झारखण्ड राज्य के साहिबगंज जिले में चल रहे अवैध और अवैज्ञानिक स्टोन क्रशरों की वजह से राजमहल की पहाड़ियों पर अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो गया है। लगभग 26 सौ वर्ग किमी में फैली भूगर्भशास्त्रीय महत्व की इन पहाड़ियों में लगातार 7 से 8 हजार स्टोन क्रशर मशीनें उन्हें काटने और जमींदोज करने में जुटी हैं। इनमें से ज्यादातर बगैर समुचित सरकारी इजाजत के चल रहे हैं। इन पहाड़ियों में लंबे समय से 60 से 120 मिलियन वर्ष पुराने महत्वपूर्ण पादप जीवाश्म मिलते रहे हैं, इसलिए स्थानीय भूगर्भशास्त्रियों ने इस विधानसभा चुनाव के मौके पर भी इसे नो माइनिंग जोन बनाने की मांग की है।
तकरीबन 120 मिलियन वर्ष प्राचीन राजमहल की पहाड़ियों का फैलाव यूं तो बिहार, झारखण्ड और बंगाल तीनों राज्यों में है। मगर इसका मुख्य हिस्सा झारखण्ड के साहिबगंज और पाकुड़ जिले में पड़ता है। गंगा नदी के किनारे फैली इन पहाड़ियों में काफी पुराने पादप जीवाश्म मिलते रहे हैं। यहां के जीवाश्मों का संचयन कर भूगर्भशास्त्री बीरबल शास्त्री ने लखनऊ में एक संग्रहालय की स्थापना भी की थी। इसके बावजूद यहां यत्र तत्र जीवाश्म बिखरे नजर आ जाते हैं। इस वजह से दुनिया भर के भूगर्भशास्त्रियों के लिए यह पहाड़ी ओपन फॉसिल्स पार्क की तरह है। मगर बीते दो दशकों से इन पहाड़ियों के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है।
बिहार की सीमा से सटे साहिबगंज के मिर्जाचौकी से पाकुड़ जिले तक 80-90 किमी लम्बे रास्ते में हर जगह स्टोन क्रशर चलते नजर आते हैं। इनकी धूल से पर्यावरण को नुकसान है ही, कई पहाड़ देखते देखते गायब हो गए। साहिबगंज कॉलेज में भूगर्भशास्त्र के प्रोफेसर डॉ रंजीत सिंह कहते हैं। पहले भी यहां स्टोन क्रशर चलते थे, मगर उनकी संख्या कम थी, 10-15 साल से जब से पड़ोसी राज्य बिहार में स्टोन क्रशर पर पाबंदी लगी यहां इनकी बाढ़ आ गयी है। कहा जा सकता है कि महज पिछले दो दशकों में इस इलाके के एक चौथाई पहाड़ गायब हो गए। इस वजह से साहिबगंज का मौसम बदल गया है। पहले यहां गर्मी बहुत कम पड़ती थी अब मैदानी इलाकों जैसी गर्मी पड़ती है। बाढ़ का प्रकोप बढ़ गया है।
स्थानीय पत्रकार सुनील ठाकुर कहते हैं, जिले में सिर्फ 343 स्टोन क्रशरों ने परिचालन की इजाजत ली है, मगर यहां चल रहे क्रशरों की संख्या सात-आठ हजार से कम नहीं होगी। यहां क्रशर का धंधा शुरू करना बहुत आसान है। संथाल परगना टेनेंसी एक्ट के कारण पहाडों का मालिक पहाड़िया जाति के लोग होते हैं। इन सीधे साधे आदिवासियों से कोई भी 7-8 हजार प्रति एकड़ की दर से पहाड़ लीज पर लेकर काम शुरू कर सकता है। कोई रोकने टोकने वाला नहीं।
प्रो रंजीत सिंह ने इस वक्त झारखण्ड में चल रहे विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों से मांग की है कि वे राजमहल की पहाड़ियों को नो माइनिंग जोन घोषित करने का वादा करें। वे कहते हैं, ग्रीन ट्रिब्यूनल की निगाह भी कभी कभार ही इस समस्या पर जाती है। उसे भी इस तरफ ध्यान देना चाहिए, नहीं तो इस इलाके की भूगर्भशास्त्रीय संपदा तो खत्म हो ही जाएगी। हमारी आने वाली पीढ़ी पहाड़ देखने को तरस जाएगी।