मिलिए बगिया वाले बाबा से, जिन्होंने लगाए 3.5 लाख से ज्यादा पेड़

पेड़ लगाने के जुनून के कारण कभी पागल करार दिए गए माताप्रसाद अब तक 250 बगिया तैयार करवा चुके हैं
मीगनीं गांव की अपनी बगिया में माताप्रसाद तिवारी। फोटो: भागीरथ
मीगनीं गांव की अपनी बगिया में माताप्रसाद तिवारी। फोटो: भागीरथ
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उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के मीगनीं गांव के रहने वाले 61 साल के माताप्रसाद तिवारी बगिया वाले बाबा के नाम से लोकप्रिय हैं। लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब लोग उन्हें पागल कहने लगे थे। दरअसल 1989 में जब उनके गांव में सूखा पड़ा तो वह अपनी नौकरी छोड़कर पूरा समय वृक्षारोपड़ को देने लगे। तब गांव वालों को उनका यह प्रयास पागलपन लगता था, इसलिए उनका नाम पागल बाबा पड़ गया। अब वही गांव वाले उन्हें बगिया वाले बाबा के नाम से बुलाते हैं और उनके काम की प्रशंसा करते नहीं थकते। 

माताप्रसाद ने अपने गांव में 25,000 पेड़ लगाकर एक ऐसी बगिया तैयार की है, जिसकी चर्चा जिले भर में है। इस बगिया में उन्होंने आम, अमरूद, बेर, कटहल, शरीफा, नीम, पीपल , बरगद जैसे फलदार और छायादार पेड़ लगाकर गर्मी में भी सुकून देने वाला 5 हेक्टेयर का क्षेत्र विकसित कर दिया है, जो 1990 से पहले बंजर था। माताप्रसाद की यह बगिया 2003 में पूरी तरह तैयार हो गई। इस बगिया से अमरूद, बेर, आंवला, मौसमी, जामुन, कटहल आदि निकलते हैं जो करीब 2 लाख के फल बिक जाते हैं। इनमें से ज्यादातर पैसे मजदूरों पर खर्च हो जाते हैं।

माताप्रसाद के अनुसार, वह अपने लिए कुछ नहीं बचाते। हालांकि पौधशाला से उन्हें कुछ आय हो जाती है। उनका कहना है कि प्रशासन से प्रशंसा मिलती है लेकिन सहयोग नहीं मिलता। माताप्रसाद मानते हैं कि बागवानी से पर्यावरण शुद्ध होता है, अगर किसान इसे गंभीरता से करें तो नियमित भी मिल सकती है। उनके खाने पीने का खर्च खेती से निकलता है।
अपनी बगिया के अलावा माताप्रसाद ने पूरे जिले में करीब 250 बगिया तैयार करायी हैं। हर बगिया में कम से कम 20,000 पेड़ हैं। 

माताप्रसाद ने एक साल में बीस हजार पेड़ लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया है और इसे हासिल भी कर रहे हैं। वह अब तक करीब 3.50 लाख से अधिक पेड़ लगा चुके हैं, इनमें से लगभग 3 लाख पेड़ बनकर छाया और फल प्रदान कर रहे हैं।

माताप्रसाद को 1988-89 का सूखा अब तक याद है। इस साल पड़े सूखे ने उनके गांव की कमर तोड़कर रख दी थी और लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए। इस सूखे के बाद उन्होंने संकल्प लिया कि वह ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाकर प्रकृति को हर भरा बनाकर अपने गांव को आपदा झेलने में सक्षम बनाएंगे।

सूखे के बाद शुरू हुआ सिलसिला अनथक जारी है। वह जिले के चारों ब्लॉक- माधोगढ़, रामपुरा, कुठौंद और नदी गांव में 61 साल की उम्र में भी पूरी सक्रियता के साथ गांव में हरियाली का महत्व बता रहे हैं। इस काम के लिए उन्होंने 245 महिलाओं का संगठन- हरियाली गैंग भी बनाया है। संगठन से जुड़ी महिलाएं गांव-गांव जाकर महिलाओं को पेड़ पौधे लगाने के लिए जागरूक करती हैं। नुक्कड़ नाटक, रैली के माध्यम से भी ये महिलाएं जागरूकता फैलाती हैं।

माताप्रसाद ने पौधों की नर्सरी भी बनाई है, जहां से वह बहुत सस्ते दाम पर लोगों को पौध उपलब्ध कराते हैं। पर्यावरण संरक्षण पर उनके काम को देखते हुए 2014-15 में वह डीएम से सम्मानित भी हो चुके हैं। वह मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के दौर में पेड़ लगाकर ही धरती को बचाया जा सकता है।

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