पालन-पोषण में न हो हेराफेरी तो चिड़ियाघर में रह रहे मांसाहारी जीवों का बदल सकता है व्यवहार

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि जब जानवरों को अतिरिक्त सेवाएं दी गई, तो सक्रिय रहने में बिताया गया उनका समय एक चौथाई से लेकर उनके आधारभूत स्तर से चार गुना तक बढ़ गया।
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, पद्मनाभन07
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एक नए शोध से पता चला कि विभिन्न प्रकार के भोजन, नई संरचनाएं, गंध की इंद्रियों को सक्रिय करने के लिए बदलाव करने वाली वस्तुओं और तकनीकों का मांसाहारियों पर काफी प्रभाव पड़ता है, वे तेजी से और अधिक सक्रिय हो जाते हैं। इस बात का खुलासा नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी के अध्ययनर्ताओं ने किया है। 

मांसाहारियों को अक्सर चिड़ियाघरों में अच्छी तरह से रखना चुनौतीपूर्ण माना जाता है। उनका कभी-कभी खराब व्यवहार देखा जा सकता है, कुछ प्रजातियों के कैद में रहने से उनकी प्रजनन क्षमता कम हो जाती है

अध्ययनकर्ता ने बताया कि उन्होंने चिड़ियाघर में रहने वाले मांसाहारियों की कई प्रजातियों में सकारात्मक व्यवहार देखा है। यह तब ज्यादा देखने को मिलता है जब उन्हें अच्छा माहौल प्राप्त होता है, हालांकि यह उनके नियमित प्रबंधन और देखभाल का हिस्सा नहीं है।

अध्ययनकर्ताओं ने मांसाहारी की दर्जनों प्रजातियों और 200 से अधिक जानवरों के व्यवहार को देखते हुए पिछले अध्ययनों के आंकड़ों का विश्लेषण किया।

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि जब जानवरों को अतिरिक्त सेवाएं दी गई, तो सक्रिय रहने में बिताया गया उनका समय एक चौथाई से लेकर उनके आधारभूत स्तर से चार गुना तक बढ़ गया। इस अध्ययन में पोलैंड के हार्पर एडम्स विश्वविद्यालय, बोल्टन विश्वविद्यालय और लॉड्ज विश्वविद्यालय भी शामिल थे। इस अध्ययन को एप्लाइड एनिमल बिहेवियर साइंस पत्रिका में प्रकाशित किया गया है

अध्ययन से पता चला कि अतिरिक्त सेवाएं  प्रदान किए जाने पर ब्राउन फर सील, ऑस्ट्रेलियाई सील और जगुआर सबसे अधिक सक्रिय दिखे।

इसी तरह, अतिरिक्त सेवाओं के चलते चारागाह, खरोंचने और चढ़ने जैसे गतिविधियों को लेकर बाड़ों में सक्रियता बढ़ गई, सिलों, स्पेक्टैलेड भालू और मछली पकड़ने वाली बिल्लियों में सबसे अधिक सक्रियता देखी गई।

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि सही संवर्धन की सुविधाओं के साथ, ध्रुवीय भालू और यूरेशियाई लिंक्स उनकी उम्र बढ़ने के साथ-साथ अधिक चंचल हो गए, जबकि लाल लोमड़ी और भूरे भालू उम्र के साथ अधिक सक्रिय हो गए।

चिड़ियाघर में रहने वाली प्रजातियों में गतिविधि, खेल और पर्यावरण के साथ बातचीत को सकारात्मक कल्याण के उपाय के रूप में माना जाता है।

अध्ययनकर्ताओं  का सुझाव है कि इस अध्ययन के आधार पर, ऐसा कोई कारण नहीं है कि मांसाहारी के किसी भी प्रजाति को चिड़ियाघरों में अच्छा अनुभव न हो।

अध्ययनकर्ता ने बताया, पहले ज्यादातर ध्यान चिड़ियाघर में रहने वाले जानवरों के संभावित नकारात्मक व्यवहार पर रहता था। टीम का सुझाव है कि जानवरों के बारे में व्यापक समझ के लिए भविष्य के शोध में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों स्थितियां शामिल हों जो चिड़ियाघर के जानवरों के कल्याण से जुड़ी होती हैं।

नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ एनिमल, रूरल एंड एनवायर्नमेंटल साइंसेज की वैज्ञानिक और प्रमुख अध्ययनकर्ता डॉ. सामंथा वार्ड ने कहा, चिड़ियाघरों ने हाल के वर्षों में कल्याण से संबंधित चीजों में भारी प्रगति की है साथ ही कल्याण की निगरानी और सुधार की आवश्यकता की पहचान की है।

उन्होंने बताया, चिड़ियाघर में रहने वाले मांसाहारियों में सकारात्मक व्यवहार की मात्रा निर्धारित करने वाला यह पहला अध्ययन है। यह दर्शाता है कि यदि उचित पालन-पोषण किया जाए तो सकारात्मक कल्याण हासिल किया जा सकता है।

यह न केवल चिड़ियाघर में रहने वाले मांसाहारियों में नकारात्मक या खराब व्यवहार को कम करने में, बल्कि सकारात्मक व्यवहार को बढ़ावा देने और पशु कल्याण के लिए अहम है।

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