भारत में एक छोटा-सा झाड़ीदार पौधा पाया गया है, जिसे स्थानीय तौर पर मोड्डू सोप्पू (जस्टिसिया वेनाडेंसिस) के रूप में जाना जाता है। यह विशेष रूप से मानसून के मौसम के दौरान कर्नाटक के कोडागु जिले में पाया जाता है। यहां के निवासियों द्वारा इसका उपयोग मीठे पकवान बनाने के लिए किया जाता है।
एक अंतरराष्ट्रीय शोध में इस पौधे में फाइटोकेमिकल्स मौजूद होने की बात कही गई है, जोकि कैंसर के उपचार में उपयोग किए जाने वाली (एंटीकैंसर) दवा है। शोध में बताया गया है कि इस छोटे से पौधे में पाए जाने वाला केमिकल कैंसर की बीमारी को जड़ से समाप्त कर देता है।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी एंड ड्रग डिज़ाइन में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार पौधों में पाया जाने वाला फाइटोकेमिकल्स कैंसर के खिलाफ लड़ाई, लड़ने में उपयोगी होता है। हजारों पौधों में प्राकृतिक तौर पर उत्पादित कैमिकल होते हैं। वास्तव में लगभग 40 प्रतिशत आधुनिक फार्मास्यूटिकल या दवा उद्योग वनस्पति के प्राकृतिक उत्पादों पर निर्भर रहते हैं।
कर्नाटक में बैंगलोर पीईएस विश्वविद्यालय के सी.डी. वंदना और के.एन. शांति और तुमकुर के सिद्धगंगा संस्थान के विवेक चंद्रमोहन ने भी कई फाइटोकेमिकल्स की जांच की जिन्हें वैज्ञानिक साहित्य में कैंसर के उपचार में उपयोग किए जाने वाला (एंटीकैंसर) बताया गया।
उन्होंने एंजाइम थाइमिडाइलेट सिंथेज़ के बारह अलग-अलग यौगिकों को अच्छी तरह से देखने के लिए एक कंप्यूटर मॉडल का इस्तेमाल किया और इस गतिविधि की तुलना एक संबंधित दवा, कैपेसिटाबाइन के साथ की, जो इस एंजाइम के लिए उपयोग की जाती है।
कोशिकाओं के दोहराने वाले डीएनए को बनाने में थाइमिडिलेट सिंथेज़ शामिल होता है। कैंसर में, अनियंत्रित कोशिकाएं जो बार-बार बनती रहती है, यह एक समस्या है। यदि इस एंजाइम को रोक दिया जाए तो यह कैंसर कोशिकाओं के डीएनए को नष्ट कर देगा और कैंसर के विकास को रोक देगा।
यह दो यौगिकों की गतिविधि और कैपेसिटाबाइन की तुलना में एंजाइम पर अधिक मजबूती से रोक लगा देता है। पहला, कैंपस्ट्रोल, कोलेस्ट्रॉल के समान संरचना वाला एक प्रसिद्ध पौधे का केमिकल है, दूसरा स्टिग्मास्टरोल, पौधों की कोशिकाओं की संरचना को जोड़ने वाला एक और प्रसिद्ध फाइटोकेमिकल है।
इसने अपने आप को पहले की अपेक्षा अधिक स्थिर साबित किया और एक कैंसर (एंटीकैंसर) की दवा के रूप में इसकी आगे की जांच और परीक्षण किए जाने की जरुरत है। यह शोध कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी एंड ड्रग डिज़ाइन के इंटरनेशनल पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।