पलामू टाइगर रिजर्व में मृत मिली बाघिन। फोटो: आनंद दत्ता
पलामू टाइगर रिजर्व में मृत मिली बाघिन। फोटो: आनंद दत्ता

पलामू टाइगर रिजर्व में बाघिन की मौत पर क्यों मचा बवाल

बाघिन की मौत की अलग-अलग वजह बताई जा रही हैं
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आनंद दत्त 

बीते 16 फरवरी को पलामू टाइगर रिजर्व से एक बुरी खबर आई। यहां एक बाघिन की मौत हो गई थी। रिजर्व में तीन बाघ होने के पुख्ता सबूत थे। कुल चार होने का दावा अधिकारियों की ओर से किया जाता रहा है। पुख्ता सबूत के आधार को मानें तो 1026 वर्ग-किलोमीटर में फैले इस टाइगर रिजर्व में अब मात्र दो बाघ बचे हैं।

18 फरवरी को आई पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक बाघिन अपनी उम्र पूरा कर चुकी थी। उसके नाखून उखड़ चुके थे। दांत भी टूट गए थे। वह बड़े शिकार करने में अक्षम थी। ऐसे में, जंगल में बायसन के झुंड ने उसपर हमला कर दिया, जिससे उसकी मौत हो गई। उसके पीठ पर भी चोट के निशान पाए गए थे। जांच रिपोर्ट आने के बाद उसे जला दिया गया।

पीटीआर के निदेशक यतींद्र कुमार दास ने बताया कि रिपोर्ट में उसे हार्ट अटैक की बात कही गई है। साथ ही, बाघिन ने अपनी उम्र पूरा कर ली थी।उन्होंने यह भी कहा कि तीन से चार और बाघ हो सकते हैं, लेकिन अभी तक इसके पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं।

उधर, पूर्व मंत्री और पर्यावरणविद् सरयू राय ने बाघिन के मौत के पूरी जांच प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े किए हैं। 23 फरवरी को उन्होंने कहा कि जहां बाघिन मरी है, वहां खून का एक टुकड़ा तक नहीं है। बायसन के हमले में अगर मरती तो, यह संभव नहीं था। फोटो को देखने से साफ पता चलता है कि उसके नाखून सुरक्षित थे। उसके नाक का रंग गुलाबी है, यह उसके जवान होने का संकेत है। बूढ़ी बाघिन के नाक का रंग काला होता है।

उन्होंने यह भी कहा कि नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) के प्रावधानों के मुताबिक वन्यजीवों के मामले में मौत के बाद पोस्टमार्टम के समय एनटीसीए का एक प्रतिनिधि का मौजूद रहना जरूरी है। डीएस श्रीवास्तव बतौर प्रतिनिधि पलामू में ही रहते हैं, लेकिन उन्हें बुलाया नहीं गया। आखिर वन अधिकारियों को किस बात की जल्दबाजी थी। शव को डीप फ्रिज में भी तो रखा जा सकता था। पूरे मसले पर उन्होंने सीएम हमेंत सोरेन से उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की है।

डीएस श्रीवास्तव ने कहा कि उन्हें अधिकारिक तौर पर कोई सूचना नहीं मिली। किसी और सोर्स से पता चलने पर जब वह खुद गए तो देखा बाघिन के चिता जलाने की तैयारी हो रही है।

उन्होंने कहा कि लोग यह भी बता रहे हैं कि डेड बॉडी मिलने के चार दिन पहले गोली भी चली थी। सवाल ये है कि आखिर सबकुछ इतनी जल्दबाजी में क्यों हुआ? पीसीसीएफ और पीटीआर के निदेशक के अधिकारों को जब्त करते हुए सरकार को एक स्वतंत्र एजेंसी या कमेटी से उच्चस्तरीय जांच करानी चाहिए।  

जानकारी के मुताबिक पश्चिम बंगाल के सुंदरवन में एक टाइगर की मौत हो गई थी. जिसके बाद तत्कालीन सीएम ज्योति बसु ने पीसीसीएफ एसएस बिष्ट को हटा दिया था। 

एक पूर्व पीसीसीएफ ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि बाघिन को गोली मारी गई। लगभग चार दिन घायलावस्था में रहने के बाद उसकी मौत हुई है। मारने वाले की भी पहचान हो गई है। उसका वीडियो फुटेज भी है। हाईकोर्ट के सामने यह पेश किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि सरयू की बात तथ्यपूर्ण है। सरकार को इन बिन्दुओं पर जांच करानी चाहिए। 

पीटीआर के वेबसाइट पर जारी जानकारी के मुताबिक सन 1900 के आसपास भारत में 40,000 के लगभग बाघ थे. 1972 में इसकी संख्या घटकर 2000 रह गई. इसके बाद 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर लॉन्च किया गया।

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