एच कृष्णा
मध्य प्रदेश में जंगलों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए राज्य को मिलने वाले कैंपा (कंपनसेटरी अफोरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथॉरिटी) फंड के दुरुपयोग का मामला सामने आया है।
मध्यप्रदेश विधानसभा में 9 फरवरी को सदन के पटल पर रखी गई कंट्रोलर ऑफ ऑडिटर जनरल यानी कैग रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2017 से 2020 के बीच राज्य की वन संपदा बढ़ाने के लिए मिलने वाले कैंपा फंड का दुरुपयोग किया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक राज्य शासन ने कैंपा फंड के 167.83 करोड़ रुपए गैर वानिकी कामों के लिए न केवल मंजूर किए, बल्कि 53.29 करोड़ रुपए अधिकारियों की सुख-सुविधाओं, कमर्चारियों की ट्रेनिंग, निर्माणकार्य और फर्नीचर खरीदी जैसे कामों पर खर्च कर डाला।
मप्र के प्रमुख वन संरक्षक और वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव से जब कैंपा फंड को लेकर सवाल किए तो उन्होंने कहा कि इस बारे में केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से पूछा जाना चाहिए, क्योंकि राज्य की ओर से कैंपा फंड के उपयोग के लिए सिर्फ प्रस्ताव भेजे जाते हैं, मंजूरी केंद्र ही देता है। यदि नियम विरुद्ध खर्च हुआ है तो केंद्र ने मंजरी क्यों दी, तब नियमों का परीक्षण क्यों नहीं किया गया।
कैग ने अपनी पड़ताल में पाया कि क्षतिपूर्ति वनीकरण योजना (सीए) शुल्क वसूली में भी भारी गड़बड़ियां की गई हैं। राज्य के आठ वन मंडल सिंगरौली, दक्षिण शहडोल, दक्षिण सागर, ग्वालियर, खंडवा, छतरपुर, इंदौर और रतलाम में 12 प्रोजेक्ट में निजी व सरकारी एजेंसियों से 14.64 करोड़ रुपए कम सीए शुल्क वसूला गया।
वन अफसरों ने इन एजेंसियों को लाभ पहुंचाने के लिए तीसरे वर्ष (चालू वर्ष के बाद) को आधार वर्ष रखने के बजाए चालू वर्ष के आधार मानकर डीपीआर बनाई। श्रम दरों में हर साल 10% की बढ़ोतरी की जानी थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
प्लांटेशन के स्थान चयन में भी गडबड़ियां
केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की गाइडलाइन के मुताबिक क्षतिपूर्ति वनीकरण (सीए) के लिए बिगड़े वनों की ऐसी वन भूमि को चुना जाता है, जहां पेड़ों का घनत्व 40 कैनोपी से कम हो। इसके अलावा जहां ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के लिए वन भूमि का डायवर्जन किया गया हो, वहां राइट ऑफ वे में बौने प्रजाति के पौधे लगाने का प्रावधान किया गया है।
कैग ने जांच में पाया है कि मप्र के चार वन मंडलों अनूपपुर, सिंगरौली, होशंगाबाद और दक्षिण शहडोल में 18 स्थानों पर सीए प्रोजेक्ट में ऐसे स्थान चुने गए, जहां पहले से काफी अच्छा वन था और पेड़ों का घनत्व 40 कैनोपी से कहीं अधिक था।
वर्ष 2017 में सिंगरौली वन मंडल में 16.40 करोड़ की लागत से 300 हेक्टेयर में 8 स्थानों पर कैंपा फंड से प्लांटेशन की मंजूरी दी गई थी। वर्ष 2020 में जब प्लांटेशन शुरू होने की स्थिति में आया तब पाया गया कि जिन स्थानों पर सीए प्लांटेशन होना है, वहां पहले से ही या तो घने जंगल हैं या किसी और योजना के तहत प्लांटेशन हो चुका है। इस कारण प्लांटेशन की तैयारी पर खर्च किए गए 1.51 करोड़ रुपए बेकार चले गए।
डीपीआर में गड़बड़ी कर जिन प्रोजेक्ट से सीए शुल्क कम वसूला गया, उनमें दुधिचुआ ओपन कास्ट माइनिंग, सिंगरौली, धानपुरी खदान - दक्षिण शहडोल, अमलाई ओपन कास्ट माइन - दक्षिण शहडोल, मीथेन गैस परियोजना - दक्षिण शहडोल, जमुनिया गौंड सिंचाई परियोजना - दक्षिण सागर, पारकुल सिंचाई परियोजना दक्षिण सागर, महाराजपुरा एयरफोर्स स्टेशन - ग्वालियर, 220 केवी छनेरा ट्रांसमिशन लाइन - खंडवा, छतरपुर मिनरल्स - छतरपुर, झांसी-खजुराहो एनएच प्रोजेक्ट - छतरपुर, 400केवी खंडवा इंदौर ट्रांसमिशन लाइन - इंदौर, दुमाला तालाब डायवर्जन प्रोजेक्ट - रतलाम शामिल हैं।
क्या है कैंपा फंड
किसी गैर वानिकी काम के लिए जब आरक्षित वन भूमि का इस्तेमाल किया जाता है, तब राज्य शासन को वन भूमि का अनारक्षण या व्यपवर्तन करना होता है, लेकिन इसकी मंजूरी भारत सरकार से लेनी होती है। भारत सरकार की इस मंजूरी के लिए एक अनिवार्य शर्त यह है कि सीए यानी क्षतिपूर्ति वनीकरण की आगामी 10 साल की योजना जरूर बनाई जाए।
सीए का उद्देश्य में भूमि के बदले भूमि और पेड़ों को होने वाले नुकसान के बदले नए पेड़ लगाकर भरपाई करना है। राज्यों में सीसीएफ लैंड मैनेजमेंट सीए प्लान और डीपीआर तैयार करते हैं, इसी के आधार पर वन भूमि चाहने वाली एजेंसी से सीए राशि ली जाती है। इस राशि का इस्तेमाल की मंजूरी और सही इस्तेमाल के लिए केंद्र और राज्य दोनों में कंपनशेटरी एफोरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथॉरिटी गठित हैं। जिसे संक्षिप्त में कैम्पा कहा जाता है।