अंतरराष्ट्रीय प्रवासी पक्षी दिवस : झीलों का सौंदर्य बढ़ाते प्रवासी पक्षी

प्रवासी पक्षियों की तादाद लगातार घटती जा रही है। भूमि जल, वायु और ध्वनि सभी तरह के प्रदूषण से पक्षियों को जीवन यापन में परेशानी होती है
फोटो : श्रीराम माहेश्वरी
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श्रीराम माहेश्वरी
प्रकृति के संतुलन के लिए सृष्टि में सभी जीव- प्राणियों का एक अहम स्थान है। इनमें पक्षियों की विशेष भूमिका है। घरों के आसपास, खेत- खलिहानों, वनों, पर्वतों, झीलों, नदियों और सागर किनारे सभी स्थलों में पक्षियों का कलरव मन मोह लेता है। यह आकाश में उड़ते, धरती में विचरण करते और जल में क्रीडा करते हैं। पक्षियों के बिना प्रकृति के सौंदर्य की कल्पना करना ही असंभव है।
पृथ्वी के विभिन्न देशों और क्षेत्रों में अलग-अलग मौसम रहता है। कहीं तेज ठंड और बर्फबारी होती है, कहीं मौसम सामान्य और कहीं गर्मी रहती है। रूस के साइबेरिया में सर्दियों में जब तापमान चालीस- पचास तक चला जाता है और लगातार बर्फबारी होती है, तब वहां के पक्षी भारत की ओर प्रवास करते हैं। इसी तरह कई देशों के पक्षी प्राण रक्षा के लिए भारत सहित अनेक देशों में जाकर प्रवास करते हैं। करीब डेढ़ सौ से अधिक प्रजातियों के पक्षी हर साल जाड़ों में भारत आकर डेरा जमाते हैं और मार्च-अप्रैल में वापस अपने वतन लौट जाते हैं।

यह आश्चर्य का विषय है कि पंद्रह हज़ार किलोमीटर की यात्रा यह बिना रुके 10 दिन में पूरी कर भारत की धरती पर कदम रखते हैं। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात के विभिन्न स्थानों पर झीलों, नदियों और जलाशयों के किनारे इनका बसेरा होता है। ये मेहमान परिंदे झीलों की लहरों में गोते लगाते हैं, जल क्रीड़ा करते हैं। धरती और जल से ये आकाश में उड़ते, वापस आते और वृक्षों पर विश्राम करते हैं। तब लगता है मानो प्रकृति ने अपना इंद्रधनुषी आंचल इनके लिए फैला दिया हो और वह अपनी ममता और वात्सल्य इन पक्षी बच्चों पर लुटा रही हो। पर्यटक और प्रकृति प्रेमियों के लिए पक्षियों का चहचहाना एक मनोरम दृश्य उपस्थित कर उन्हें आनंदित करता है।

पक्षियों के संरक्षण और जन जागरुकता के उद्देश्य से हर साल मई माह के दूसरे शनिवार को अंतरराष्ट्रीय प्रवासी पक्षी दिवस दुनिया के विभिन्न देशों में मनाया जाता है। देश- विदेश की अनेक संस्थाएं कार्यक्रम आयोजित करती हैं और छात्र -शोधार्थी पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों पर शोध करते हैं।
प्रवासी पक्षियों को अपनी यात्रा के दौरान अनेक प्रकार की विषम परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ता है। आंधी, तूफान, चक्रवात , बिजली गिरना, बारिश तथा वाहनों से टकराना जैसे कारण इनकी यात्रा में अवरोध पैदा करते हैं। यात्रा से पहले कुछ पक्षी दो माह से अपने भोजन की मात्रा बढ़ा देते हैं। इससे इनके शरीर में फैट जमा हो जाता है। कई दिनों की यात्रा में यह फैट लगातार घटता जाता है। पक्षियों के शरीर में उड़ान पेशियां होती हैं, यह इन्हें उड़ने में मदद करती हैं। उड़ान के दौरान इन पेशियों की उत्सर्जित होने वाली ऊष्मा से इन्हें निरंतर ऊर्जा मिलती रहती है।
प्रवासी पक्षी सामान्य से अधिक ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं। इससे इन्हें वायु का तेज प्रवाह मिलता रहता है। हवा की दिशा अनुकूलता ही इनकी यात्रा आसान कर देती है। इन पक्षियों की स्मरण शक्ति तेज होती है। पिछले वर्ष यह जिस मार्ग से आए और जिन स्थानों पर रुके, अगले साल यह उसी मार्ग से आते हैं और वहीं रुकते भी हैं। विशेष बात यह है कि प्रवासी पक्षी कभी मार्ग नहीं भटकते। दिन में यह सूर्य की दिशा और रात में तारों को देखते हुए आगे चलते हैं। इनके मार्ग में अनेक नदियां, पर्वत, वन, पठार और मैदान पडते हैं। इन मार्गों में यह कुछ चिन्ह पहचानते हुए आगे अपनी यात्रा तय करते हैं।
प्रवासी पक्षियों में साइबेरियन क्रेन सारस प्रजाति का है। सफेद रंग का यह पक्षी केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान सहित भारत के अनेक नदियों- झीलों में आते हैं । यूरेशिया से आने वाली बत्तख का नाम यूरेशियन टील या कॉमन टील है। करीब तीन सौ ग्राम का यह पक्षी 40 सेंटीमीटर का होता है। हर साल सर्दियों में यह यूरेशिया से दक्षिण दिशा में यूरोप और अफ्रीका के कई देशों में प्रवास करता है। एशियाई कोयल कौवे के आकार की तथा इसका रंग काला होता है। यह सिंगापुर से भारत के पुडुचेरी में आती है। ग्रेटर फ्लैमिंगो केवल रात में ही उड़ान भरता है। दिन में यह विश्राम करता है। बड़े आकार का यह पक्षी भारत, यूरोप और अफ्रीका में पाया जाता है। नवरंग पक्षी रंगीन होता है तथा इसका आकार 20 सेंटीमीटर तक होता है। यह श्रीलंका और भारत के विभिन्न क्षेत्रों में आकर प्रवास करता है। गढ़वाल पक्षी बत्तख प्रजाति का है। एशिया महाद्वीप में यह प्रवास करता है। ब्लैक टेल्ड गोडविट लंबे पैर और लंबी चोंच वाला पक्षी है। यह साइबेरिया और यूरोप से मध्य एशिया के विभिन्न क्षेत्रों में प्रवास करता है। आर्कटिक टर्न अंटार्कटिका से आर्कटिक आकर प्रवास करता है। दुनिया में इस पक्षी का प्रवास सबसे लंबा माना गया है। अपने प्रवास के दौरान यह पक्षी उन्नीस हज़ार किलोमीटर की यात्रा करता है। टिटहरी स्वच्छ पानी को पसंद करती है। इसके पैर लंबे होते हैं। कांब डक हर साल दक्षिण एशिया या मेडागासकर से भारत के हरियाणा में आता है।
नादर्न शोवलर उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवास करते हैं। उत्तरी अफ्रीका से दक्षिणी अफ़्रीका और उत्तरी अमेरिका से दक्षिणी अमेरिका की यात्रा करते हैं। अमूर फाल्कन के पैर लाल और आकार छोटा होता है। साइबेरिया से यह बड़े -बड़े समूहों में भारत हर साल आते हैं। यह पक्षी  बाईस हज़ार किलोमीटर तक यात्रा करता है। रोजी पेलिकन भारत और अफ्रीका में प्रवास करता है। इसका मुख्य भोजन मछली है। यूरोप से यह पक्षी सर्दियों में हर साल आकर उत्तर भारत में प्रवास करता है। प्रवासी पक्षी प्रयागराज संगम तट, खीचन, कच्छ गुजरात, चंबल नदी, भोपाल के बड़े तालाब सहित भारत के अनेक स्थानों पर अपना प्रवास समय बिताते हैं ।
पिछले कुछ वर्षों से प्रवासी पक्षियों की तादाद लगातार घटती जा रही है। इसका कारण है- बढ़ता प्रदूषण। भूमि जल, वायु और ध्वनि सभी तरह के प्रदूषण से पक्षियों को जीवन यापन में परेशानी होती है। उद्योगों से निकलने वाला जहरीला तरल केमिकल और नगरों के सीवरेज का गंदा पानी नदियों और झीलों में मिल रहा है। जंगल लगातार कम होते जा रहे हैं। नदियों और झीलों के आसपास वृक्ष काटे जा रहे हैं। पक्षियों का ज्यादातर आश्रय वृक्षों पर ही रहता है। कुछ लोग पक्षियों का शिकार भी करते हैं। इस तरह मानवीय गतिविधियों के बढ़ने और बढ़ते वाहनों के शोर से पक्षियों के जीवन पर खतरा लगातार बढ़ रहा है। हमें इसे रोकने की आवश्यकता है। पक्षियों को स्वच्छ जल और शांत वातावरण देना मनुष्य का कर्तव्य है। पक्षियों के प्रति दया और उदारता की भावना रखकर ही हम उनका संरक्षण कर सकते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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