चार दशक बाद वन्यजीव व्यापार से जुड़े नियमों में संशोधन, व्यापार की राह हुई आसान

वन्यजीव व्यापार से जुड़े नियमों में 1983 के बाद किए यह पहले संशोधन हैं, जिनके बारे में अधिसूचना 16 जनवरी 2024 को लागू की गई है
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केंद्र सरकार ने चार दशक के बाद वन्यजीव व्यापार से जुड़े अपने नियमों में संशोधन किया है। इसके तहत कुछ प्रजातियों को अब वन्यजीव व्यापार के लिए लाइसेंस प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया है। 16 जनवरी 2024 को एक नई सरकारी अधिसूचना जारी की गई है। बता दें कि यह वन्यजीव व्यापार नियमों में 1983 के बाद पिछले चार दशकों में किया पहला संशोधन है।

इस बारे में सरकार ने वन्य जीवन (संरक्षण) लाइसेंसिंग (विचार के लिए अतिरिक्त मामले) नियम, 2024 जारी किया है। इसके तहत सरकार ने उन व्यक्तियों या संस्थाओं को लाइसेंस देने के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं जो सांप के जहर, जानवरों के हाड़-मांस के व्यापार से जुड़े हैं या इन जानवरों को पालने या अन्य वजहों के लिए कैद में रखते हैं।

गौरतलब है कि इससे पहले 1983 में जो नियम लागू किए गए थे उनके तहत वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत अनुसूची I या अनुसूची II के भाग II में वर्गीकृत जंगली जानवरों के व्यापार के लिए लाइसेंस नहीं जारी किए जा सकते, जब तक कि केंद्र सरकार विशेष मामलों में इसकी मंजूरी नहीं देती।

वहीं अब, नए दिशानिर्देशों के प्रभावी होने साथ, सरकार का कहना है कि, "अधिनियम की अनुसूची I में सूचीबद्ध जंगली जानवरों के व्यापार के लिए कोई लाइसेंस जारी नहीं किया जाएगा, जब तक कि पहले केंद्र सरकार से परामर्श न किया जाए।"

इसमें कहा गया है कि लाइसेंस जारी करने का निर्णय लेते समय अधिकृत अधिकारियों को यह विचार करना होगा कि आवेदन करने वाला व्यक्ति उस व्यवसाय को संभाल सकता है या नहीं। साथ ही सुविधाओं, उपकरणों और व्यवसाय के लिए स्थान उपयुक्त है या नहीं, इस पर भी विचार करना जरूरी है। अधिकारी को यह भी जांचना होगा कि व्यवसाय को इसकी आपूर्ति कैसे और कहां से मिलेगी और उस क्षेत्र में पहले से ही कितने अन्य लाइसेंस जारी किए गए हैं, उसको भी ध्यान में रखना होगा।

इन दिशानिर्देशों में इस बारे में भी विचार करने की बात कही गई है कि लाइसेंस देने से जंगली जानवरों के शिकार या व्यापार पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि इस अधिसूचना में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि अनुसूची II में शामिल प्रजातियों पर से प्रतिबंध हटाने का फैसला क्यों लिया गया है।

बता दें कि इससे पहले केंद्र सरकार ने 2022 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में भी बदलाव किया था, जिसके तहत जंगली जानवरों की चार अनुसूचियों को दो में मिला दिया था और कुल छह अनुसूचियों को घटाकर चार कर दिया था।

यह जो नए संशोधन किए गए हैं उनके मुताबिक अनुसूची I में उन जानवर को शामिल किया गया है, जिन्हें सबसे ज्यादा सुरक्षा की आवश्यकता है। वहीं अनुसूची II में वे  प्रजातियां शामिल हैं जिन्हें तुलनात्मक रूप से कम सुरक्षा की आवश्यकता है। इसमें पौधों की प्रजातियों को अनुसूची II के तहत सूचीबद्ध किया गया है, जबकि अनुसूची IV में वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन यानी सीआईटीईएस के तहत संरक्षित प्रजातियों को रखा गया है।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत, अनुसूची II में सूचीबद्ध कुछ जीवों में गौरैया, बुलबुल, बत्तख, हंस, उल्लू, पतंग, बाज, चील, और प्रिनियास जैसे पक्षी शामिल हैं। इनके साथ ही इसमें सांप और कछुओं के साथ-साथ हिरण, खरगोश, चूहे और लंगूर जैसे स्तनधारी और गेको एवं मेंढक जैसे उभयचर जीव भी शामिल हैं। गौरतलब है कि विश्व वन्यजीव रिपोर्ट 2020 के मुताबिक 1999 से 2018 के बीच वैश्विक स्तर पर पौधों और जीवों की करीब 6,000 प्रजातियां जब्त की गई थी।

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