मुदुमलाई टाइगर रिजर्व से आक्रामक प्रजाति के वृक्षों को हटाने की तैयारी

तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में स्थित टाइगर रिजर्व के कोर और बफर जोन में पिछले पांच सालों में आक्रामक प्रजाति के वृक्ष 800 से 1200 हेक्टेयर क्षेत्र में फैल चुके हैं
तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में स्थित मुदुमलाई टाइगर रिजर्व के बफर और कोर जोन में एक आक्रामक प्रजाति (सेना स्पेक्टाबिलिस) का वृक्ष तेजी से फैल रहा है। फोटो: विकीमीडिया कॉमन्स
तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में स्थित मुदुमलाई टाइगर रिजर्व के बफर और कोर जोन में एक आक्रामक प्रजाति (सेना स्पेक्टाबिलिस) का वृक्ष तेजी से फैल रहा है। फोटो: विकीमीडिया कॉमन्स
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पिछले पांच वर्षों से तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में स्थित मुदुमलाई टाइगर रिजर्व (एमटीआर) के बफर और कोर जोन में एक आक्रामक प्रजाति (सेना स्पेक्टाबिलिस) का वृक्ष तेजी से फैल रहा है।

यह विदेशी वृक्ष एमटीआर के 800 से 1200 हेक्टेयर क्षेत्र में अब तक कब्जा कर चुका है। यह वृक्ष अन्य प्रजाति के वृक्षों का तेजी से फैल रहा है। पर्यावरणविदों का कहना है कि इससे स्थानीय प्रजाति के पौधों या वृक्षों को पनपने का मौका नहीं मिल पा रहा है। हालांकि राज्य के विन विभाग ने इस बफर जोन में तेजी से फैल रहे आक्रामक प्रजातियों के प्रसार को रोकने के लिए एक व्यापक रणनीति तैयार करने का दावा किया है।

ध्यान रहे कि आक्रामक प्रजाति का सेना स्पेक्टाबिलिस वृक्ष अधिकांशत: दक्षिण और मध्य अमेरिका के इलाकों में मुख्य रूप से जलाऊ लकड़ी के रूप में उपयोग किया जाता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों के दौरान ही यह वृक्ष तमिलनाडु के एमटीआर के कोर और बफर दोनों जोन के सिगुर पठार में बहुत तेजी से फैलता जा रहा है।

पिछले कुछ वर्षों में इसके चमकीले पीले फूल टाइगर रिजर्व में बहुतायत में दिखाई दे रहे हैं। पर्यावरण के संरक्षणवादियों का कहना है कि आक्रामक खरपतवार का स्थानीय जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके कारण देशी प्रजातियां इनके बीच में पनप नहीं पाती। ऐसे में वन्यजीवों के लिए भोजन की उपलब्धता के अवसर धीरे-धीरे सीमित होते जा रहे हैं।

वन विभाग का अनुमान है कि यह प्रजाति बफर जोन के 800 से 1200 हेक्टेयर में अब तक फैल चुकी है और इसका फैलाव पहले के मुकरबे अधिक तेजी से हो रहा है। वहीं दूसरी ओर स्थानीय निवासियों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान इस प्रजाति के वृक्षों के फेलाव में तेजी देखने को मिली है।

और अब हालात ये हो गए हैं कि पूरे जिले में इन दिनों इसे कहीं भी देखा जा सकता है। ये जहां-तहां तेजी से उगते जा रहे हैं। वन विभाग के अनुसार वर्तमान में उसके कर्मचारी उन सभी क्षेत्रों का सीमांकन कर रहे हैं, जहां यह आक्रमक प्रजाति के वृक्ष फैल रहे हैं।

वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार वे तमिलनाडु न्यूजप्रिंट एंड पेपर्स लिमिटेड ( टीएनपीएल ) की उस बात का इंतजार कर रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा है कि वे आक्रमक प्रजाति के सेना स्पेक्टैबिलिस वृक्षों की लकड़ी का इस्तेमाल कागज बनाने के लिए करेंगे।

अधिकारियों का कहना है कि टीएनपीएल से मिली धनराशि का उपयोग देशी प्रजातियों को वापस लाने में किया जाएगा।इसके अलााव वन विभाग लैंटाना कैमरा नामक एक अन्य आक्रमक प्रजाति के वृक्षों को हटाने के लिए भी एक दस वर्षीय योजना बना रहा है।

क्योंकि यह आक्रमक खरपतवार भी टाइगर रिजर्व के कोर और बफर दोनों जोन की जैव विविधता के लिए तेजी से खतरा बनते जा रहे हैं।

ध्यान रहे कि सेना स्पेक्टाबिलिस और लैंटाना कैमरा उन पांच प्रमुख आक्रामक खरपतवारों में से एक है, जिसने नीलगिरी के विशाल क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है। वन विभाग के अनुसार कहने के लिए तो देवदार भी एक विदेशी प्रजाति का वृक्ष है लेकिन ये अन्य प्रजातियों की तरह तेजी से नहीं फैलता और इस पर नियंत्रण करना आसान होता है।

यही नहीं वन विभाग का कहना है कि आक्रमक प्रजाति के वृक्षों पर मद्रास उच्च न्यायालय टाइगर रिजर्व से हटाने की मांग करने वाली कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। और इसी का नतीजा है कि न्यायाधीशों ने इस वर्ष आक्रामक प्रजातियों को हटाने संबंधी कार्य की प्रगति जानने के लिए टाइगर रिजर्व का निरीक्षण भी किया था।

वन विभाग का कहना है कि एमटीआर बफर जोन में सिंगारा, मासीनागुडी वन रेंज और रिजर्व के कोर क्षेत्र में करगुडी रेंज में भी आक्रमण प्रजाति का सेना स्पेक्टैबिलिस वृक्ष तेजी से फैल रहा है। विभाग का कहना है कि इस संबंध में विभागीय स्तर पर नीतिगत निर्णय तैयार किए जा रहे हैं।

इसके तहत ही टीएनपीएल को इस बात की अनुमति मिलेगी जिससे वह आक्रमक प्रजातियों के वृक्षों का उपयोग कर कागज बना सके। वन विभाग का कहना है कि उन्होंने 2021 में 125 हेक्टेयर क्षेत्र से आक्रमण प्रजाति के वृक्ष लैंटाना कैमरा को हटाया है और इस साल 70 हेक्टेयर खरपतवार को हटाया जाना अभी बांकी है।

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