वृक्षारोपण ही नहीं, वृक्षरक्षण भी है समय की मांग
तेलंगाना में 400 एकड़ में फैले कांचा गाचीबोवली जंगल में पेड़ों की कटाई के मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लेते हुए पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी. आर. गवई और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने सरकार से तीखे सवाल करते हुए अगले आदेश तक इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की गतिविधि पर रोक लगा दी।
अदालत ने पूछा कि वनों की कटाई शुरू करने की इतनी आपातकालीन आवश्यकता क्यों थी? क्या इस क्षेत्र के लिए पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन प्रमाणपत्र प्राप्त किया गया था? क्या वन विभाग से अनुमति ली गई थी? दरअसल हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार द्वारा सुप्रीम कोर्ट को भेजी गई तस्वीरों से स्पष्ट था कि वहां बहुत बड़ी संख्या में पेड़ काटे गए और भारी मशीनरी तैनात की गई।
उल्लेखनीय है कि हैदराबाद विश्वविद्यालय के पास तेलंगाना सरकार द्वारा आईटी पार्क बनाने के लिए उस स्थान पर बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई की जा रही थी, जो कई प्रकार के वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास है। छात्र और पर्यावरणविद इसे लेकर विरोध प्रदर्शन भी कर रहे थे।
सोशल मीडिया पर इसी जगह का एक दिल दहलाने वाला वीडियो भी वायरल हुआ था, जिसमें अंधेरे में बुलडोजर चलता दिख रहा है और वहीं से मोरों के झुंड की आवाज़ सुनाई दे रही है, जो जंगलों की कटाई से रो रहे हैं।
एक मंदिर प्रबंधन द्वारा अवैध रूप से पेड़ों की बेताहाशा कटाई को लेकर एक अन्य मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि कोई भी धर्म इस तरह पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं देता। यह न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से गलत है बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी अस्वीकार्य है। उस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि पेड़ों को काटने की इतनी मजबूरी क्यों है और क्या राज्य ने पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन प्रमाणपत्र प्राप्त किया है?
इससे कुछ ही दिन पहले आगरा में ताजमहल के आसपास अवैध रूप से काटे गए सैंकड़ों वृक्षों को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए प्रत्येक पेड़ के लिए एक लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए कठोर टिप्पणी की थी। अदालत का कहना था कि बड़ी संख्या में पेड़ों को काटना किसी इंसान की हत्या से भी बदतर है, इसलिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों पर कोई दया नहीं दिखाई जानी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने उस मामले में केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए कहा था कि मथुरा-वृंदावन के डालमिया फार्म में शिवशंकर अग्रवाल नामक व्यक्ति की ओर से 454 पेड़ काटे गए, जो गंभीर पर्यावरणीय अपराध है। सीईसी ने इस कृत्य के लिए प्रति पेड़ एक लाख रुपये का जुर्माना (कुल 4.54 करोड़ रुपये) लगाने की सिफारिश की थी, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया था।
बड़े स्तर पर अवैध रूप से पेड़ों की कटाई के ऐसे मामलों पर देश की सर्वोच्च अदालत की ये टिप्पणियां देशभर में पेड़ों के संरक्षण और पर्यावरणीय जिम्मेदारियों के मुद्दे को उजागर करती हैं। अदालत के आदेश निश्चित रूप से बेहद महत्वपूर्ण हैं, जो इस दिशा में कार्रवाई करने की आवश्यकता को सामने लाते हुए पर्यावरण संरक्षण के प्रति हमारी जिम्मेदारियों को याद दिलाते हैं।
अदालत ने अपने इन निर्णयों से स्पष्ट संदेश दिया है कि पेड़ों की कटाई को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। अदालत के ये निर्णय देश के उन क्षेत्रों के लिए भी संदेश है, जहां पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है। पेड़ों की कटाई के ही कारण देश की राजधानी दिल्ली की स्थिति प्रदूषण को लेकर विनाशकारी हो गई है।
वृक्षों की बड़े पैमाने पर कटाई के कारण ही वायुमंडल में ऑक्सीजन की कमी होने और कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से दुनियाभर में मौसम चक्र बिगड़ने लगा है, जिससे सांस और संक्रमण जैसी बीमारियों को बढ़ावा मिल रहा है। हम सांस के जरिये कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ते हैं, वायुमंडल में फैली इसी कार्बन डाईऑक्साइड को वृक्ष ग्रहण करते हैं और उसके बदले में ऑक्सीजन छोड़ते हैं।
मानव जीवन पेड़ों पर ही निर्भर है क्योंकि इन्हीं से हमें ऑक्सीजन मिलती है। वायुमंडल में मौजूद ऑक्सीजन को प्राणवायु माना जाता है और पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक हमें अपने आसपास इतने वृक्ष अवश्य लगाने चाहिएं ताकि कम से कम अपने परिवार के लिए तो हम ऑक्सीजन की पूर्ति स्वयं ही कर सकें। एक व्यक्ति को दिनभर में काफी मात्रा में ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, इसीलिए पर्यावरणविदों का कहना है कि वृक्षारोपण कर स्वयं ऑक्सीजन पैदा करना बेहद जरूरी है अन्यथा जिस प्रकार आज हम पानी की बोतल खरीदकर पानी पीते हैं, उसी प्रकार हमारी आने वाली पीढ़ी को आने वाले समय में शुद्ध हवा की बोतलें खरीदने पर विवश पड़ेगा।
एक व्यक्ति वर्षभर में औसतन 9.5 टन हवा अपने अंदर लेता है, जिसमें इस हवा का 23 प्रतिशत हिस्सा ऑक्सीजन होता है, जिसकी पूर्ति के लिए हर व्यक्ति को सालभर की सांसों के लिए 7-8 वृक्षों की ऑक्सीजन चाहिए। इंसान को सामान्य रूप से सांस लेने के लिए हवा में कम से कम 19.5 फीसद ऑक्सीजन होनी चाहिए। वायुमंडल में यदि ऑक्सीजन नहीं होगी तो पृथ्वी पर जीवन समाप्त हो जाएगा, इसलिए ऑक्सीजन बचाने के लिए वृक्षों को बचाना और ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण पर जोर देना समय की बड़ी मांग है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक एक स्वस्थ वृक्ष प्रतिदिन करीब 230 लीटर ऑक्सीजन छोड़ता है, जिससे 6-7 लोगों को प्राणवायु मिल पाती है लेकिन पर्याप्त वृक्षों के अभाव में बहुत सारे स्थानों पर अब एक ही वृक्ष को करीब 20 लोगों को ऑक्सीजन देनी पड़ रही है। दरअसल वायुमंडल में पहले ऑक्सीजन की जितनी मात्रा होती थी, वृक्षों के अभाव में उसमें 10 प्रतिशत तक की कमी आ चुकी है और परिणामस्वरूप फेफड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाने के कारण दमा, घुटन, हृदय रोग, संक्रमण जैसी बीमारियां पनपने लगी हैं। नीम, बरगद, पीपल जैसे बड़े छायादार वृक्ष, जो 50 साल या उससे ज्यादा पुराने हों, उनसे तो प्रतिदिन 140 किलो तक ऑक्सीजन मिलती है।
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार करीब दो सौ वर्ष पुराने पीपल, नीम, बरगद इत्यादि के पेड़ प्रतिदिन 250 लीटर ऑक्सीजन का स्राव करते हैं। ऐसे में यह अनुमान लगाना कठिन नहीं कि ऐसे छायादार पुराने वृक्ष काटने से पर्यावरण को कितनी भारी क्षति पहुंचती है। यही वजह है कि ऐसे छायादार वृक्ष अपने आसपास के परिवेश में लगाने की प्राचीन भारतीय परम्परा रही है। नीम, बरगद, तुलसी इत्यादि प्रतिदिन 20 घंटे से भी ज्यादा समय तक ऑक्सीजन छोड़ते हैं जबकि पीपल तो दिन में 22 घंटे से भी ज्यादा समय तक ऑक्सीजन का स्राव करता है।
बांस के पेड़ किसी भी अन्य वृक्ष के मुकाबले 30 प्रतिशत ज्यादा ऑक्सीजन पैदा करते हैं। 100 विशाल वृक्ष प्रतिवर्ष 53 टन कार्बन डाईऑक्साइड तथा 200 किलोग्राम अन्य वायु प्रदूषकों को दूर करते हैं और 5.3 लाख लीटर वर्षा जल को थामने में भी मददगार साबित होते हैं। घर में सुनियोजित ढ़ंग से लगाए जाने वाले वृक्ष न केवल गर्मियों में ए.सी. की खपत में 56 फीसदी की कमी लाते हैं बल्कि सर्दियों में ठंडी हवाओं को भी रोकते हैं।
एक रिपोर्ट में बताया गया है कि किसी भी वृक्ष के वजन में एक ग्राम की वृद्धि से ही उससे 2.66 ग्राम अतिरिक्त ऑक्सीजन मिलती है तथा किसी विशाल वृक्ष से प्राप्त होने वाली ऑक्सीजन, फल, लकड़ी, बायोमास इत्यादि की कीमत के आधार पर पचास साल की अवधि में ऐसे वृक्ष की आर्थिक कीमत करीब दो लाख डॉलर होती है।
एक स्वस्थ वृक्ष से मिलने वाली ऑक्सीजन की कीमत के आधार पर ऐसे वृक्ष की सालाना कीमत करीब 24 लाख रुपये होती है। स्वच्छ प्राणवायु के अभाव में लोग तरह-तरह की भयानक बीमारियों के जाल में फंस रहे हैं, उनकी प्रजनन क्षमता पर इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है और कार्यक्षमता भी प्रभावित हो रही है।
कैंसर, हृदय रोग, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों का संक्रमण, न्यूमोनिया, लकवा इत्यादि के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और लोगों की कमाई का बड़ा हिस्सा इलाज पर ही खर्च हो जाता है। बहरहाल, तेजी से होते जलवायु परिर्वतन और प्रदूषण की विकराल होती स्थिति को देखते हुए अब यह समझने की सख्त जरूरत है कि हमारे वायुमंडल में जो ऑक्सीजन मौजूद है, उसमें सबसे बड़ा योगदान विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों का ही है।
(लेख में व्यक्त लेखक के निजी विचार हैं)