बाघों की संख्या में करीब-करीब तीन गुना इजाफा होने के बावजूद उत्तराखंड के राजाजी टाइगर रिजर्व को 50 टाइगर रिजर्व की सूची में 49वें स्थान पर रखा गया है। राजाजी के बाद पलामू टाइगर रिजर्व का नंबर आता है। राजाजी नेशनल पार्क को टाइगर रिजर्व बने अभी चार साल ही हुए हैं। इस लिहाज से अन्य टाइगर रिजर्व की तुलना में राजाजी अभी शिशु अवस्था में ही है।
राजाजी का प्रबंधन निश्चित तौर पर इस मूल्यांकन से खुश नहीं है, लेकिन इस रिपोर्ट को तैयार करने में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने जिन कमियों को चिन्हित किया है, उसे दूर करना पार्क प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है।
जिन हालात में राजाजी नेशनल पार्क को बाघों के बसेरे के लिए चुना गया था, वो स्थितियां माकूल नहीं थीं। हरिद्वार और देहरादून के बीच फैले इस टाइगर रिजर्व से राष्ट्रीय राजमार्ग-74 गुज़रता है। रोज़ाना 29 ट्रेनें गुजरती हैं। उत्तर प्रदेश के ज़माने का पॉवर प्रोजेक्ट बना हुआ है। सेना का गोलाबारूद भंडार बना हुआ है। वन गुज्जरों के 97 डेरे बसे हैं। ऋषिकेश और चीला के बीच गौहरी रेंज के कुनाऊं क्षेत्र में करीब दस हेक्टेअर में पहाड़ों से उतर कर बसे 100 गोथ परिवार रह रहे हैं। पार्क के चारों तरफ रिहायशी इलाके हैं। गांव बसे हुए हैं।
कार्बेट पार्क से ही तुलना करें तो राजाजी की स्थितियां टाइगर रिजर्व के लिए तय किये गए मानदंडों पर खरी नहीं उतरती थीं। लेकिन वर्ष 2015 में ये टाइगर रिजर्व बना। वर्ष 2014 में यहां भी बाघों की गिनती हुई थी, उस समय यहां करीब 14 बाघ पाए गए थे। वर्ष 2018 में की गई गणना में यहां 38-40 के बीच बाघ पाए गए हैं। इसके साथ ही देशभर के टाइगर रिजर्व का मूल्यांकन कर रहे वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने राजाजी टाइगर रिजर्व को 44.53 प्रतिशत रेंटिंग के साथ 49वां स्थान दिया है।
टाइगर रिजर्व में गिनती और मूल्यांकन वर्ष 2017-18 में हुआ था। करीब छह महीने पहले आरटीआर के डायरेक्टर बने पीके पात्रो कहते हैं कि बाघों की गणना और टाइगर रिजर्व का मूल्यांकन एक ही समय में हुआ है। यदि यहां बाघों की संख्या बढ़ी है तो टाइगर रिजर्व का प्रदर्शन खराब कैसे कहा जा सकता है। जबकि टाइगर रिजर्व का मकसद बाघों को संरक्षण देना और उनकी संख्या बढ़ाना है।
वे कहते हैं कि बहुत से टाइगर रिजर्व ऐसे हैं जहां बाघ ही नहीं हैं। पूर्वोत्तर और बिहार के टाइगर रिजर्व में नक्सल प्रभाव के चलते बाघों की गिनती तक नहीं की जा सकी, इसके बावजूद उन्हें राजाजी से अच्छी रैंकिंग मिली है। फिर राजाजी को टाइगर रिजर्व बने अभी मात्र चार साल हुए हैं, ऐसे में उसकी तुलना पेंच, पेरियार, कान्हा या कार्बेट से नहीं की जा सकती। पीके पात्रो कहते हैं कि कार्बेट की तुलना में राजाजी को एनटीसीए की ओर से 25 फीसदी फंड मिलता है जबकि दोनों का कोर एरिया क्षेत्रफल में तकरीबन समान ही है।
आरटीआर के साथ दिक्कत ये है कि यहां इंसानी दखलअंदाज़ी पार्क के किनारे, बफ़र ज़ोन में, यहां तक कि कोर एरिया में भी है। पार्क के मोतीचूर-रायवाला-हरिद्वार भाग में मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बहुत अधिक हैं। जिसमें 22 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। डब्ल्यूआईआई के अध्ययन के मुताबिक 5 सितंबर 2016 से 18 अप्रैल 2017 के बीच पार्क के बफ़र ज़ोन में अलग-अलग प्रजाति (सर्प, पक्षी, स्तनधारी) के 222 जानवर सड़क दुर्घटनाओं में मारे जा चुके हैं। विभागीय आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान 26 गुलदार और एक बाघ की भी सड़क दुर्घटना में मौत हुई है। ट्रेन से कटकर दो हाथियों की भी मौत हो चुकी है।
राजाजी टाइगर रिजर्व में कॉरीडोर सुगम न होने, कॉरीडोर के रास्ते में सड़कें और अन्य बाधाएं आने के चलते बेहद परेशानी है। पार्क के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में भी बहुत अधिक फ्रेगमेंटेशन (बिखराव) है। इसके चलते ज्यादातर बाघ यहां पूर्वी हिस्से में ही हैं। पश्चिमी हिस्से में मात्र दो बाघिने हैं। इन बाघिनों का पूर्वी हिस्से में पहुंचना या उधर से बाघों का इधर आना मौजूदा हालात में संभव ही नहीं है, क्योंकि उनके कॉरीडोर जगह-जगह बाधित हैं।
चीला से मोतीचूर के बीच रायवाला क्षेत्र में करीब 155 एकड़ क्षेत्र में सेना का गोला-बारूद भंडार बना हुआ है। जिसे हटाने की कवायद कई वर्षों से चल रही है। एनजीटी ने भी इसे दूसरी जगह शिफ्ट करने के आदेश दिए हैं। पार्क के बीच सेना के भारी-भरकम वाहनों के शोर से वन्यजीवों की आवाजाही प्रभावित होती है। आर्मी का ये भंडार शिफ्ट हो जाता है तो वन्यजीवों की राह आसान हो जाएगी।
इसी तरह राष्ट्रीय राजमार्ग-74 पर चल रहे निर्माण कार्य को इस वर्ष दिसंबर तक पूरा हो जाना चाहिए। साथ ही यहां जानवरों की आवाजाही के लिए अंडर पास भी बनाया जाना है। निदेशक पीके पात्रो कहते हैं कि निर्माण की गति को देखकर ये नहीं लगता कि इस वर्ष ये पूरा हो सकेगा। यहां अंडर पास बन जाने की सूरत में पार्क के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से जुड़ जाएंगे। इस मामले में एनजीटी भी दखल दे चुका है।
डब्ल्यूआईआई-देहरादून के डायरेक्टर डॉ वीबी माथुर का कहना है करीब 32 पैरामीटर के आधार पर सभी टाइगर रिजर्व की रैंकिंग निर्धारित की गई है। राजाजी पार्क में बहुत सारी दिक्कतें हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट से जुड़ी समस्याए हैं। जिसकी वजह से पार्क में बहुत बड़े स्तर पर बिखराव है। सड़क, रेल लाइन, ट्रांसमिशन लाइन के चलते एक जंगल दूसरे जंगल से कटे हुए हैं। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की रिपोर्ट पर नेशनल हाईवे ने वर्ष 2005 में हाथियों के क्रॉसिंग के लिए स्ट्रक्चर बनाने की बात शुरू की। वर्ष 2019 हो गया लेकिन आज तक ये स्ट्रक्चर नहीं बना है।
डॉ माथुर के मुताबिक जो वन्यजीव पूरे पार्क में घूम सकते हैं उनका क्षेत्र काफी सिकुड़ गया है। पिछले 15 वर्षों से पार्क में अंडर पास या ओवर पास बनाने की बात हो रही है लेकिन ये अब तक नहीं बने। इसके चलते हाथी एक तरफ हो गए हैं, बाघ एक तरफ हो गए हैं, गुलदार अलग हो गए हैं। डॉ माथुर कहते हैं कि इसके लिए सिर्फ पार्क मैनेजमेंट अकेला दोषी नहीं है बल्कि रेल अथॉरिटी, रोड अथॉरिटी भी जिम्मेदार हैं, जिसका खामियाजा वन्यजीवों को भुगतना पड़ रहा है।
इसके साथ ही वन्यजीवों की देखरेख के लिए राजाजी में स्टाफ की बेहद कमी है। फॉरेस्ट गार्ड के ही 40 फीसदी से अधिक पद रिक्त हैं। पेट्रोलिंग को लेकर भी रिपोर्ट में सवाल खड़े किए गए हैं। हरिद्वार में जारी खनन को भी मुद्दा बनाया गया है। रिहायशी इलाकों की मौजूदगी में शिकारी भी यहां सक्रिय रहते हैं। पार्क के श्यामपुर बफ़र ज़ोन में बाघ के बच्चे का शिकार किया गया था।
इसके अलावा पिछले वर्ष राजाजी पार्क में बाघ और गुलदार की खाल-हड्डियां बरामद की गई थीं। इस मामले में अधिकारियों की मिलीभगत को लेकर जांच जारी है। पार्क के मूल्यांकन पर इसका असर भी पड़ा है।