अगले 50 सालों में विलुप्त हो जाएंगी एक तिहाई प्रजातियां, जानें क्यों?

तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि करीब आधी स्थानीय प्रजातियों को नष्ट कर देंगी। जबकि 2.9 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से करीब 95 फीसदी स्थानीय प्रजातियों का अंत हो जाएगा
विलुप्त हो रहे हैं ये उल्लू। फोटो साभार: pixabay
विलुप्त हो रहे हैं ये उल्लू। फोटो साभार: pixabay
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क्या अपने गौर किया है कभी आपके चारों तरफ चहचाहती, फुदकती एक छोटी सी गौरैया कहां गुम हो गयी है। दिन प्रतिदिन तापमान में हो रही वृद्धि इसे हमसे दूर करती जा रही है। आज यह चिड़िया सिर्फ कुछ दूर दराज के क्षेत्रों में ही देखने को मिलती है और ऐसा सिर्फ एक चिड़िया के साथ नहीं हो रहा। ऐसी न जाने कितने जीव जंतुओं और पौधों के साथ हो रहा है। यह सभी क्लाइमेट चेंज की भेंट चढ़ते जा रहे हैं।

जैव विविधता को हो रहा यह नुकसान कितना व्यापक है इसका पता यूनिवर्सिटी ऑफ एरिज़ोना के वैज्ञानिकों द्वारा किये अध्ययन से पता चल जाता है। जिनके अनुसार सिर्फ अगले 50 सालों में दुनिया के करीब एक तिहाई पौधों और पशुओं की प्रजातियां खत्म हो जाएंगी। और इन सबके लिए उन्होंने मानव के कारण जलवायु में आ रहे बदलावों को जिम्मेदार माना है।

इसके साथ ही शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि यदि हम पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल कर लेते हैं तो भी हम 2070 तक 20 फीसदी प्रजातियों को खो देंगे। लेकिन तापमान में इसी तरह बढ़ोतरी होती रहती है तो यह आंकड़ा बढ़कर 33 फीसदी तक जा सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है जो इतने बड़े स्तर पर जलवायु परिवर्तन के प्रजातियों पर हो रहे असर को साबित करता है, साथ ही उसके पैटर्न का भी विश्लेषण करता है । यह अध्ययन अंतराष्ट्रीय जर्नल पनास में प्रकाशित हुआ है। 

इस शोध में वैज्ञानिकों ने दुनिया भर के इकोसिस्टम पर पड़ रहे इंसांनी प्रभावों का अध्ययन किया है। साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण खत्म हो रही प्रजातियों और उसकी दर का भी विश्लेषण किया है और भविष्य में क्लाइमेट चेंज का क्या प्रभाव पड़ेगा, उन अनुमानों की भी जांच की है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के 581 स्थानों पर करीब 538 प्रजातियों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। उन्होंने इसके लिए उन प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित किया है, जिनका कम से कम 10 वर्षों में एक ही स्थान पर अध्ययन किया गया था।

साथ ही, शोधकर्ताओं ने वहां के जलवायु सम्बन्धी डेटा का भी विश्लेषण किया है| जिसमें उन्हें पता चला कि 538 प्रजातियों में से 44 फीसदी प्रजातियां पहले ही एक या एक से अधिक स्थानों पर लुप्त हो चुकी है। उनके अनुसार इससे पहले के अध्ययनों में यह अनुमान लगाया गया था कि यदि तापमान में बढ़ोतरी होती है तो ज्यादातर जीव गर्म स्थानों से ठन्डे स्थानों की ओर चले जायेंगे। लेकिन इस नए अध्ययन से पता चला है कि यह प्रजातियां उतनी तेजी से प्रवास करने में सक्षम नहीं होंगी। जितनी तेजी से क्लाइमेट चेंज उनको खत्म करता जायेगा।

उनका मानना है कि हालांकि कुछ प्रजातियां एक निश्चित सीमा तक तो इस गर्मी को बर्दाश्त कर लेंगी। पर तापमान के उससे ज्यादा बढ़ने से उनका भी जीवन मुश्किल हो जायेगा। विश्लेषण के अनुसार यदि तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो करीब आधी स्थानीय प्रजातियां नष्ट हो जाएंगी। जबकि तापमान में आने वाली 2.9 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि करीब 95 फीसदी स्थानीय प्रजातियों का अंत कर देंगी।

यदि जैव विविधता को होने वाले इतने बड़े नुकसान को रोकना है तो हमें जल्द से जल्द कड़े कदम उठाने होंगे। आज जितना हो सके ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की जरुरत है। और यदि ऐसा नहीं किया गया तो प्रकृति को होने वाला यह नुकसान कभी पूरा नहीं किया जा सकेगा। इससे अकेले वो प्रजातियां ही विलुप्त नहीं होंगी बल्कि इंसानों पर भी उसका गहरा असर पड़ेगा।

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