उमेश कुमार राय
पश्चिम बंगाल के सुंदरवन के गोसाबा की रहनेवाली 50 वर्षीया वनलता तरफदार अन्य दिनों की तरह ही 8 जुलाई को केंकड़ा पकड़ने के लिए बोट लेकर पीरखाली के जंगल में गई थीं। उनके साथ तीन और महिलाएं थीं। वे लोग केंकड़ा पकड़ ही रही थीं कि अचानक बाघ ने वनलता पर हमला कर दिया। अन्य तीन महिलाएं बदहवास होकर वहां भाग गईं लेकिन वनलता को बाघ में अपने जबरे में जकड़ लिया और घने जंगल में गुम हो गया।
इस घटना के तीन हफ्ते भी नहीं बीते थे कि पीरखाली में ऐसी ही एक और वारदात हो गई। 26 जुलाई की दोपहर गोसाबा के रजत जुबली गांव के 45 वर्षीय अर्जुन मंडल बोट लेकर मछली पकड़ने के लिए पीरखाली के जंगल में दाखिल हुए थे। उनके साथ दो और मछुआरे थे। वे लोग तीन दिनों तक वहां थे। तीसरे दिन वे लोग दोपहर का खाना वह बोट पर ही बना रहे थे, तभी बाघ ने अर्जुन पर हमला कर दिया और घसीट कर जंगल की तरफ ले गया।
सुंदरवन के लिए ये दो घटनाएं नई नहीं हैं। पिछले कुछ वर्षों में मछुआरों पर बाघ के हमलों की अनगिनत घटनाएं हो चुकी हैं। हालांकि, इनमें से कुछ घटनाओं में वन विभाग के अधिकारी मछुआरों की लापरवाही को जिम्मेवार मानते हैं। उनका कहना है कि कई मछुआरे उन इलाकों में भी मछलियां व केंकड़ा पकड़ने के लिए चले जाते हैं, जहां बाघों की मौजूदगी के चलते जाने की इजाजत नहीं है। लेकिन, बहुत सारे मामलों में ये भी देखा गया है कि जिन क्षेत्रों में मछलियां पकड़ने की मनाही नहीं है, वहां भी बाघ के हमले हो रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि प्रतिबंधित वन क्षेत्र में मछुआरों के प्रवेश कर ने पर 11 सौ रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन, स्थानीय लोगों का कहना है कि जिन क्षेत्रों में मछलियां व केंकड़ा पकड़ने की इजाजत है, वहां ये कम मात्रा में मिलती हैं। गोसाबा के स्थानीय निवासी परितोष गिरि कहते हैं, “सरकार ने जो बफर जोन तय किया है मछलियां व केंकड़ा पकड़ने के लिए, वहां मछलियां व केंकड़े नहीं के बराबर होते हैं। यहां रहनेवाले लोगों के पास जमीन नहीं है। वे गरीब हैं। मछली व केंकड़ा बेच कर उनके घर का चूल्हा जलता है, इसलिए वर्जित क्षेत्रों में जाना उनकी विवशता है।”
जुलाई में बाघों के हमले की दोनों घटनाएं गोसाबा ब्लॉक के द्वीपों में हुईं। इसके पीछे इन द्वीपों की भौगोलिक स्थिति भी जिम्मेवार है। गोसाबा ब्लॉक में कुल 9 द्वीप आते हैं। इनमें से पांच द्वीप कुमीरमारी, मोल्लाखाली, सातजेलिया, गोसाबा और बाली घने जंगलों से सटे हुए हैं। परितोष गिरि ने कहा, “ज्यादातर मछुआरे इन्हीं जंगलों की तरफ जाते हैं और बाघों के हमलों का शिकार हो जाते हैं।”
बाघ के हमलों से सबसे ज्यादा मौतें बंगाल में
पश्चिम बंगाल में सुंदरवन का इलाका कई सौ किलोमीटर में फैला हुआ है। इस क्षेत्र में छोटे-बड़े 100 से ज्यादा द्वीप हैं। इनमें से 54 द्वीपों में लोग रहते हैं। इनमें गोसाबा और बासंती ब्लॉक के द्वीपों में बाघों का डेरा है।
आंकड़े बताते हैं कि बाघों के हमलों से सबसे ज्यादा मौतें पश्चिम बंगाल में ही हो रही हैं। 28 जून को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की तरफ से पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2018 में देशभर में बाघों के हमले से 29 लोगों की मौत हुई थी। इनमें 50 प्रतिशत से ज्यादा मौतें पश्चिम बंगाल में दर्ज की गई थीं। पश्चिम बंगाल में 15 लोगों की मौत बाघ के हमले में हुई थी। पिछले दो वर्षों के आंकड़ों को देखें, तो इस बार सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं। इससे पहले वर्ष 2017 में बाघ के हमले से 12 लोगों की जान गई थी। वहीं, वर्ष 2016 में ये संख्या 14 थी। पिछले पांच वर्षों में बाघों के हमले से सबसे ज्यादा मौतें 2015 (18 लोगों की मौत) हुई थीं।
राष्ट्रीय स्तर पर देखें, तो बाघों के हमले से मौत के आंकड़ों में गिरावट आई है। वर्ष 2017 में बाघ के हमले से 44 लोगों की जान गई थी, जो वर्ष 2018 में घट कर 29 हो गई। आंकड़ों में ये गिरावट मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में बाघों के हमलों में कमी के कारण आई है।
जानकार मानते हैं कि सुंदरवन में जनसंख्या का दवाब बढ़ा है, जिसके चलते हमले की घटनाओं में इजाफा हुआ है। सुंदरवन पर लंबे समय तक शोध करनेवाले अनुराग डांडा कहते हैं, “सुंदरवन में जमीन घट रही है। 1969 से लेकर अब तक सुंदरवन की 250 वर्ग किलोमीटर जमीन पानी में जा चुकी है। इसमें कुछ हिस्सा बाघों की बसाहट का भी शामिल है। दूसरी तरफ सुंदरवन क्षेत्र में आबादी बढ़ रही है। इस आबादी के बढ़ने से हुआ ये है कि पहले जिस जंगल में मछलियां व केंकड़ा पकड़ने के लिए चार लोग जाते थे, अब वहां 14 लोग जा रहे हैं। इससे जंगलों में मानव गतिविधियां बढ़ी हैं। जंगल बाघों का इलाका है और बाघों को लग रहा है कि उनके इलाके में मानव घुसपैठ कर रहा है, इसलिए वे हमले कर रहे हैं।”