अनुसूचित जनजाति का दर्जा पाने के लिए कोल समाज कर रहा है संघर्ष

मध्यप्रदेश में कोल समुदाय को आदिवासी माना जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति में शामिल किया गया है।
Photo: Wikimedia Commons
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बलिराम सिंह

कोल आदिवासी समुदाय की एक महिला जब तक मध्य प्रदेश स्थित अपने मायके में रहती है, तब तक उसे अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा मिलता है, लेकिन जैसे ही वह विवाह कर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर अथवा सोनभद्र स्थित अपने ससुराल पहुंचती है, वह अनुसूचित जनजाति (एसटी) की बजाय अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग की हो जाती है, जबकि उसकी शादी एक ही वर्ग अर्थात कोल समुदाय में होती है।

ऐसे हालात मध्य प्रदेश से ब्याह कर केवल मिर्जापुर अथवा सोनभद्र आने वाली कोल समाज की आदिवासी महिलाओं की नहीं है, बल्कि उत्तर प्रदेश के चित्रकूट, चंदौली, कौशांबी, सोनभद्र, बांदा जैसे जिलों में रहने वाले उन सभी कोल समुदाय के परिवारों में है, जिनके घरों में पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश, छत्तीगढ़ में रहने वाले कोल समुदाय की बेटियां ब्याह कर आती हैं। कोल समाज को मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों में एसटी का दर्जा मिला है, जबकि उत्तर प्रदेश में इस समाज को एससी का दर्जा प्राप्त है।

उत्तर प्रदेश में लगभग 7 लाख से ज्यादा कोल समाज की आबादी है। विशेषकर पूर्वांचल के मिर्जापुर, सोनभद्र, चंदौली, कौशांबी के अलावा बुंदेलखंड के चित्रकूट और बांदा जैसे जिलों में इस समुदाय की अच्छी खासी तादाद है। चित्रकूट में ही कोल समाज की आबादी 70 हजार से ज्यादा है। इसी तरह मिर्जापुर जनपद मे एक लाख से ज्यादा कोल समाज की आबादी है। कोल समाज को एसटी का दर्जा दिए जाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से 16 साल पहले वर्ष 2002 में केंद्र सरकार को पत्र लिखा गया था। उस समय यूपी से भेजी गई जातियों की सूची में से 10 जातियों को केंद्र सरकार ने एसटी का दर्जा दे दिया था, लेकिन कोल जाति को एसटी का दर्जा नहीं मिल पाया था। वर्ष 2002 में कोल समाज को एसटी का दर्जा दिए जाने के लिए केंद्र सरकार को जो पत्र भेजा गया था, उसमें कुछ खामियां थीं, जिसकी वजह से कोल समाज को एसटी का दर्जा नहीं मिल पाया।

कोल समाज को एसटी का दर्जा दिलाने के लिए वर्ष 2013 में एक बार फिर कोल जाति की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को लेकर विस्तृत अध्ययन कराया गया, अध्ययन के मुताबिक कोल समाज को एसटी का दर्जा दिए जाने के कई कारण राज्य सरकार की ओर से बताए गए। इसी अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार ने वर्ष 2014 में केंद्र सरकार को पत्र लिखकर कोल समाज को एसटी का दर्जा दिए जाने की सिफारिश की।

बावजूद इसके कोल समाज को अब तक एसटी का दर्जा नहीं मिल पाया है। समाज के एकमात्र विधायक राहुल प्रकाश कोल कहते हैं, “एसटी का दर्जा मिलने से समाज की कई दिक्कतें दूर हो जाती”। उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति / जनजाति आयोग के उपाध्यक्ष मनीराम कोल कहते हैं, “हमने कई बार आवाज उठाई। जनजातीय मामलों के पूर्व मंत्री जेएल उरांव को इस बाबत हमने पत्र भी लिखा था, लेकिन अब तक कोई पहल नहीं की गई”। पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल इस मामले को संसद में प्रमुखता से उठा चुकी हैं।

मिर्जापुर के हलिया क्षेत्र के समाजसेवी जनार्दन कोल कहते हैं कि कोल समाज में शिक्षा का बेहद अभाव है। शिक्षित होने से नौकरी मिलेगी। यदि हमें अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल जाता है तो हमारा समाज भी तेजी से विकास करेगा। फिलहाल प्रशासन में हमारी भागीदारी नगण्य है। प्रधान नन्कू राम कोल कहते हैं, ‘अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने से हमारे बच्चों की प्रशासन में भागीदारी बढ़ेगी तो समाज विकास की पथ पर अग्रसर होगा’। 

निजी विद्यालय में अध्यापन करने वाले अध्यापक चिंतामणि कोल कहते हैं, ‘हम मूलत: आदिवासी समाज में आते हैं। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे अन्य राज्यों में हमें अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है, जिसकी वजह से इन राज्यों में प्रशासन में कोल समाज की भागीदारी तेजी से बढ़ रही है। इसके विपरीत उत्तर प्रदेश में हमें अनुसूचित जाति की श्रेणी में रखा गया है। उत्तर प्रदेश में कोल समाज अत्यधिक पिछड़ा हुआ है। अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने पर हमारे लिए हर विभाग में कुछ सीटें आरक्षित होंगी, ताकि हमारा विकास हो सके।

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