स्वदेशी (इन्डिजनस) लोग अनूठी संस्कृतियों और पर्यावरण से संबंधित तरीकों से चलने वाले लोग हैं। उन्होंने आज के बदलते युग में अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक विशेषताओं को बरकरार रखा है। स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों की ज्ञान प्रणाली और प्रथाएं हमारी धरती की जैविक और सांस्कृतिक विविधता की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
स्वदेशी लोगों के ज्ञान और अभ्यास की ये प्रणालियां मौखिक तौर पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती हैं। इनकी अनूठी संस्कृति, पद्धतियों, स्थान आधारित शिक्षा इनकी प्रमुख विशेषता है।
इस विषय को लेकर आगाह किया गया है कि स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों के जीवन पर अलग-अलग तरह के दबाव पड़ रहे हैं, जिसके चलते इनके ज्ञान प्रणाली और प्रथाओं को व्यापक नुकसान हो सकता है। इस नुकसान से हमारी धरती की जैविक और सांस्कृतिक विविधता के लिए खतरा पैदा हो सकता है।
इसी बात को आगे बढ़ाते हुए अब साइमन फ्रेजर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने चिंता व्यक्त की है कि स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों की ज्ञान प्रणालियों के नुकसान और विनाश के व्यापक सामाजिक और पारिस्थितिकी परिणाम हो सकते हैं।
अध्ययन 30 अंतरराष्ट्रीय स्वदेशी और गैर-स्वदेशी सह-शोधकर्ताओं के ज्ञान पर आधारित है। स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों के प्रयासों से किए गए 15 रणनीतिक कार्रवाइयों पर प्रकाश डाला गया है ताकि उनकी ज्ञान प्रणाली और संबंधों को बनाए रखा जा सके।
सह-अध्ययनकर्ता एसएफयू पुरातत्व के प्रोफेसर डाना लेपोफ्स्की कहते हैं कि हमने स्वदेशी और स्थानीय ज्ञान के खतरों पर चर्चा करने, स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों द्वारा इन खतरों को दूर करने के लिए कार्रवाई करने के बीच संतुलन बनाने के लिए कड़ी मेहनत की है। दुनिया भर में, स्वदेशी लोग और स्थानीय समुदाय अपनी ज्ञान प्रणालियों और प्रथाओं का जश्न मना रहे हैं, उनकी रक्षा कर रहे हैं और उन्हें पुनर्जीवित कर रहे हैं।
वैज्ञानिकों ने नीति निर्माताओं और दुनिया भर में लोगों के रूप में, हमें अपनी व्यावसायिक गतिविधियों में, सरकारी एजेंसियों की नीतियों में और अपने व्यक्तिगत विकल्पों में इन प्रयासों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर देने को कहा है।
अध्ययनकर्ता बताते हैं कि कैसे स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों की ज्ञान प्रणाली और प्रथाएं हमारी धरती की जैविक और सांस्कृतिक विविधता की रक्षा करने में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। वे इस बात का दस्तावेजीकरण भी करते हैं कि सामाजिक और पारिस्थितिकी परिणामों के साथ इस ज्ञान को खतरनाक दरों पर किस तरह नुकसान हो रहा है। यह अध्ययन जर्नल ऑफ एथ्नोबायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।
सह-अध्ययनकर्ता अलवारो फर्नांडीज-लालामारेस ने कहा कि हालांकि स्वदेशी और स्थानीय ज्ञान प्रणालियां स्वाभाविक रूप से अपनाई जाने वाली और उल्लेखनीय रूप से लचीली (रिज़िल्यन्ट) हैं। उनकी नींव औपनिवेशिक समाधान, भूमि अधिग्रहण और संसाधनों के उपयोग के साथ समझौता किया जा रहा है और इस तरह के काम लगातार जारी हैं। इन दबावों के चलते पारिस्थितिकी और सामाजिक तौर पर गहरा और व्यापक प्रभाव पड़ता हैं।