सालाना 50 फीसदी की दर से नष्ट हो रहे हैं पहाड़ी जंगल, खतरे में जैव विविधता: अध्ययन

दुनिया भर में, 2000 के बाद से 7.81 करोड़ हेक्टेयर यानी 7.1 फीसदी पहाड़ों के जंगल गायब हो गए हैं
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, रॉड वैडिंगटन
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दुनिया के 85 फीसदी से अधिक पक्षी, स्तनपायी और उभयचर प्रजातियां पहाड़ी जंगलों में रहते हैं, लेकिन ये जंगल तेजी से गायब हो रहे हैं। अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में, 2000 के बाद से 7.81 करोड़ हेक्टेयर यानी 7.1 फीसदी पहाड़ी जंगल गायब हो गए है। अधिकांश नुकसान उष्णकटिबंधीय जैव विविधता हॉटस्पॉट में हुआ है, जिससे संकटग्रस्त प्रजातियों पर दबाव बढ़ रहा है।

21वीं सदी की शुरुआत के बाद से इन पहाड़ी जंगलों का तेजी से शोषण किया गया है क्योंकि तराई क्षेत्र कम हो गए हैं या संरक्षण के अधीन हैं। यह अध्ययन यूके में लीड्स विश्वविद्यालय के डोमिनिक स्प्रैकलेन और जोसेफ होल्डन के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम और चीन में दक्षिणी विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सहयोग से किया गया है। जहां शोधकर्ताओं ने झेनझोंग ज़ेंग पर्वत पर जंगलों के नुकसान की सीमा और वैश्विक वितरण का पता लगाया है।

ऐसा करने के लिए, टीम ने 2001 से 2018 तक हर एक साल के आधार पर पहाड़ के जंगलों में होने वाले बदलाव पर नजर रखी। उन्होंने पेड़ों के आवरण में नुकसान और बढ़ोतरी दोनों की मात्रा निर्धारित की, अनुमान लगाया कि किस दर पर बदलाव हो रहा है, विभिन्न ऊंचाई और पहाड़ी जंगलों के प्रकारों की तुलना में बोरियल, समशीतोष्ण, उष्णकटिबंधीय और जैव विविधता पर इस जंगलों के नुकसान के प्रभावों का पता लगाया।

अध्ययनकर्ता कहते हैं, दुनिया भर में ऊंचाई वाले ग्रेडियेंट के साथ जंगलों के नुकसान की गति की जानकारी यह समझने के लिए महत्वपूर्ण है कि पेड़ों की प्रजातियों के लिए उपलब्ध जंगली इलाकों की मात्रा कैसे और कहां बदल जाएगी, क्योंकि वे बढ़ते तापमान के जवाब में बदल जाएंगे

इमारती लकड़ी उद्द्योग से समग्र रूप से पहाड़ों में होने वाले जंगलों का नुकसान का सबसे बड़ा कारण था, यह 42 फीसदी तक देखा गया। इसके बाद जंगल की आग जिसका हिस्सा 29 फीसदी, खेती के लिए जंगल में आग लगा देना जो 15 फीसदी और स्थायी या अर्ध-स्थायी कृषि 10 फीसदी तक के लिए जिम्मेवार पाई गई थी।

हालांकि इन विभिन्न कारणों का असर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में अलग-अलग होता है। एशिया, दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में भारी नुकसान हुआ, लेकिन उत्तरी अमेरिका और ओशिनिया में ऐसा नहीं है।

यह काफी चिंताजनक है कि पर्वतीय पेड़ों के नुकसान की दर में तेजी आ रही है, 2001 से 2009 और  2010 से 2018 तक नुकसान की वार्षिक दर में 50 फीसदी की वृद्धि हुई, जब हमने हर एक साल लगभग 52 लाख हेक्टेयर पर्वतीय वनों को खो दिया।

अध्ययनकर्ता कहते हैं कि यह हो सकता है मुख्य भूमि दक्षिण पूर्व एशिया में तेजी से कृषि विस्तार के कारण ऐसा हो रहा है। साथ ही पहाड़ी जंगलों के काटे जाने में वृद्धि के कारण या तो तराई के जंगलों की कमी हो गई है, या तराई के जंगल संरक्षित हो गए हैं।

उष्णकटिबंधीय पहाड़ी जंगलों में सबसे अधिक नुकसान हुआ है, जो कि दुनिया भर के पूरे का 42 फीसदी और सबसे तेज दर है। लेकिन समशीतोष्ण और बोरियल क्षेत्रों में पहाड़ के जंगलों की तुलना में तेजी से बढ़ने की दर भी देखी गई। कुल मिलाकर, शोधकर्ताओं ने जंगलों के गायब होने 23 फीसदी क्षेत्रों में वृक्षों के आच्छादन के कुछ संकेतों को देखा।

संरक्षित क्षेत्रों में असुरक्षित क्षेत्रों की तुलना में पेड़ों का नुकसान कम हुआ है, लेकिन शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि यह खतरे वाली प्रजातियों को संरक्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। अध्ययनकर्ता कहते हैं, जैव विविधता हॉटस्पॉट में संवेदनशील प्रजातियों के संबंध में, महत्वपूर्ण मुद्दा जंगलों के नुकसान को रोकने से भी आगे तक फैला हुआ है। हमें प्राकृतिक गतिविधियों और प्रजातियों को लेकर पर्याप्त जगह की अनुमति देने के लिए बड़े पर्याप्त क्षेत्रों में जंगलों को भी बनाए रखना होगा।

अध्ययनकर्ता जंगलों की सुरक्षा रणनीतियों और हस्तक्षेपों को विकसित करते समय मानव आजीविका और कल्याण पर विचार करने के महत्व पर भी जोर देते हैं। पहाड़ी जंगलों की रक्षा के लिए कोई भी नया उपाय स्थानीय परिस्थितियों के हिसाब से होना चाहिए और खाद्य उत्पादन और मानव कल्याण सुनिश्चित करने के साथ वन संरक्षण की आवश्यकता में सामंजस्य स्थापित किया जाना चाहिए। यह अध्ययन वन अर्थ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। 

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