, नवाबगंज थाना प्रभारी ने बताया कि "इसके बारे में हमको असलियित नहीं पता है। इसके बारे में फारेस्ट वाले बता पाएंगे। डेड बॉडी हमने वन विभाग को सौंप दी थी, वे ले गए। अभी पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी हमें नहीं मिली है। हम वन विभाग वालों से रिपोर्ट मांगेंगे।"
एक वाइल्ड लाइफ साइंटिस्ट ने मामला शासन-प्रशासन से जुड़ा होने के कारण अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया, "एक गर्भवती डॉल्फिन को मारने वालों पर कोई अलग से धारा नहीं जुड़ेगी, लेकिन ऐसी स्थिति में क्राइम की इंटेसिटी बढ़ जाती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि वन विभाग उसका केस किस तरह बनाते हैं। चूंकि डॉल्फिन शेड्यूल-वन का जानवर है और राष्ट्रीय जलीय जीव भी है तो गम्भीर अपराध की श्रेणी में आता है। वैसे सामान्यतः शेड्यूल-वन की श्रेणी के जानवरों को मारने पर सात साल की न्यूनतम सजा होती ही है।"