मुंबई के मैंग्रोव में बढ़ रही हैं सुनहरे सियारों की आबादी: अध्ययन

साल 2022 के वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम में हाल ही में किए गए संशोधन ने भारत में सुनहरे सियार या गोल्डन जैकल को कानूनी सुरक्षा का उच्चतम स्तर प्रदान किया है।
गोल्डन जैकल कुछ ही सालों में एक आम प्रजाति से विलुप्त होने के खतरे की कगार पर पहुंच गई  है।
गोल्डन जैकल कुछ ही सालों में एक आम प्रजाति से विलुप्त होने के खतरे की कगार पर पहुंच गई है।फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, धवल वर्गीय
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सियारों को प्रकृति का सफाईकर्मी कहा जाता है, क्योंकि सर्वाहारी जानवर होने के नाते, वे कुतरने वाले जीवों का शिकार करते हैं और अपने क्षेत्रों में जैविक अवशेष और कचरा, जैसे गिरे हुए फल, सड़े हुए मांस, आदि की तलाश करते हैं।

गोल्डन जैकल या सुनहरा सियार आठ से 10 साल तक जीवित रहते हैं। भारत के लगभग हर आवास में पाया जाने वाला सुनहरा सियार लोक कथाओं और गीतों को प्रेरित करता है, लेकिन कुछ संदिग्ध प्रथाओं के कारण इनका अवैध शिकार भी होता है।

गोल्डन जैकल कुछ ही सालों में एक आम प्रजाति से विलुप्त होने के खतरे की कगार पर पहुंच गई है। 1990 के दशक की शुरुआत से, सियार के इलाके काफी कम हो गए हैं। जबकि गोल्डन जैकल को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) रेड लिस्ट में सबसे कम चिंता वाली प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

गोल्डन जैकल मुख्य रूप से अपने आवास के लिए खतरों का सामना करते हैं। भारत में सुनहरा सियार कई तरह के वातावरण में पाया जाता है, जिसमें अधिकांश संरक्षित क्षेत्र, साथ ही अर्ध-शहरी और ग्रामीण परिदृश्य शामिल हैं। पिछले 30 वर्षों के दौरान दुनिया भर में भूमि के उपयोग में उछाल आया है।

पशुपालन में कमी, निचले इलाकों में की जा रही अंधाधुंध खेती, छोटे आर्द्रभूमि का विनाश तथा तटीय क्षेत्रों में बस्तियों का विस्तार ऐसे कारण हैं जो गोल्डन जैकल के आवासों के नष्ट होने और उनके खाद्य संसाधनों के ह्रास में निर्णायक रूप से जिम्मेवार हैं। बार-बार लगने वाली विनाशकारी जंगली आग बची हुई आबादी की स्थिति को और खराब कर देती है।

सुखद बात यह है कि, एक नए अध्ययन में पाया गया है कि, खतरे में पड़े गोल्डन जैकल अब भारत के राज्य मुंबई के कुछ हिस्सों में पनप रहे हैं। वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी-इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, गोल्डन जैकल (कैनिस ऑरियस) को दक्षिणी मुंबई के कई इलाकों में देखा जा सकता है। उनका निवास स्थान मुंबई के पूर्वी उपनगरों तक सीमित है, जबकि उत्तरी मुंबई और वाशी के मैंग्रोव वाले इलाकों में उनकी अधिक आबादी पाई जाती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि मुंबई महानगर के विभिन्न मैंग्रोव वाले इलाकों में कैमरा ट्रैप की मदद से लंबे अरसे तक रातों में लगभग 3,000 तस्वीरें खींचीं। इनमें से 790 तस्वीरों में गोल्डन जैकल दिखाई दिए।

रिपोर्ट में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि उन्हें उनकी सही संख्या का पता नहीं है, लेकिन उन्होंने दो महीने के सर्वेक्षण के दौरान विभिन्न आयु के सियार के बच्चों को देखा, जिससे पता चलता है कि यहां साल भर प्रजनन होता है। यहां तक कि छोटे समूहों में भी सियार के बच्चे और स्तनपान कराने वाली मादाएं दिखाई दी, जो एक स्वस्थ, सक्रिय प्रजनन आबादी का एक मजबूत संकेत है।

रिपोर्ट के मुताबिक, सियार रात में अधिक सक्रिय दिखे, उनकी सक्रियता सुबह और शाम के समय बहुत अधिक थी, जब लोगों की उपस्थिति कम थी। इसके अलावा शोधकर्ताओं ने खुले में घूमने वाले कुत्तों की 374 तस्वीरें भी हासिल की, जिससे पता चलता है कि सियार और कुत्ते एक ही जगह पर रहते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे दो चुनौतियां पैदा होती हैं। सियार और खुले में घूमने वाले कुत्तों के बीच सम्पर्क से रेबीज जैसी बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है, इस साल अक्टूबर में पांच सियारों में रेबीज संक्रमण की पुष्टि हुई थी, जिनमें से सभी एक महीने के भीतर मर गए।

रिपोर्ट में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि जब बीमारियों का अध्ययन करने की बात आती है, तो खून के नमूने एकत्र करने और कल्चर सहित अधिक गहन तरीकों की जरूरत पड़ती है।

रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 के वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम में हाल ही में किए गए संशोधन ने भारत में सुनहरे सियार या गोल्डन जैकल को कानूनी सुरक्षा का उच्चतम स्तर प्रदान किया है। मुंबई के गोल्डन जैकल शहर के पारिस्थितिक संतुलन के लिए अहम हैं। वे प्राकृतिक कचरे के प्रबंधकों के रूप में कार्य करते हैं, शिकार की आबादी को नियंत्रित करते हैं और जैविक मलबे को साफ करते हैं। फिर भी, उनका अस्तित्व आवासों के संरक्षण पर बहुत अधिक निर्भर है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि मैंग्रोव गोल्डन जैकल के लिए विभिन्न तरह का भोजन प्रदान करते हैं। 38 मल के नमूनों के विश्लेषण से पता चला कि उनके आहार में स्तनधारी अवशेष (31.4 फीसदी), वनस्पति पदार्थ (26.7 फीसदी), पक्षी (14.3 फीसदी) और कभी-कभी केकड़े, मछली और सांप भी शामिल थे। सबसे चिंताजनक बात यह है कि प्लास्टिक के निशान भी तीन फीसदी तक पाए गए।

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