दुनिया भर में परागणकों की प्रजातियां लगातार घट रही हैं, जोकि खाद्य सुरक्षा और प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के लिए एक चिंता का विषय है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 75 प्रतिशत फसलें परागणकों पर निर्भर करती हैं। मानवजनित तनावों के चलते मधुमक्खियों की आबादी पर हानिकारक प्रभाव पड़ रहे हैं।
शोधकर्ताओं ने अब मधुमक्खियों पर मानवजनित तनावों का पता लगाया है। शोध के अनुसार, कृषि में उपयोग होने वाले कीटनाशकों के संपर्क में आने से मधुमक्खियों की मृत्यु दर में काफी वृद्धि हुई है। शोध में यह भी बताया गया है कि कीटनाशकों के खतरों को कम करके आंका गया है।
मधुमक्खियां और अन्य परागणकर्ता फसलों के लिए महत्वपूर्ण हैं। दुनिया भर में कीटों की आबादी में हो रही भारी गिरावट से खाद्य सुरक्षा और प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के लिए गंभीर खतरा पैदा हो सकता है।
पिछले 20 वर्षों में दर्जनों प्रकाशित अध्ययनों के एक नए विश्लेषण ने मधुमक्खी के व्यवहार पर कृषि में उपयोग हो रहे केमिकल का पता लगाया। जिसमें मधुमक्खी और कुपोषण के बीच प्रभाव को देखा गया - जैसे कि मधुमक्खियों के भोजन के लिये घूमना, उनकी याददाश्त, कॉलोनी प्रजनन और उनका स्वास्थ्य।
शोधकर्ताओं ने पाया कि इन विभिन्न प्रकार के तनावों के चलते मधुमक्खियों पर उनका बुरा प्रभाव पड़ा, जिससे उनकी मृत्यु के आसार काफी बढ़ गए। अध्ययन में यह भी पाया गया कि कीटनाशकों के परस्पर क्रिया करने की आशंका होती है, जिसका अर्थ है कि उनका कुल प्रभाव उनके अपने प्रभावों के योग से अधिक होता है।
ऑस्टिन में टेक्सास विश्वविद्यालय के सह-शोधकर्ता हैरी सिविटर ने कहा कई कृषि में उपयोग होने वाले केमिकल के परस्पर प्रभाव से मधुमक्खी मृत्यु दर में काफी वृद्धि होती है। अध्ययन के मुताबिक खतरे का मूल्यांकन मधुमक्खी मृत्यु दर पर मानवजनित तनावों के प्रभाव को कम करके आंका जा सकता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि उनके परिणाम बताते हैं कि नियामक प्रक्रिया अपने वर्तमान स्वरूप में मधुमक्खियों को हानिकारक कृषि केमिकल के खतरों से पड़ने वाले असर से नहीं बचाती हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि केमिकल से पड़ने वाले असर का समाधान सही से नहीं किया गया है। कृषि कार्य के तहत मधुमक्खियों पर कई मानवजनित तनावों का असर पड़ता है। जिसके चलते मधुमक्खियों और उनकी परागण सेवाओं में निरंतर गिरावट आएगी, जिससे मानव और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को नुकसान होगा।
फ्रांस के नेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर एग्रीकल्चर, फूड एंड एनवायरनमेंट के एडम वानबर्गन ने कहा कि परागण करने वाले कीड़ों को कृषि से होने वाले खतरों का सामना करना पड़ता है, जिसमें कवकनाशी और कीटनाशकों जैसे केमिकल के साथ-साथ जंगली फूलों से पराग और रस की कमी भी शामिल है। प्रबंधित मधुमक्खियों के औद्योगिक पैमाने पर उपयोग से परजीवियों और बीमारियों के लिए परागणकों का खतरा भी बढ़ जाता है।
यह नया विश्लेषण पुष्टि करता है कि खेती की जाने वाले वातावरण में मधुमक्खियों का सामना कृषि में उपयोग होने वाले अलग-अलग केमिकल से होता है, जो मधुमक्खियों की आबादी के लिए खतरा पैदा कर सकता है। उन्होंने कहा कि मधु मक्खियों पर पड़ने वाले प्रभाव पर एक सामान्य तौर पर गौर किया गया था, लेकिन अन्य परागणकों पर अधिक शोध करने की आवश्यकता है, जो इन तनावों पर अलग तरह से प्रतिक्रिया कर सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, मानव उपभोग के लिए फल और बीज पैदा करने वाली दुनिया की लगभग 75 प्रतिशत फसलें परागणकों पर निर्भर करती हैं, जिनमें कोको, कॉफी, बादाम और चेरी शामिल हैं। 2019 में वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि दुनिया भर में सभी कीट प्रजातियों में से लगभग आधी प्रजातियां घट रही हैं और एक तिहाई सदी के अंत तक पूरी तरह से गायब हो सकती हैं।
मधुमक्खियों की छह प्रजातियों में से एक दुनिया में कहीं न कहीं क्षेत्रीय रूप से विलुप्त हो चुकी है। परागकणों के विलुप्त होने का मुख्य कारण निवास स्थान का नुकसान और कीटनाशकों का उपयोग माना जाता है। यह अध्ययन नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
नया विश्लेषण इस बात की पुष्टि करता है कि खेती की जाने वाले वातावरण में मधुमक्खियों का सामना करने वाले कृषि रसायनों का कॉकटेल मधुमक्खी आबादी के लिए जोखिम पैदा कर सकता है।