Photo: Wikimedia commons
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खतरे में समुद्री मेगाफ्यूना, जैवविविधता को होगा भारी नुकसान 

यदि इसी तरह चलता रहा, तो अगले 100 वर्षों में औसतन 18% समुद्री मेगाफ्यूना की प्रजातियों का नुकसान हो सकता है, जिससे पारिस्थितिक कार्यों में 11% का नुकसान होगा
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समुद्र के सबसे बड़े जानवरों को मेगाफ्यूना कहते है। समुद्री मेगाफ्यूना हमारे महासागरों के विशाल पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने भविष्य में इनके विलुप्त होने से, पारिस्थितिक तंत्र पर पड़ने वाले प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने के लिए समुद्री मेगाफ्यूना प्रजातियों के लक्षणों की जांच की है। यह अध्ययन साइंस एडवांस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

महासागरों में सबसे बड़े जानवरों के रूप में पाए जाने वाले, जिनके शरीर का द्रव्यमान 45 किलो से अधिक होता है, इसमें शार्क, व्हेल, सील और समुद्री कछुए शामिल हैं। ये प्रजातियां पारिस्थितिक तंत्रों को संतुलित करने के लिए बड़ी मात्रा में बायोमास का उपभोग करते हैं। आवासों में पोषक तत्वों को ले जाती है तथा महासागरीय पारिस्थितिक तंत्रों को जोड़ती हैं। 

इनके पारिस्थितिक कार्य इनके लक्षणों से निर्धारित होते है, जैसे कि वे कितने बड़े हैं, वे क्या खाते हैं, और कितनी दूरी तय करते हैं आदि। इनके लक्षणों की विविधता को मापने से वैज्ञानिकों को पारिस्थितिक तंत्र के लिए समुद्री मेगाफ्यूना का योगदान कितना है, उसे निर्धारित करने और उनके विलुप्त होने की आशंका आदि के आकलन करने में मदद मिलती है।

यूके की स्वानसी विश्वविद्यालय के डॉ. कैटालिना पिमिएंटो के नेतृत्व में यह शोध कार्य किया गया है। जिसमें शोधकर्ताओं की टीम ने पहली बार समुद्री प्रणालियों में किए जाने वाले पारिस्थितिक कार्यों को समझने के लिए, सभी जानी-पहचानी समुद्री मेगाफ्यूना के प्रजाति-स्तरीय विशेषताओं का डेटासेट तैयार किया है।

भविष्य में प्रजातियों के विलुप्त होने के परिदृश्यों, उनके कार्यों में विविधता, इनके नुकसान से पड़ने वाले प्रभाव की मात्रा निर्धारित करने के बाद, शोधकर्ताओं ने इनके संरक्षण के लिए एक नया सूचकांक बनाया है।

परिणामों में समुद्री मेगाफ्यूना द्वारा किए जाने वाले कार्यों की विविध श्रृंखला को दिखाया गया है, साथ ही यह भी दिखाया कि उनके विलुप्त होने पर मौजूदा जैव विविधता किस तरह प्रभावित हो सकती है।

यदि इसी तरह चलता रहा, तो अगले 100 वर्षों में औसतन 18% समुद्री मेगाफ्यूना की प्रजातियों का नुकसान हो सकता है, जिससे पारिस्थितिक कार्यों में 11% का नुकसान होगा। फिर भी, यदि वर्तमान में सभी खतरे वाली प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी, तो हमें 40% प्रजातियों और 48% पारिस्थितिक कार्यों का नुकसान सहना होगा। शार्क का सबसे अधिक प्रभावित होने का पूर्वानुमान लगाया गया है। 

डॉ. कैटेलिना पिमिएंटो ने कहा हमारे नए अध्ययन से पता चलता है कि, आज मेगाफ्यूना की अनूठी और विविध पारिस्थितिक भूमिकाएं मानव दबावों के कारण गंभीर खतरे का सामना कर रही हैं।

इन प्रजातियों के दुनिया भर से विलुप्त होने के संकट को देखते हुए, एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है कि प्रकृति किस हद तक इन्हें दुबारा जन्म देगी। विलुप्त होने की स्थिति में, क्या शेष प्रजातियां जीवित रहेंगी जो इनके समान पारिस्थितिक भूमिका निभा सकती हैं?

स्वानसी विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ता डॉ. जॉन ग्रिफिन कहते हैं कि हमारे परिणाम बताते हैं कि महासागरों के सबसे बड़े जानवरों की संख्या सीमित होती जा रही है।

यदि प्रजातियां विलुप्त हो जाती हैं, तो पारिस्थितिक कार्य नहीं होगें। यह एक चेतावनी है कि हमें जलवायु परिवर्तन सहित समुद्री मेगाफ्यूना पर बढ़ते मानव दबाव को कम करने के लिए अभी से कार्य करने की आवश्यकता है।

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