लाखों साल पहले हमारे पूर्वजों ने की थी प्रकृति के विनाश की शुरुआत, हमने बढ़ाई रफ्तार

एक अध्ययन के मुताबिक, मांसाहारी जीवों के विलुप्त होने का सबसे मुख्य कारण हमारे पूर्वजों और उनके बीच भोजन के लिए सीधी प्रतिस्पर्धा और संघर्ष का होना था
जीवों की संख्या में इस कमी का आना करीब 40 लाख साल पहले शुरू हुआ था। फोटो अग्निमीर बासु
जीवों की संख्या में इस कमी का आना करीब 40 लाख साल पहले शुरू हुआ था। फोटो अग्निमीर बासु
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प्रकृति का विनाश कोई नई बात नहीं है, आज जहां देखों वहां अलग-अलग रूप से इसका दोहन किया जा रहा है। मानव अपने लोभ में इतना अंधा हो चुका है कि उसे भले बुरे का ज्ञान भी नहीं रहा| पर शोधकर्ताओं की मानें तो इसकी यह चाह, यह अभिलाषा कोई नहीं बात नहीं है। इंसान ने बहुत साल पहले ही जैव विविधता का हनन करना शुरू कर दिया था। यूनिवर्सिटी ऑफ गोथेनबर्ग द्वारा किये नए अध्ययन से पता चला है कि विनाश की यह प्रक्रिया हमारे द्वारा नहीं बल्कि हमारे पूर्वजों द्वारा शुरू की गई थी।

यह अध्ययन साइंटिफिक जर्नल इकोलॉजी लेटर्स में प्रकाशित हुआ है| जिसे स्वीडन, स्विट्जरलैंड और यूनाइटेड किंगडम के वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने सम्मिलित रूप से किया है। गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ता और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक सॉरेन फॉर्बी ने बताया कि "अक्सर हमें जीवाश्म प्राप्त होते रहते हैं। जो अतीत की ओर इशारा करते हैं| वैज्ञानिकों द्वारा आमतौर पर इन जीवों के विनाश के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है। हमारे विश्लेषण बताते हैं कि जीवों की विलुप्ति का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन नहीं था। पिछले कुछ लाख सालों में अफ्रीका की जलवायु में बहुत मामूली सा अंतर आया है। इस अध्ययन के सह लेखक और जीवविज्ञानी डैनियल सिलवेस्ट्रो इसके लिए हमारे पूर्वजों को जिम्मेवार मानते हैं। उनके अनुसार पूर्वी अफ्रीका में मांसाहारी जीवों के विलुप्त होने का सबसे मुख्य कारण हमारे पूर्वजों और उनके बीच भोजन के लिए सीधी प्रतिस्पर्धा और संघर्ष का होना था। 

इस शोध के सह-लेखक और अफ्रीकी जीवाश्मों के विशेषज्ञ लार्स वेरडेलिन के अनुसार, "पूर्वी अफ्रीका में कई लाख साल पहले हमारे पूर्वजों का पाया जाना आम बात थी, और उस समय कई जीवों के विलुप्त होने का भी पता चला है| "अफ्रीकी जीवाश्मों की जांच से हमें उसी समय पर बड़े मांसाहारी जीवों की संख्या में भारी कमी देखने को मिली है| जीवों की संख्या में इस कमी का आना करीब 40 लाख साल पहले शुरू हुआ था, जिस समय, हमारे पूर्वजों ने क्लेप्टोपैरिटिज़्म नामक भोजन प्राप्त करने की एक नई तकनीक का उपयोग करना शुरू किया था| क्लेप्टोपैरिटिज़्म का मतलब है कि अन्य शिकारी जीवों से उनके हाल ही में मारे गए शिकार की चोरी करना।

उदाहरण के लिए, जिस तरह एक शेर, चीते द्वारा मारे गए मृत हिरन की चोरी करता है। वैज्ञानिकों के अनुसार जीवाश्म साक्ष्यों से पता चला है कि हमारे पूर्वजों ने अन्य शिकारियों से उनके द्वारा मारे गए शिकार को चुरा लिया था। जिसके चलते पहले कुछ जानवरों को भुखमरी का सामना करना पड़ा था और यह भुखमरी समय के साथ उनकी पूरी प्रजाति के विलुप्त होने का कारण बनी।

सोरेन फॉर्बी ने बताया कि, यही कारण है कि अफ्रीका में अधिकांश बड़े मांसाहारी जीवों ने अपने शिकार को बचाने के लिए अलग-अलग रणनीति विकसित की है। उदाहरण के लिए, आमतौर पर तेंदुआ अपने शिकार को बचाने के लिए उसे पेड़ पर रखता है। जबकि कुछ मांसाहारी जीवों में उसे बचाने के लिए सामाजिक व्यवहार विकसित हुआ है| जैसा कि हम शेरों में देखते हैं, जो अन्य शेरों के साथ मिलकर शिकार साझा करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं। 

आज मानुष दुनिया को कहीं अधिक तेज गति से प्रभावित कर रहा है। साथ ही जीवों की प्रजातियां पहले से कहीं अधिक संख्या में रह रही हैं| जिसका मतलब है कि हम अधिक संख्या में जीवों को प्रभावित कर रहे हैं| इसका यह भी अर्थ नहीं है कि हम पहले  प्रकृति के साथ मिलकर रहते आये हैं| संसाधनों पर एकाधिपत्य की यह भावना लाखों सालों से हमारे पूर्वजों में रही हैं, जो हमें उनसे विरासत में मिली है। आज हम कहीं अधिक शिक्षित, सक्षम और कार्यकुशल हैं। हमें सही-गलत की समझ है। और हम अपनी गलतियों से सीख सकते हैं और उन्हें बदल और सुधार सकते हैं| आज हम अपने स्थायी भविष्य के बारे में पहले से कहीं अधिक चिंतित और प्रयासरत हैं| और इन सबमें एक बात जो हमें सब जीवों से अलग बनाती है वो है हमारी भावना। इंसान जितना अधिक शक्तिशाली हो उसे दुर्बल के प्रति उतना अधिक दयालु होना चाहिए, और यही प्रकृति का मूल है|

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