लक्षित आबादी तक पहुंच नहीं पाया वन विकास निगम

एफडीसी के कई उद्देश्यों में से एक प्रमुख उद्देश्य था, पिछड़े क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को पर्याप्त सहयोग व वानिकी गतिविधियों के विकास पर निर्भर आदिवासी जनसंख्या को सहयोग देना
Photo Credit: Creative commons
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एफडीसी के कई उद्देश्यों में से एक प्रमुख उद्देश्य था, पिछड़े क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को पर्याप्त सहयोग व वानिकी गतिविधियों के विकास पर निर्भर आदिवासी जनसंख्या को सहयोग देना। पर्यावरण मंत्रालय ने 1990 में एफडीसी की अपनी समीक्षा रिपोर्ट में कहा, “कमजोर तबका, भूमिहीन ग्रामीण आबादी या आदिवासी समुदायों के लिए विशेष रूप से किसी तरह के ईमानदार प्रयास नहीं किए गए हैं। यह अफसोस की बात है। इसके बावजूद 1990 के बाद से अब तक बहुत कुछ नहीं बदला है। हालांकि यह सही है कि एफडीसी मजदूरी के रूप में काम पर रखने के लिए स्थानीय समुदायों को रोजगार के अवसर प्रदान करती है और कुछ एफडीसी में लाभों को साझा करने के लिए व्यवस्था भी मौजूद है, लेकिन यहां इस बात का अध्ययन किया जाना चाहिए कि लाभ वास्तव में लक्षित आबादी तक पहुंच रहा है या नहीं।

उदाहरण के लिए गुजरात एफडीसी को 2008 से 2015 तक लगभग 34 करोड़ रुपए का भुगतान स्थानीय ग्रामसभा को करना चाहिए था। लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है। इस संबंध में गुजरात एफडीसी के अधिकारियों का कहना है कि यह फैसला राज्य सरकार के साथ पिछले 8 सालों से लंबित पड़ा है। देश के कई राज्यों में एफडीसी की कारगुजारियां अनुसूचित जनजातियों व अन्य पारंपरिक वनवासी अधिनियम 2006 का खुलेआम उल्लंघन करती हैं। उदाहरण के लिए 2009 में त्रिपुरा एफडीसी ने 2,606 अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जातियों के परिवारों का पुनर्वास करने का दावा किया और सभी परिवारों को एक-एक हेक्टेयर जमीन पर रबड़ के पौधे लगाने के लिए दिए। लेकिन जिला प्रशासन ने 43 आदिवासी परिवारों के वन अधिकारों को रद्द कर दिया क्योंकि भूमिधारकों ने रबड़ पौधारोपण का विरोध किया था।

अक्तूबर, 2013 में मध्य प्रदेश एफडीसी ने वैकल्पिक मॉडल पर चर्चा करने के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया था। जिसमें सुझाव आए कि किसानों को एफडीसी परियोजना क्षेत्रों के आसपास बंजर भूमि पर वानिकी करने के लिए सहयोग देना चाहिए। इसके अलावा यह भी सुझाव था कि बेहतर निवेश के लिए निजी क्षेत्र के साथ बातचीत की जा सकती है। इन दोनों अहम सुझावों पर विचार किया जा सकता है। यही नहीं बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए सरकार वर्तमान में मौजूदा एफडीसी बागानों को निजी क्षेत्र में सौंपने पर विचार कर सकती है।

राज्य में कृषि वानिकी की सफलता से प्रेरित होकर आंध्र प्रदेश एफडीसी ने अपने पौधारोपण में मृदा और जल संरक्षण के उपाय करने का प्रयास किया है। जबकि एफडीसी अधिकारियों का दावा है कि इन उपायों के उपयोग से उच्च उत्पादकता और बेहतर परिणाम हासिल किया गया। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को प्राकृतिक वनों को खत्म कर एफडीसी द्वारा किए जा रहे पौधारोपण के विरुद्ध स्थानीय समुदायों के तेजी से पनपते असंतोष को देखते हुए अनिवार्य सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन प्रणाली शुरू करनी चाहिए। एफडीसी को अपने लक्ष्य को बदलने की जरूरत है। उसके लक्ष्य के अंतर्गत छरण भूमि के वनों की उत्पादकता बढ़ाने पर जोर होना चाहिए। यही नहीं, अब वक्त आ गया है कि उसे जहां-तहां भी पौधारोपण करने के पहले हर हाल में स्थानीय समुदायों की बातें भी सुननी चाहिए। उनकी तमाम समस्यों को उसे गंभीरता से लेना चाहिए।

इसके अलावा 2006 के वन अधिकार कानून द्वारा उसे प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन कतई नहीं करना चाहिए। यही नहीं उसे अपने इन अधिकारों को स्थानीय समुदायों के खिलाफ दुरुपयोग से भी बचना चाहिए। यह साफ हो चुका है कि एफडीसी अपने उद्देश्यों को पूरा करने में पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया है। उसे और सुधारों की जरूरत है। सीएसई के मूल्यांकन के दौरान एफडीसी ने अपने प्रदर्शन के संबंध में यह महसूस किया कि उसकी कार्यप्रणाली में कहीं न कहीं कुछ समस्या है। नहीं तो जिस जमीन पर एफडीसी की उत्पादकता कम है, ठीक उसी जमीन पर किसानों की उत्पादकता उससे बेहतर क्यों है।

लोनल यूकेलिप्टस के विशेषज्ञ और आईटीसी लिमिटेड के पूर्व उपाध्यक्ष हर्ष कुमार कुलकर्णी ने कहा, “अब समय आ गया है कि एफडीसी किसानों के अपनाए तौर-तरीके से बहुत कुछ सीख सकता है। किसानों से कई अहम बातें सीखने की जरूरत है। जैसे पेड़ों को कैसे काटा जाए कि वह फिर से अंकुरित हो सके, क्योंकि सरकारी कटाई में पेड़ों को जड़ से नष्ट कर दिया जाता है।

इसके अलावा किसानों द्वारा की जाने वाली नियमित रूप से जुताई, उत्पादक प्रजातियों की सफल चयन प्रक्रिया, किसानों के कीटनाशक और बीमारी प्रबंधन को एफडीसी बेहतर तरीके से जान व समझ सकती है। अगर एफडीसी इस तरह की प्रतिबद्धता दिखाती है, तो उनका भी परिणाम किसानों की तरह ही आ सकता है। एफडीसी के लिए सही होगा कि अब वह अपना मानक तय करे जिसके तहत वह प्राकृतिक जंगलों का दुरुपयोग व नई वन्य जमीन का अधिग्रहण करना पूरी तरह से बंद कर दे।”

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