भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के द्वारा काफी समय पहले किए गए अध्ययन के अनुसार भारत में आक्रामक विदेशी पौधों की 173 प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित किया गया था। इनमें सबसे खतरनाक आक्रामक प्रजातियां-अल्टरनेथेरा फिलोसेरॉइड्स, कैसिया अनफ्लोरा, क्रोमोलाना एरोमाटा, इचोर्निआ क्रैसेप्स, लैंटाना कैमारा, पार्थेनियम हिस्टीरोपोपस, प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा और अन्य शामिल हैं।
आक्रामक विदेशी (एलियन) प्रजातियों की आबदी में 20 से 30 फीसदी की वृद्धि होने से दुनिया भर में जैव विविधता को नुकसान होगा। यह वियना विश्वविद्यालय के फ्रांज एस्सल और बर्नड लेनजर के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम के एक अध्ययन का निष्कर्ष है। अध्ययन में यूरोप, उत्तर और दक्षिण अमेरिका, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका के 38 शोधकर्ता शामिल थे।
लोगों की जानबूझकर या अनजाने में की गई गतिविधियों से दुनिया के नए क्षेत्रों में अधिक से अधिक पौधे और पशु प्रजातियां पहुंच रहीं हैं- जैसे - व्यापार या पर्यटन के माध्यम से यह हो रहा है।
इन विदेशी प्रजातियों में से कुछ जैव विविधता और लोगों के लिए नुकसानदायक हो सकते हैं, उदाहरण के लिए देशी प्रजातियों को विस्थापित करने या बीमारियों को प्रसारित करने से। हालांकि, जबकि हमारे पास विदेशी प्रजातियों के ऐतिहासिक प्रसार पर अपेक्षाकृत अच्छी जानकारी है, लेकिन वे भविष्य में किस तरह विकास करेंगे, इसके बारे में अभी भी हम बहुत कम जानते है। यह अध्ययन ग्लोबल चेंज बायोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
फिलहाल कंप्यूटर मॉडल के आधार पर सटीक अनुमान लगाना संभव नहीं है, कि भविष्य में विदेशी प्रजातियों के फैलने और इनका प्रभाव कैसे बदलेगा। फ्रांज एस्सल कहते हैं कि लोगों के द्वारा किए गए सर्वेक्षणों के आकलन से ही आने वाले दशकों में विदेशी प्रजातियों के फैलने और प्रभाव के कारणों और परिणामों की बेहतर समझ हो सकती है।
अध्ययन से पता चलता है कि नई विदेशी प्रजातियों की संख्या में 20 से 30 प्रतिशत की वृद्धि बड़े पैमाने पर वैश्विक जैव विविधता के नुकसान का कारण माना जाता है। इन प्रजातियों की संख्या का शिखर पर पहुंचने की आशंका है।
जलवायु परिवर्तन और व्यापार में वृद्धि
मनुष्य विदेशी प्रजाति को फैलाने के मुख्य माध्यम हैं। विशेषज्ञ तीन मुख्य कारणों के बारे में बताते हैं, मुख्य रूप से सामान का बढ़ता वैश्विक व्यापार, उसके बाद जलवायु परिवर्तन और फिर ऊर्जा की खपत और भूमि उपयोग जैसे आर्थिक विकास के प्रभाव भी इसमें शामिल हैं। अध्ययन से यह भी पता चलता है कि देशी प्रजातियों को बढ़ावा देने से विदेशी प्रजातियों के फैलने को काफी धीमा किया जा सकता है।
शोधकर्ताओं ने दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी प्रजातियों की वृद्धि के प्रभाव की और अधिक जांच की- उदाहरण के लिए, पर्यटन उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जैविक आक्रमण का एक प्रमुख कारण है, जबकि जलवायु परिवर्तन भविष्य में विदेशी प्रजातियों के अस्तित्व और स्थापित करने का पक्षधर है, विशेष रूप से ध्रुवीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में।
शोधकर्ताओं ने कहा कि हमारे अध्ययन से पता चलता है कि हम वर्तमान में विदेशी प्रजातियों के कारण भविष्य में पड़ने वाले प्रभावों को किसे तरह कम कर सकते है।
परिणाम अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के आगे के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक आधार बनाते हैं जैसे कि सतत विकास लक्ष्य या जैविक विविधता पर सम्मेलन आदी। इस तरह हम वैश्विक जैव विविधता और हमारे समाज पर विदेशी प्रजातियों के खराब प्रभावों को कम करने में सफल हो सकते हैं।
यूके सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी के हेलेन रॉय कहते हैं कि दुनिया भर में मनुष्यों द्वारा यातायात और व्यापार किए जाने से विदेशी प्रजातियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। कुछ के प्रतिकूल प्रभाव भी पड़े है, जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र पर इन तथाकथित आक्रामक विदेशी प्रजातियों को बड़े पैमाने पर संकलित किया गया है।
शोधकर्ताओं ने कहा अब यह महत्वपूर्ण है कि हमें सबसे अधिक हानिकारक, आक्रामक विदेशी प्रजातियों को रोकना होगा ताकि जैव सुरक्षा की जा सके।