झारखंडः पारिस्थितिकी संतुलन और बाघ संरक्षण के लिए जरूरी गौर की आबादी में चिंताजनक गिरावट

गौर (बोस गौरस), जिसे भारतीय बाइसन के नाम से भी जाना जाता है, जंगलों में पारिस्थितिक संतुलन, जैव विविधता बनाए रखने के अलावा बाघों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है
झारखंडः पारिस्थितिकी संतुलन और बाघ संरक्षण के लिए जरूरी गौर की आबादी में चिंताजनक गिरावट
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झारखंड के विभन्न जंगलों से पहले ही विलुप्त हुए गौर (बाइसन) के आखिरी और मजबूत ठौर पलामू बाघ परियोजना (पीटीआर) में इस वन्य जीव की आबादी में चिंताजनक गिरावट दर्ज की गई है। वन्यजीव संरक्षण में रुचि रखने वाले और प्रबंधकों ने बढ़ती मानवीय गतिविधियों, मानव-वन्यजीव संघर्ष, आनुवंशिक अड़चनें और आवास क्षरण के कारण गौर की आबादी में गिरावट पर चिंता व्यक्त की है।

गौर (बोस गौरस), जिसे भारतीय बाइसन के नाम से भी जाना जाता है, जंगलों में पारिस्थितिक संतुलन, जैव विविधता बनाए रखने के अलावा बाघों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साथ ही, एक शाकाहारी होने के नाते, यह वनस्पति गतिशीलता को आकार देने और बीज प्रसार में योगदान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

1970 के दशक में जहां इसकी आबादी डेढ़ सौ के करीब थी। एक अध्ययन के मुताबिक पलामू बाघ परियोजना में अब इसकी संख्या 68 हो गयी है।  दूसरी तरफ झारखंड की बात करें, तो यह वन्य जीव एक समय सारंडा,  दलमा, और हजारीबाग, गुमला के अन्य कुछ जंगलों में पपनता, फूलता- फलता था। लेकिन अब एक छोटी और अलग-थलग आबादी के रूप में मुख्यतः पीटीआर की उत्तरी क्षेत्र (नॉर्थ रेंज) तक ही सीमित है।

गौर की आबादी में चिंताजनक गिरावट में सुधार और संरक्षण के लिए पलामू व्याघ्र परियोजना ने अपने एक महत्वपूर्ण एक्शन प्लान पर काम करना शुरू किया है। वाइल्ड लाइफ के विशेषज्ञ और परियोजना के अधिकारियों की एक उच्च स्तरीय टीम ने लगभग दो साल के अध्ययन और जमीनी स्तर पर किए गए सर्वे के आधार पर ‘पीटीआर में गौर की पारिस्थितिकी और पुनर्प्राप्ति योजना’ (“ इकोलॉजी एंड रिकवरी प्लान ऑफ गौर इन पीटीआर”)  से जुड़े इस सर्वेक्षण में गौर की आबादी में गिरावट के प्रमुख कारणों की भी पड़ताल की गई है। अध्ययन में कुल 10 समूहों का विश्लेषण किया गया, जिनमें 17 वयस्क नर, 24 वयस्क मादा, 8 अल्प-वयस्क नर, 9 अल्प-वयस्क मादा,7 किशोर और 3 बछड़े शामिल थे।

पलामू टाइगर रिजर्व और पारिस्थितिकी संतुलन

वैसे भी झारखंड में बाघों की मौजूदगी को लेकर तस्वीर सुखद नहीं है। हालांकि इसके संरक्षण के प्रयास जारी हैं। पिछले 26 जून को रांची जिले के सिल्ली ब्लॉक में एक ग्रामीण के घर में घुसे बाघ के रेस्क्यू किए जाने के बाद उसे पीटीआर में ही छोड़ा गया है।

पलामू व्याघ्र परियोजना के निदेशक एस.आर. नटेश डाउन टू अर्थ से कहते हैं कि पिछली गणना के मुताबिक यहां बाघ की संख्या एक है। लेकिन आगे की गणना में यह संख्या बढ़ने की प्रबल संभावना है। एक से ज्यादा बाघों के मूवमेंट रिकॉर्ड किए गए हैं।

 नटेश आगे कहते हैं, “पलामू टाइगर रिजर्व ऐतिहासिक रूप से गौर का गढ़ रहा है। हालांकि, लगातार मानव जनित दबावों, आवास क्षरण और घरेलू पशुओं से होने वाली बीमारियों के कारण आबादी में अलार्मिंग गिरावट देखी गई है।

गौर और सांभर, बाघों (पैंथेराटाइग्रिस) और तेंदुओं (पैंथेरा पार्डस) जैसे शीर्ष वन्य जीवों, शिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण तथा प्रिय शिकार हैं। लिहाजा बाघों के संरक्षण और एक स्वस्थ वन पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता बनाए रखने के लिए गौर की आबादी में सुधार (रिकवरी) जरूरी है। 

‘पीटीआर में गौर की पारिस्थितिकी और पुनर्प्राप्ति योजना’ विस्तार से किए गए अध्ययन और सर्वें के बाद तैयार की गई है। इस रिकवरी प्लान को लेकर हम सभी उत्साहित और आशान्वित हैं।“  

गौरतलब है कि झारखंड के छोटानागपुर पठार में स्थित पलामू टाइगर रिज़र्व भारत के सबसे पुराने बाघ अभयारण्यों में से एक है और बड़े शाकाहारी जीवों के लिए महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी महत्व भी रखता है। यह रिज़र्व 1,129 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें 414 वर्ग किलोमीटर का कोर क्षेत्र (बाघों के लिए महत्वपूर्ण आवास) और 715 वर्ग किलोमीटर का बफर ज़ोन शामिल है। यहां दो संरक्षित क्षेत्र शामिल हैं- पलामू वन्यजीव अभयारण्य और बेतला राष्ट्रीय उद्यान।

आबादी में गिरावट की वजहें और प्लान

झारखंड सरकार के प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं फॉरेस्ट फोर्स के प्रमुख अशोक कुमार ने ‘पीटीआर में गौर की पारिस्थितिकी और पुनर्प्राप्ति योजना’ के प्रस्तावना में लिखा है, “यह खतरनाक गिरावट व्यापक पारिस्थितिक चुनौतियों यथा- आवास क्षरण, मानवजनित दबाव और कम होती आनुवंशिक व्यवहार्यता का लक्षण है।” इसके साथ ही उन्होंने कहा है “मैं विशेष रूप से आवास सुधार, प्रजातियों की निगरानी, मानव-वन्यजीव संघर्ष में कमी और भविष्य में पुनः प्रत्यारोपण की व्यवहार्यता के लिए सिफारिशों के एकीकरण की सराहना करता हूँ। ”

पीटीआर के उप निदेशक ( नार्थ डिवीजन) प्रजेश कांत जेना डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि यह अध्ययन गौर की जनसांख्यिकीय स्थिति, आवास की उपयुक्तता, आहार पारिस्थितिकी और मानव-वन्यजीव अंतःक्रियाओं को समझने के लिए एक व्यापक प्रयास का प्रतिनिधित्व करता है। प्लान का मकसद यही है कि जो भी निर्णय लिए या कदम उठाए जाएं वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तथ्यपरक और परिणामोन्मुखी हो।

वन अधिकारी जेना आगे कहते हैं, “बेशक, बाघों की संख्या बढ़ाने के दृष्टिकोण से गौर का पुनरुद्धार महत्वपूर्ण है। सांभर और चीतल के अलावा, ये बाघों के लिए भोजन का एक अच्छा स्रोत हैं। गौर की आबादी में गिरावट को बढ़ाने के लिए सबसे अधिक जरूरी हैं- सुरक्षा, भोजन, चारागाह (ग्रास लैंड) का विस्तार और जेनेटिक प्रोफाइल सुनिश्चित करना। हमारी कार्य योजना में पीटीआर में गौर की आबादी बढ़ाने के साथ सांरडा जैसे जंगल में इस वन्य जीव को पुनरस्थापित  किया जाना भी शामिल है। परियोजना में अवैध शिकार विरोधी केंद्रों (एंटी पोचिंग कैंप) की संख्या बढ़कर अब 40 हो गयी है। इनमें 24 घंटे सुरक्षाकर्मियों की तैनाती सुनिश्चित की गई है। पहले 190 हेक्टेयर में ग्रास लैंड थे, जो अब 400 हेक्टेयर में हैं। गौर के जल स्रोत बढ़ाने के साथ सुरक्षित करने की कार्य योजना के अलावा जीपीएस और अन्य आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल पर काम शुरू हैं।“

 वन्य प्राणी विशेषज्ञों के मुताबिक अगर पीटीआर और झारखंड के प्रमुख जंगलों में गौर को फिर से बसाने की कोशिश सिरे चढ़ी तो बाघों की आबादी भी बढ़ सकती है।  दूसरी तरफ बेतला के चारों ओर 12 गांव हैं और उन गांवों की आबादी बढ़ गयी है। लोगों के पास लगभग डेढ़ लाख पशुधन हैं। जंगली क्षेत्र में जानवरों की चराई और गौर के लिए जहां पेयजल स्त्रोत हैं, वहां बाहरी जानवरों के पानी पीने से विभिन्न बीमारियाँ, खासकर मुँह और खुरपका रोग फैलती हैं। पीटीआर प्राधिकरण, सरकार के वन पर्यावरण विभाग और जिला प्रशासन के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान जारी है।

उल्लेखनीय है कि अध्ययन में गौर में हल्का महिला-पक्षपाती लिंग अनुपात (1:1.32) पाया गया, जो प्रजनन के लिए अनुकूल है, लेकिन कम किशोर और बछड़ों की संख्या जनसंख्या पुनर्प्राप्ति और उत्तरजीविता के संबंध में चिंता का संकेत देती है। आवास के विखंडन के कारण आवागमन के मार्ग सीमित हो गए हैं, जिससे आनुवंशिक अड़चनों और जनसंख्या में गिरावट का खतरा बढ़ गया है। 

आनुवंशिक प्रोफ़ाइल (जेनेटिक प्रोफाइल) मजबूती  के सवाल पर अधिकारी प्रजेश जेना कहते हैं, “एक खास इलाके में इनके सीमित हो जाने से ब्रीडिंग मिक्सिंग और जेनेटिक डिप्रेशन का संभावित खतरा रहता है। इससे शारीरिक गुणवत्ता प्रभावित होती है। लिहाजा एक नए और मजबूत ‘जीन’ का इजाद हो, इसके लिए भी उच्च अधिकारियों को प्लान दिया गया है. कान्हा टाइगर रिजर्व, मध्य प्रदेश में गौर की अच्छी आबादी है। वहां से लाने के लिए संपर्क किए जा रहे हैं। लेकिन स्थानांतरण की एक प्रकिया है। अनुमति मिलने पर ही इसका स्थानांतरण किया जा सकता है।  

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