नैनीताल: किंग कोबरा को बचाने की धुन

तकरीबन 10 से 12 फीट लंबा किंग कोबरा एक मात्र ऐसा सर्प है जो घोंसला बनाकर अंडे देता है
अपने घोंसले में आराम फरमा रहा किंग कोबरा। फोटो: ज्योति प्रकाश
अपने घोंसले में आराम फरमा रहा किंग कोबरा। फोटो: ज्योति प्रकाश
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मानसून के इस समय पहाड़ों पर घने जंगलों के बीच किंग कोबरा अपने अंडों की सुरक्षा कर रहे हैं। अंडों से बच्चों के निकलने तक मादा सांप अपने घोंसले से नहीं हिलेगी। चाहे उसे कई-कई दिनों तक भूखा क्यों न रहना पड़े। हालांकि नर सांप इस दौरान भोजन के इंतज़ाम का ज़िम्मा उठाता है।

नैनीताल में जिग्नासू डोलिया ऐसे ही कुछ घोंसलों की निगरानी कर रहे हैं। वह देहरादून में भारतीय वन्यजीव संस्थान के शोधार्थी हैं। घोंसलो की निगरानी के साथ ही उनका काम आसपास के ग्रामीणों से भी तालमेल बिठाए रखना है। ताकि वे घोंसलों की सुरक्षा में मदद करें। न कि सांप के डर से उन पर हमला करें।

तकरीबन 10 से 12 फुट लंबा किंग कोबरा एक मात्र ऐसा सर्प है जो घोंसला बनाकर अंडे देता है। सांपों की सभी प्रजातियों में ये सबसे ज्यादा शक्तिशाली और भोजन चक्र में सबसे ऊपर आता है।

आखिर किंग कोबरा घोंसले क्यों बनाता हैजिग्नासू कहते हैं मैं पिछले 10 वर्षों से किंग कोबरा के घोंसलों का अध्ययन कर रहा हूं। इन दस वर्षों में मैंने करीब 26 घोंसलों की निगरानी की है। इतना दिमाग और इतनी ममता किसी अन्य सांप में नहीं दिखाई देती। मेरा मानना है कि वे अंडे देने के साथ उसकी सुरक्षा, अंडों के तैयार होने के लिए जरूरी तापमान और नमी को बनाए रखने के लिए ऐसा करते हैं। पाइथन जैसे कुछ अन्य सांप भी अपने अंडों की सुरक्षा करते हैं लेकिन घोंसला सिर्फ किंग कोबरा ही बनाता है” 

किंग कोबरा एक बार में कम से कम 15 और अधिक से अधिक 40 अंडे देते हैं। अंडों से बच्चे निकलने में तकरीबन 70 से 100 दिनों का समय लगता है।

संरक्षण और समुदाय

किंग कोबरा जैसे सर्पों के संरक्षण के लिए जरूरी है कि लोगों के अंदर से इनका डर कम किया जाए और उन्हें संरक्षण के लिए प्रोत्साहित किया जाए। उत्तराखंड में मानव-सर्प संघर्ष कम करने के लिए वर्ष 2020 में समुदाय आधारित प्रोजेक्ट भी शुरू किया गया है। कुमाऊं के गांवों में जिग्नासू ग्रामीणों को जागरुक करने का कार्य कर रहे हैं। स्कूलों में भी जागरुकता कार्यक्रम किये जाते हैं।

जिग्नासू कहते हैं वैसे तो हमारे देश में सांपों की पूजा करते हैं। लेकिन डर और कम जानकारी की वजह से सांप मारे जाते हैं। लोग सोचते हैं कि हर सांप जहरीला होता है। जबकि तकरीबन 80 प्रतिशत सांप ज़हरीले नहीं होते। उत्तराखंड में करीब 35-40 सर्प प्रजातियां पायी जाती हैं। इनमें से 8 या 10 ही ज़हरीली होंगी। हम ग्रामीणों से बात करते हैं और इको सिस्टम में सांपों की अहमियत बताते हैं

ग्रामीण क्षेत्रों में जागरुकता कार्यक्रमों का असर हुआ है। जिग्नासू बताते हैं ग्रामीण जंगल में चारा-पत्ती लाने या पशु चराने जाते हैं। वहां उन्हें किंग कोबरा के घोंसले या अन्य सांप दिखाई देते हैं तो वे हमें इसकी सूचना देते हैं। ऐसा करने पर विभाग की ओर से उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है ताकि उनके अंदर संरक्षण का भाव आए

वह कहते हैं लोगों की भागीदारी के बिना किंग कोबरा या अन्य सांपों को संरक्षित नहीं किया जा सकता। क्योंकि सांपों पर सबसे बड़ा खतरा लोगों से ही है। आप किंग कोबरा के एक घोंसले की रक्षा करते हैं तो एक साथ कई अंडों की सुरक्षा होती है

बदलाव

नैनीताल निवासी तुलसी नेगी कहती हैं हमारे क्षेत्र में किंग कोबरा और दूसरे सांप आए दिन मिलते रहते हैं। स्थानीय भाषा में हम किंग कोबरा को शामी कहते हैं। पहले सांप दिखने पर लोग डर जाते थे और उन्हें मारने की  बात ही सोचते थे। लेकिन जब जिग्नासू ने ग्रामीणों को सांपों की अहमियत बतायी, उन्हें बचाने के लिए प्रेरित किया तो लोगों के व्यवहार में भी बदलाव आ रहा है। वे समझ रहे हैं कि किंग कोबरा दूसरे सांपों की आबादी नियंत्रित करता करता है। फ़सल को नष्ट करने वाले चूहों की आबादी को भी कंट्रोल करता है

तुलसी बताती हैं कि वर्ष 2016 उनके घर के पास भी किंग कोबरा का घोंसला मिला था। सांप के बच्चों के निकलने तक उन्होंने घोंसले को हाथ नहीं लगाया।  

हिमालयी किंग कोबरा का रहस्य

हिमालयी क्षेत्र का विस्तार जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक हैं। लेकिन सिर्फ नैनीताल और उसके आसपास ही किंग कोबरा ठीकठाक संख्या में दिखाई देते हैं।

हिमालयी किंग कोबरा का अध्ययन कर रहे जिग्नासू बताते हैं वैसे तो हिमाचल प्रदेश में भी किंग कोबरा के देखे जाने की घटना दर्ज की गई है। सबसे अधिक ऊंचाई पर ये उत्तराखंड में ही देखा गया है। हमारे लिए  अचरज की बात है कि इतने ठंडे हिमालयी वातावारण में ये रहते कैसे हैं

अमूमन किंग कोबरा देश के दक्षिणी हिस्सों में वर्षा वनों में पाए जाने वाले सांप हैं। लेकिन उत्तराखंड में समुद्र तल से 300 मीटर की ऊंचाई पर कार्बेट नेशनल पार्क से लेकर मुक्तेश्वर में 2300 मीटर ऊंचाई तक इनकी मौजूदगी दर्ज की गई है।

कहीं हिमालयी किंग कोबरा पश्चिमी घाट से जुड़े 6 राज्यों में पाए जाने वाले किंग-कोबरा से अलग प्रजाति के तो नहीं? कर्नाटक में सरीसृप प्रजातियों के विशेषज्ञ पी गौरीशंकर इस संभावना से इंकार नहीं करते। उन्होंने कर्नाटक से लेकर बर्मा, वियतनाम, थाईलैंड, सुमात्रा, बाली, फिलिपिंस तक किंग कोबरा की मौजूदगी वाले क्षेत्रों का अध्ययन किया है। वह इस समय किंग कोबरा की जेनेटिक्स से जुड़ा शोध कर रहे हैं। उनके शोध के नतीजों के लिए हमें कुछ समय इंतज़ार करना होगा। संभव है कि थाईलैंड का किंग कोबरा, कर्नाटक के किंग कोबरा से अलग हो। कुमाऊं का किंग कोबरा अलग प्रजाति का हो

उत्तराखंड वन विभाग ने भी वर्ष 2015 से जुलाई 2020 तक राज्य में किंग कोबरा की मौजूदगी का अध्ययन किया। अलग-अलग स्रोतों से मिली सूचनाओं के आधार पर 5 ज़िलों में 135 बार किंग कोबरा देखे जाने की सूचना दर्ज की गई। इनमें सबसे अधिक नैनीताल में 86 बार, देहरादून 32, पौड़ी 12, उत्तरकाशी 3 और हरिद्वार में 2 बार किंग कोबरा की मौजूदगी दर्ज की गई।

नैनीताल में किंग कोबरा के घोंसले चीड़-बांज की पत्तियों से बने मिले। जबकि दक्षिणी राज्यों में किंग कोबरा के हैबिटेट में चीड़ वन नहीं पाए जाते।

खतरा

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत किंग कोबरा को शेड्यूल 2 में रखा गया है। आईयूसीएन ने इसे Vulnerable यानी संकटग्रस्त प्रजाति माना है। जिस शक्तिशाली सर्प का सामना बाघ-हाथी भी नहीं करते, उनके अस्त्तिव पर खतरा इंसानों से है।

पी. गौरीशंकर कहते हैं विकास से जुड़ी गतिविधियों हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट, जंगल में सड़क-रेल जैसे निर्माण से इनका प्राकृतिक आवास सिकुड़ रहा है। लेकिन अच्छी बात ये है कि जिग्नासू डोलिया जैसे कुछ लोगों ने अपना जीवन इन सर्पों के लिए समर्पित कर दिया है।

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