उत्तराखंड की आसन झील में इस वर्ष कम पहुंचे मेहमान पक्षी

देहरादून के चकराता वन प्रभाग के साथ तितली ट्रस्ट ने सुबह ढाई घंटे पक्षियों की गिनती की
उत्तराखंड की आसन झील में विचरते पक्षी। फोटो: वर्षा सिंह
उत्तराखंड की आसन झील में विचरते पक्षी। फोटो: वर्षा सिंह
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सर्दियों का मौसम उत्तराखंड की आसन झील में मौजूद चिड़ियों की मौजूदगी के लिहाज से तो अच्छा रहा लेकिन गिनती में इस बार चिड़ियों की संख्या पिछड़ गई है। एशियाई जलपक्षी गणना की कड़ी के रूप में आसन वेट लैंड में इस बार 51 प्रजाति की 4,466 पक्षियों की मौजूदगी दर्ज की गई। 25 जनवरी को देहरादून के चकराता वन प्रभाग के साथ तितली ट्रस्ट ने सुबह ढाई घंटे गिनती का काम किया।

आसन सुर्खाब पक्षी के लिए मशहूर है, इस बार इन चिड़ियों की संख्या 432 दर्ज की गई। कॉमन पोचर्ड- 608, गडवाल चिड़िया-575, लाल चीड़-313, स्पॉट बिल्ड डक-270 नॉर्दन शोवलर- 110, लाल चोंच वाली 313 बत्तखें अच्छी तादाद में रहीं, जबकि 217 यूरेशियन वीगन चिड़िया देखने को मिली। हरी टिटहरी, काले सिर वाली गुल चिड़िया  जैसे कुछ पंछियों का एक जोड़ा ही देखने को मिला।

चकराता वन प्रभाग के वन बीट अधिकारी प्रदीप सक्सेना बताते हैं कि 25 जनवरी को कोहरे के चलते भी चिड़ियों की गिनती प्रभावित हुई। जबकि उम्मीद की जा रही थी कि इस बार चिड़ियों की अच्छी संख्या देखने को मिलेगी। वन विभाग के मुताबिक वर्ष 2019 में यहां 79 प्रजाति की 6170 चिड़िया, वर्ष 2018 में 61 प्रजाति की 6008 चिड़िया, 2017 में 60 प्रजाति की 4569, वर्ष 2016 में 84 प्रजाति की 5635 और 2015 में 48 प्रजाति की 5796 चिड़िया दर्ज की गई थी।

तितली ट्रस्ट के संजय सोढ़ी बताते हैं कि बर्ड डायवर्सिटी के लिहाज से आसन बहुत अहम है। देश में 1310 चिड़ियों की प्रजाति है, उत्तराखंड में 710 और अकेले आसन में 332 प्रजाति की चिड़िया हैं। वेट लैंड होने के चलते जलपक्षी और जंगल से सटा होने की वजह से जंगली चिड़िया भी खूब आती है। यूरोप और मध्य एशिया से ही 22 प्रजाति के जल पक्षी यहां सर्दियों में डेरा डालते हैं। लेह-लद्दाख जैसे स्थानों से उतरकर हिमालयी चिड़िया भी सर्दियों में आसन की धूप सेंकने आ पहुंचती है। अफ्रीका और अन्य जगहों से भी पलायन कर पक्षी सर्दियों में यहां पहुंचते हैं और अक्टूबर से मार्च तक का समय यहां बिताते हैं।

वर्ष 2005 से उत्तराखंड वन विभाग आसन में पक्षियों की गिनती कर रहा है। पिछले सात सालों से तितली ट्रस्ट के ज़रिये ये काम हो रहा है।

कैसे की जाती है पक्षियों की गिनती

तितली ट्रस्ट के संजय सोढी बताते हैं कि चिड़ियों की गिनती में 6 प्रोटोकॉल होते हैं। आसन बैराज को तीन हिस्से में बांटा जाता है और तीन टीमें अलग-अलग हिस्सों में गिनती का काम करती हैं। अमूमन एक व्यक्ति हर बार एक निश्चित ट्रेल पर गिनती करता है, ताकि गिनती ज्यादा सटीक रहे। चूंकि मादा बत्तख की पहचान मुश्किल होती है तो नर बत्तख की गिनती कर उसकी संख्या दोगुनी कर दी जाती है। एक क्षेत्र में दो लोग बाइनाकुलर और स्पॉटिंग स्कोप से गिनती करते हैं। फिर दोनों की गिनती का औसत निकाल लिया जाता है। चिड़िया की प्रजाति और संख्या दर्ज की जाती है। लेकिन हर चिड़िया को गिनना संभव नहीं होता। ये माना जाता है कि गिनी गई चिड़िया की संख्या से 15 प्रतिशत अधिक या कम हो सकती हैं। मगर साल-दर-साल इस गिनती से चिड़ियों की मौजूदगी या घट-बढ़ का रुझान पता चल जाता है।

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