कार्बेट टाइगर रिजर्व के बाघ आसान शिकार के लिए हाथियों को अपना निशाना बना रहे हैं। कार्बेट प्रशासन के इस अध्ययन ने केंद्र सरकार का भी ध्यान खींचा है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राज्य की मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक रंजना काला से इस बारे में रिपोर्ट मांगी है।
कार्बेट टाइगर रिजर्व के तत्कालीन निदेशक संजीव चतुर्वेदी ने पिछले पांच वर्षों में मारे गए बाघों, हाथियों और गुलदारों की मौत को लेकर ये अध्ययन कराया। रिपोर्ट तैयार करने के लिए फील्ड स्टाफ से बातचीत, पोस्टमार्टम रिपोर्ट और घटनास्थलों की दोबारा जांच की गई। इस अध्ययन के मुताबिक पिछले पांच वर्षों में कार्बेट टाइगर रिजर्व के कालागढ़ रेंज में दो बाघ मारे गए, जबकि रामनगर रेंज में सात बाघ मारे गए। इसी तरह कालागढ़ रेंज में 13 हाथियों की मौत हुई, जबकि रामनगर रेंज में आठ हाथियों की मौत हुई। दोनों रेंज में तीन-तीन गुलदार मारे गए।
21 हाथियों की मौत में चौंकाने वाली बात ये है कि 60 फीसदी मौत (13 मामले) बाघों के हमले से हुई। उनमें भी ज्यादातर युवा हाथी थे। संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक बाघों के व्यवहार में ऐसा परिवर्तन इसलिए भी संभव है क्योंकि हाथी के बच्चों का शिकार करने में कम ऊर्जा लगती है, जबकि सांभर या चीतल जो कि बाघों का प्रिय भोजन हैं, उनके शिकार में अधिक दौड़ लगानी पड़ती है। फिर हाथियों के बच्चों के शिकार में कम मेहनत में अधिक भोजन उपलब्ध हो जाता है। उनका कहना है कि ऐसे मामलों में भी जहां हाथी की मौत आपसी संघर्ष में हुई, बाघों ने उन्हें अपना निवाला बनाया। संजीव इस पर और अधिक अध्ययन की बात कहते हैं। हाथियों की मौत के अन्य मामले आपसी संघर्ष के हैं।
क्या बाघ अमूमन हाथियों का शिकार करते हैं। इस बारे में देहरादून स्थित वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के डॉ बिवास पांडव कहते हैं कि बाघ भोजन के लिए हाथी का भी शिकार करता है। डॉ बिवास वर्ष 2003 से भारतीय तराई क्षेत्र में बाघ और उनके शिकार को लेकर अध्ययन कर रहे हैं। उनका कहना है कि ये पूरी तरह सामान्य बात है। लेकिन आसान शिकार के लिए वे हाथी पर हमला करते हों, ऐसा नहीं है। क्योंकि बाघ के लिए कोई भी शिकार आसान नहीं होता है। चीतल-सांभर भी उसके लिए आसान शिकार नहीं होते।
बाघ अमूमन 15 से 20 बार शिकार का प्रयास करता है तो एक बार सफल होता है। डॉ बिवास कहते हैं कि युवा हाथी जंगल में अकेले नहीं रहते। वे हमेशा बड़े हाथियों के संरक्षण में होते हैं। इसलिए हाथी पर हमला करने से पहले बाघ जैसा समझदार जानवर जरूर सोचेगा। क्योंकि ऐसा करने से उसकी खुद की जान भी खतरे में आ जाएगी। डॉ बिवास के मुताबिक ये जरूर है कि बाघ के सामान्य भोजन में हाथी शामिल नहीं है। चीतल-सांभर जैसे वन्यजीव ही उसका प्रिय भोजन हैं।
पांच वर्षों में बाघ के हमले में 13 हाथियों की मौत को डॉ बिवास पांडव बड़ी बात नहीं मानते। बल्कि वे इसे हाथियों की जनसंख्या को नियंत्रित करने का एक साधन मानते हैं। डॉ बिवास के मुताबिक हाथियों के बच्चों की मौत और बीमारी दो ऐसी वजहे हैं जिससे हाथियों की जनसंख्या नियंत्रण में रहती है। फिर दुनिया में सबसे अधिक बाघ कार्बेट पार्क में ही हैं। उनका घनत्व ज्यादा होने की वजह से हाथी और बाघ के बीच टकराव की घटनाएं अधिक हो सकती हैं।
दुनिया में सबसे अधिक बाघ कार्बेट टाइगर रिजर्व में मौजूद हैं और आगामी जनगणना में बाघों की संख्या में और इजाफा होने की उम्मीद है। डॉ बिवास के मुताबिक बाघों को बचाए रखने के लिए हमें और अधिक जगह की जरूरत जरूर होगी। हमें और अधिक टाइगर रिजर्व चाहिए होंगे।
वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वन्यजीव वैज्ञानिक के.रमेश कहते हैं कि ये संभव हो सकता है कि कार्बेट के बाघों में इस तरह का व्यवहार पनप रहा हो। इसके पीछे यहां हाथियों और बाघों दोनों की अच्छी संख्या वजह हो सकती है।
करीब 1220 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले कार्बेट पार्क में 250 बाघों की मौजूदगी की संभावना जतायी जा रही है। पिछली बार की गणना में यहां 215 बाघों की मौजूदगी दर्ज की गई थी। एक नर बाघ से 15 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में अधिकार पूर्वक रहता है।
उत्तराखंड में वन विभाग ने दो और टाइगर रिजर्व बनाने का प्रस्ताव रखा था। जिसके लिए एनटीसीए से सैद्धांतिक मंजूरी भी मिल गई थी। नैनीताल के तराई क्षेत्र में नंधौर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी और उत्तर प्रदेश के पीलीभीत की सीमाओं तक लगती सुरई रेंज। उत्तराखंड वन विभाग के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जय राज बताते हैं कि स्थानीय लोगों के जबरदस्त विरोध को देखते हुए नंधौर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी को टाइगर रिजर्व बनाने का प्रस्ताव खत्म कर दिया गया।