ओनन का पीछा होता रहा। भारत में मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के पास भी कुछ लोग ओनन का पीछा करते हुए पहुंचे। वहीं, इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईसीयूएन) के सदस्य और आईएफएस प्रवीण कासवान ने ओनन पक्षी की प्रवास यात्रा को लगातार ट्रैक किया। भारत में उसे इंटरनेट पर लोकप्रिय भी बनाया। उन्होंने डाउन टू अर्थ को बताया कि "यह अध्ययन बताता है कि कितने आश्चर्यजनक तरीके से पक्षियों की यह प्रवास यात्रा पूरी होती है और यह पक्षी ही हैं जो दुनिया को कैसे एक दूसरे से जोड़ते हैं। संरक्षण हमेशा सीमाओं को पार होकर करने वाली चीज है। ओनन ने हमे बहुत सिखाया है और वह हमेशा जीवित रहेगा।"
मंगोलियाई कुकू की प्रवास यात्रा से जुड़ी इस परियोजना की शुरुआत करने वाले बर्ड बीजिंग के संस्थापक टेरी टाउनशेंड ने डाउन टू अर्थ को ओनन के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। उनकी इस परियोजना में ब्रिटिश ट्रस्ट ऑफ ओनिथोलॉजी और वाइल्डलाइफ साइंस एंड कंजर्वेशन सेंटर ऑफ मंगोलिया सहयोगी हैं। वहीं ओरिएंटल बर्ड क्लब भी उन्हें सहयोग दे रहा है। बर्ड बीजिंग संस्थापक टेरी टाउनशेंड से डाउन टू अर्थ के विवेक मिश्रा की बातचीत :
क्या हजारों मील का सफलता पूर्वक सफर तय करने वाले कुकू पक्षी ओनन के मृत्यु की खबर सत्य है ?
हम कभी 100 फीसदी यह नहीं जान पाएंगे कि ओनन मर चुका है। लेकिन हम सबसे ज्यादा यकीन करने वाली संभावित बात कह सकते हैं। यह संभव है कि ओनन पर लगाया गया टैग उसके बदन से हट गया हो। लेकिन ऐसा होने की संभावनना बेहद कम है। टैग से मिलने वाले तापमान के आंकड़े यह बताते हैं कि या तो टैग बंद हो गया है या फिर पक्षी मर चुका है। और हम ऐसा सोचते हैं कि बाद में कही गई बात की संभावना ज्यादा है।
मंगोलियाई कुकू प्रोजेक्ट का मुख्य मकसद क्या पता लगाना था?
इस परियोजना के दो मकसद हैं। पहला तो यह कि पूर्वी एशिया में कुकू कहां पर ठंड में अपना प्रवास करते हैं और कौन सा रास्ता वे वहां पहुंचने के लिए चुनते हैं। इसके अलावा दूसरा मकसद है ज्यादा से ज्यादा लोगों को प्रवासी पक्षियों के आश्चर्य से जोड़ना है। उनमें यह जागरुकता पैदा करनी है कि आखिर उन्हें इन पक्षियों के डेरों को क्यों संरक्षित करें।
इस परियोजना से हासिल होने वाले परिणाम क्या मदद पहुंचाएंगे ?
प्रवासी पक्षियों की इस सुदूर और अविराम यात्रा के परिणाम एक बेहतर समझ बनाने में मदद करेंगे कि आखिर कुकू और अन्य प्रवासी पक्षियों की जरूरत क्या है। इससे उनके संरक्षण में हमें ज्यादा मदद मिल पाएगी।