कीटों में एक सहज प्रवत्ति होती है कि जब वो चलते या उड़ते हैं तो वो एक सीधे तय रास्ते पर जाते हैं और फिर उसका अनुसरण करते हुए वापस अपने आवास पर लौट जाते हैं। मधुमखियां भी ऐसा ही करती हैं। लेकिन एक नई रिसर्च से पता चला है कि कीटनाशक मधुमक्खियों की इस क्षमता को प्रभावित कर रहे हैं।
रिसर्च से पता चला है कि कीटनाशकों के संपर्क में आने से मधुमक्खियों के नर्वस सिस्टम पर असर पड़ता है, जिस वजह से उनका तय मार्ग पर उड़ना मुश्किल हो जाता है। इस वजह से उनके लिए वापस अपने छत्तों का मार्ग खोजना मुश्किल हो जाता है। यह कुछ ऐसा ही है जैसे एक शराब के नशे में चालक आगे-पीछे जाने के लिए संघर्ष करता है। इस रिसर्च से जुड़े निष्कर्ष जर्नल फ्रंटियर्स इन इन्सेक्ट साइंस में प्रकाशित हुए हैं।
इस बारे में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक और अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता रचेल एच पार्किंसन का कहना है कि “कि सल्फोक्साफ्लोर और नियोनिकोटिनोइड इमिडाक्लोप्रिड जैसे आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले कीटनाशक मधुमक्खियों में दृष्टि निर्देशित व्यवहार को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।“
“यह इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि मधुमखियां नेविगेशन और अपनी उड़ान के लिए इन दृश्यों से प्राप्त जानकारी के विश्लेषण पर ही निर्भर करती हैं। ऐसे में यदि उनकी इस क्षमता पर असर पड़ता है तो वो उनके अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर सकता है।“
गौरतलब है कि खाद्य एवं कृषि संगठन और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस बात की पुष्टि की है कि पर्यावरण में बढ़ता प्रदूषण जिसमें कीटनाशकों भी शामिल हैं वो मधुमक्खियों और अन्य जरुरी कीटों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं।
देखा जाए तो कीटों में एक सहज प्रतिक्रिया होती है जिसे 'ऑप्टोमोटर रिस्पांस' कहते हैं। यह प्रतिक्रिया उन कीटों को चलते और उड़ते समय अपने पथ पर बने रहने में मदद करती है। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने मधुमक्खियों के चार समूहों पर कीटनाशकों के प्रभाव को समझने का प्रयास किया था, जिसमें हर समूह में 22 से 28 मधुमक्खियों को रखा गया था।
इन सभी को अगले पांच दिनों तक कुछ को शुद्ध मीठा घोल जबकि कुछ को कीटनाशक इमिडाक्लोप्रिड और सल्फोक्साफ्लोर की 25 और 50 पीपीबी मात्रा दी गई थी। शोध में सामने आया है कि इन कीटनाशकों के संपर्क में आने के बाद मधुमक्खियों की ऑप्टोमोटर प्रतिक्रियाएं बदतर हो गई थी।
मधुमक्खियों के मस्तिष्क की कोशिकाओं को भी नष्ट कर रहे हैं कीटनाशक
इतना ही नहीं शोधकर्ताओं को यह भी पता चला कि कीटनाशकों के संपर्क में आने वाली मधुमक्खियों के मस्तिष्क के ऑप्टिक लोब के कुछ हिस्सों में मृत कोशिकाओं का अनुपात बढ़ गया था। गौरतलब है कि दिमाग का यह हिस्सा देखी गई जानकरी को प्रोसेस करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इसी तरह कुछ जीन जो जहरीले पदार्थों को दूर करने में मदद करती हैं वो भी कीटनाशकों के संपर्क में आने के बाद निष्क्रिय हो गई थी। लेकिन यह परिवर्तन उतने स्पष्ट नहीं थे।
पार्किंसन ने इस बारे में जानकारी दी है कि नियोनिकोटिनोइड और सल्फ़ोक्सीमाइन जैसे कीटनाशक कीटों के दिमाग में न्यूरॉन्स को सक्रिय कर देते हैं। शरीर हमेशा उन्हें उतना तेजी से रीसायकल नहीं कर पाता जिससे उनके जहर को रोका जा सके।
हाल ही में जर्नल वन अर्थ में छपे एक शोध से पता चला है कि 1990 से 2015 के बीच मधुमक्खियों की करीब एक चौथाई प्रजातियों को फिर से नहीं देखा गया है। देखा जाए तो यह मधुमक्खियां पर्यावरण के लिए बहुत मायने रखती हैं। इनके द्वारा किया परागण हजारों जंगली पौधों के विकास के लिए जरुरी होता है।
अनुमान है कि 85 फीसदी खाद्य फसलों की पैदावार इन परागण करने वाले जीवों पर ही निर्भर करती है। ऐसे में इनपर पड़ता कीटनाशकों का प्रभाव न केवल पर्यावरण बल्कि खाद्य सुरक्षा के लिए भी खतरा है।