रिजर्व फॉरेस्ट में खनन की ई-नीलामी आदेश से नया संकट

ग्रामीणों का कहना है कि इस आदेश के बाद उनका निस्तार, उनके आसपास का पर्यावरण और वन्य प्राणियों पर संकट खड़ा हो जाएगा
रिजर्व फॉरेस्ट में खनन की ई-नीलामी आदेश से नया संकट
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मध्यप्रदेश के मंडला जिले के भंवरताल गांव के लोग इन दिनों एक संकट की दस्तक सुन रहे हैं। सरकार का एक आदेश लागू होने के बाद उनका संकट और बढ़ जाएगा। ग्रामीणों का कहना है कि इस आदेश के बाद उनका निस्तार, उनके आसपास का पर्यावरण और वन्य प्राणियों पर संकट खड़ा हो जाएगा, क्योंकि गांव के आसपास रिजर्व फारेस्ट और आरक्षित भूमि होने से उनकी आजीविका भी वनों पर निर्भर है, यह जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है और यह पेसा यानी पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आता है, गांव के लोगों ने ग्रामसभा में इस आदेश के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित करके विरोध जताया है और न्यायालय जाने की बात भी कह रहे हैं।

दरअसल मध्यप्रदेश में 22 जनवरी को मध्य प्रदेश गौण खनिज नियम, 1996 में एक संशोधन को अधिसूचित कर दिया। इस संशोधन के जरिए राज्य में गौण खनिज उत्खनन के लिए परमिट जारी करने के प्रक्रिया में संशोधन कर दिया गया है। इस संशोधित आदेश के बाद प्रदेश में रिजर्व फारेस्ट के अंदर खनन कार्य को लीज पर दिया जा सकेगा। इस आदेश का स्थानीय समुदायों द्वारा महापंचायत आयोजित कर विरोध किया जा रहा है।

भंवरताल गांव के निवासी निवासी सामाजिक कार्यकर्ता व वकील विभूति झा कहते हैं कि इस संशोधित आदेश के बाद वनों के अंदर गतिविधियां बढ़ेंगी, खनिज पदार्थों का वैध—अवैध उत्खनन बढ़ेगा। इससे वनों के भीतर बसाहटों और जैव विविधता, और वन्यप्राणियों पर संकट खड़ा हो जाएगा, इसका दूरगामी असर दिखाई देगा। बात अकेले भांवरताल गांव की नहीं है, उससे सटे आसपास के गांव काताजर, करवाही, भांगा, मलारा आदि में इसका असर दिखाई देगा क्योंकि यह गांववासी उसके आसपास चरवाही से लेकर निस्तार के लिए जलाउ लकड़ी आदि के लिए भी इन्हीं वनों पर निर्भर हैं।

इस इलाके में पहले से ही डोलोमाइट उत्खनन होता रहा है, इंडियन ब्यूरेा आफ माइंस के मुताबिक देश का तकरीबन 27 फीसदी डोलोमाइट मध्यप्रदेश में पाया जाता है। इसका बड़ा हिस्सा मंडला मे भी है। आदेश के बाद मंडला जिले में डोलोमाइट उत्खनन का दायरा  बढ़कर कान्हा टाइगर रिजर्व वाले इलाके में भी पहुंचने का खतरा हो जाएगा। ग्रामसभा में पारित प्रस्ताव में लिखा गया है कि जिन इलाकों में डोलोमाइट खनन के लिए अनुमति दी जानी है उन इलाकों में वन्यप्राणियों की चहलकदमी रहती है। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 2015 से लेकर अब तक 130 मामलों में वनविभाग ने पशु हानि के लिए मुआवजा भी दिया है। यह मामले तेंदुआ या बाघ द्वारा पालतु पशुओं को मारने के मामले से संबंधित हैं। विभूति झा कहते हैं कि यदि इस क्षेत्र में खनन की अनुमति दी जाती है तो न केवल जंगल काटे जाएंगे, वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण भी होगा, जिसका असर कान्हा टाइगर रिजर्व पर पड़ने की आशंका है।

हालांकि सरकार का कहना है कि इस पूरे मामले पर स्थानीय समुदाय से दावे और आपत्तियां मंगवाने के बाद ही आगे की प्रक्रिया में जाया जाएगा। जिला कलेक्टर हर्शिका सिंह कहती हैं कि इस मामले में स्थानीय समुदाय से नोटिस देकर दावे और आपत्तियां आमंत्रित की जा रही हैं। इसके बाद ही आगे बढ़ा जाएगा। सामाजिक कार्यकर्ता विभूति झा का कहना है कि इन दावे और आपत्तियों के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया जा रहा है, जबकि इससे प्रभावित होने वाला एक बड़ा वर्ग है। 

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