लद्दाख में फंसे हैं 150 से ज्यादा पहाड़िया और संताली आदिवासी

झारखंड के विभिन्न इलाकों में रह रहे आदिवासी लगभग हर साल कारगिल, लद्दाख जैसे इलाकों में सड़क निर्माण के लिए जाते हैं
लद्दाख में फंसे झारखंड के आदिवासी। फोटो: आनंद दत्त
लद्दाख में फंसे झारखंड के आदिवासी। फोटो: आनंद दत्त
Published on

आनंद दत्त

लद्दाख, करगिल में झारखंड के 150 से अधिक मजदूर फंसे हुए हैं। ये अपने घर आना चाहते हैं, लेकिन अब तक राज्य सरकार ने कोई ठोस इंतजाम नहीं किया है। 

लद्दाख के गोरगोदोह इलाके में मजदूरी कर रहे पूरन देहरी ने डाउन टू अर्थ को फोन पर बताया कि वह दुमका के रहनेवाले हैं। पहाड़िया आदिवासी हैं। लद्दाख आए नौ महीने हो चुके हैं। घर लौटने का समय आया तो लॉकडाउन हो गया। वे लोग सड़क निर्माण का काम करते हैं। उन्हें ठेकेदार लेकर आया था, लेकिन निर्माण का काम भी दो महीने से बंद है। 

वहीं रामेश्वर देहरी ने बताया कि प्रत्येक मजदूर का ठेकेदार पर लगभग 55,000 रुपया बकाया है, जो उन्हें मिलना है। सड़क निर्माण कंपनी की तरफ से ये पैसा ठेकेदार को दिया जा चुका है, लेकिन ठेकेदार चला गया है। उसी के पास इन लोगों के कागजात और एटीएम हैं। यही वजह है कि उनके पास पैसा भी नहीं है।

लिचु पहाड़िया ने बताया कि आसपास के लोगों की मदद से खाना खा रहे हैं। उसमें भी केवल रोटी और चावल खा पाते हैं। सब्जी खाए तो कई दिन हो गए। चामरु देहरी ने बताया कि गांव में खेती-बाड़ी का समय हो गया है। परिजन इंतजार कर रहे हैं। वहां भी परेशानी है, वह हाट-बजार भी नहीं जा पा रहे हैं, जिस वजह से घर में भी पैसा नहीं आ पा रहा है।

सोनातोम देहरी के मुताबिक झारखंड के लोग करगिल और लद्दाख के अलावा थरूस, दरचिग, गोरगोदो जैसे इलाकों में भी हैं। सभी सड़क निर्माण का ही काम करते हैं। लेह के इलाके में तो तीन दिन की चढ़ाई कर वहां पहुंचते हैं, फिर काम करते हैं। करगिल में काम कर रहे शिबू ने बताया कि वह घर जाना चाहते हैं, लेकिन कोई उपाय नहीं दिख रहा है। 

हालांकि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लगातार ये कहते रहे हैं कि मजदूर जब तक आना चाहें, सरकार उन्हें लाती रहेगी। चाहे इसके लिए हवाई जहाज का ही इस्तेमाल क्यों न करना पड़े। लद्दाख, करगिल से सीधे रेलमार्ग और मजदूरों की संख्या कम होने से हवाई मार्ग से ही इन्हें लाना संभव है. एक ट्वीट कर उन्होंने इन मजदूरों के लिए लद्दाख गवर्नर ऑफिस और लद्दाख ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल से मदद की अपील की है। हालांकि मजदूरों के वापस आने की संभावनाओं पर कोई बयान नहीं दिया गया है।

वहीं केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि ‘’मजदूरों को पहले रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इसके बाद यह रेलवे और राज्य सरकार के बीच का मसला है। इन सभी के लिए अधिकारी पहले से नियुक्त हैं। राज्य सरकार की पहल से ही यह संभव है।’’  

राज्य सरकार की ओर से लद्दाख के लिए नोडल अधिकारी के तौर पर अमिताभ कौशल को नियुक्त किया गया है। वहीं, सरकार की ओर से जो उनका नंबर जारी किया गया है, वह 11 डिजिट का है। यानी जिनके पास यह नंबर है, वह चाहकर भी फोन नहीं कर सकते हैं। 

भोजन का अधिकार अभियान से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता सिराज दत्ता कहते हैं, ‘’ये अच्छी बात है कि सीएम हेमंत सोरेन कह रहे हैं कि वह सबको वापस लाएंगे, लेकिन कैसे वापस लाएंगे, इसको लेकर कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं है। अगर मजदूर रजिस्ट्रेशन करता है तो उसके कब तक लाया जाएगा, लाने की सूचना उस तक कैसे पहुंचेगी, इसको लेकर अभी तक स्पष्टता नहीं है। यही वजह है कि ट्रेनें चलने के बावजूद बड़ी संख्या में मजदूर पैदल निकल रहे हैं।’’ 

रामेश्वर देहरी एक बार फिर कहते हैं, ‘’रजिस्ट्रेशन के बारे में उनको जानकारी नहीं है। आप सरकार से कहिये कि किसी तरह वह हमें घर पहुंचा दे और ठेकेदार से पैसा दिलवा दे. अगर पैसा नहीं मिला तो घर जाकर भी खाली हाथ ही रहेंगे।’’ 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अब तक लगभग तीन लाख लोग जो बाहर के राज्यों में फंसे हैं, वापस आने के लिए रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं। इसमें लगभग 20 हजार लोग झारखंड आ चुके हैं। हर दिन ऐसे लोगों के आने का सिलसिला जारी है। 

2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड में आदिवासियों की संख्या 86,45,042 है। इसमें पहाड़िया को विलुप्त प्राय आदिम जनजाति की कैटेगरी में रखा गया है. पहाड़िया में भी दो तरह के आदिवासी हैं। एक हैं माल पहाड़िया और दूसरे सोरैया पहाड़िया. इसके अलावा अन्य सात आदिम जनजाति को इस कैटेगरी में रखा गया है। राज्य में कुल 32 जनजाति रहते हैं। यह कुल जनसंख्या का लगभग 27 प्रतिशत है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in