अंतरराष्ट्रीय जैवविविधता दिवस: पारिस्थितिकी तंत्र को बचाती है जैवविविधता
हम और हमारे आसपास प्राकृतिक वातावरण में जो कुछ भी दृश्य - अदृश्य - जीवंत है , वह सब जैव विविधता का प्रतीक है। इस पृथ्वी पर प्रकृति में जो रचे-बसे हैं , वे सब जैव विविधता का हिस्सा हैं ।
जल - जंगल , जीव - जंतु , नदी- पहाड़ , समुद्र - दलदल , रेगिस्तान - हरियाली , पेड़ - पौधे , फूल - फल, जड़ी - बूटी - घास, पशु - पक्षी और मनुष्य ।
जी हां !
यह सब कुछ जैव विविधता का हिस्सा है ।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 1992 में आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन के दौरान जैव विविधता के बारे में बताया गया कि " सभी स्रोतों से जीवित जीवन के बीच परिवर्तनशीलता को ही जैव विविधता कहते हैं । इस परिवर्तनशीलता में स्थलीय, समुद्री एवं अन्य जलीय परिस्थितिकी तंत्र और पारिस्थितिक परिवर्तन शामिल है।"
संयुक्त राष्ट्र अन्य देशों में राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर जैव विविधता संरक्षण के लिए लगातार काम कर रहा है। जैव विविधता पारिस्थितिकी तंत्र की कई अहम सेवाएं प्रदान करती है। जैसे वायु और जल का शुद्धिकरण करना , मिट्टी का निर्माण करना , जलवायु का प्रबंधन करना। यह खाद्य सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है क्योंकि यह फसलों, पशुओं को भी प्रजातियों संबंधी विविधता प्रदान करती है। जैव विविधता औषधीय संसाधनों का स्रोत है , जैसे कि पौधे और जानवर जो जिनका प्रकृति में अपना महत्व है।
जैव विविधता के संदर्भ में भारत देश को बहुत समृद्ध माना जाता है भारत के विभिन्न इलाकों में भौगोलिक विविधता और जलवायु की विभिन्नता के कारण जैव विविधता के विविध रूप देखने को मिलते हैं । भारत में विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्र पाए जाते हैं। इनमें वन , घास के मैदान, रेगिस्तान , समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र भी शामिल है।
भारत में लगभग 18 हजार विभिन्न प्रकार के पौधों की प्रजातियां और लगभग 90 हजार विभिन्न प्रकार के जीव जंतुओं की प्रजातियां पाई जाती हैं।
भारत में मध्य प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां जैव विविधता का संरक्षण करने के लिए विभिन्न पहलुओं पर शोध, दस्तावेजीकरण परियोजनाएं , महाविद्यालयों एवं अशासकीय संस्थाओं के सहयोग से संचालित की जा रही है।वर्ष 2024 - 25 में कुल 24 परियोजनाएं संचालित की गई जिनके माध्यम से जैव विविधता के बारे में जागरूकता अभियान भी चलाए गए हैं।
इनके माध्यम से जैव विविधता के संरक्षण और संवर्धन हेतु जागरूकता बढ़ाने का कार्य किया जा रहा है। पश्चिमी घाट पर एक विस्तृत पर्वत श्रृंखला है । इसी प्रकार हिमालय पर्वत की श्रृंखला , सुंदरबन क्षेत्र की मैंग्रोव वन वाली श्रृंखला , जैव विविधता के विशिष्ट उदाहरण है।
इसके साथ ही हमारे देश में जितने भी राष्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव अभ्यारण है , वह भी जैव विविधता के प्रतीक हैं । भारत में जैव विविधता अधिनियम वर्ष 2002 पारित किया गया है जो कि जैव विविधता के संरक्षण और स्थाई उपयोग के लिए नियमन प्रदान करता है।
यह अधिनियम जैव विविधता के संरक्षण एवं उसके अवयवों के पोषण उपयोग , जैव संसाधनों और ज्ञान के उपयोग से अर्जित लाभ में उचित एवं संपूर्ण हिस्सा बढ़ाने , उससे संबंधित या उसके अनुषांगिक विषयों का अपबंधन करने संबंधित है।
इसके अंतर्गत जैव विविधता के संरक्षण और संवर्धन के लिए लगातार कार्य किए जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि जैव विविधता के संदर्भ में प्रकृति ने भारत के हृदय स्थल मध्य प्रदेश पर अपना भरपूर प्यार लुटाया है।
एमपी में वनों की गोद से निकलती सोन, नर्मदा , ताप्ती , चंबल , के साथ ही केन बेतवा , माही , पाहुज , शिप्रा, कालीसिंध, पार्वती, नेवज , जैसी नदियां जनजीवन और जैवविविधता को बेहतर बनाती हैं। साथ ही विभिन्न पर्वतों की श्रृंखलाएं और उनके जल ग्रहण क्षेत्र जैवविविधता के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। यहां उष्णकटिबंधीय शुष्क पतझड़ वाले सागौन मिश्रित साल के वन है। मंडला- डिंडोरी - सिवनी - बालाघाट जैसे जिलों में में साल के वन है तो चंबल क्षेत्र के ग्वालियर , शिवपुरी , भिंड तथा दतिया में छोटे झाड़ीदार वन हैं।
मध्यप्रदेश के बेतूल- हरदा सहित कुछ अन्य जिलों में बहुमूल्य सागौन वृक्ष के वन है । इन वनों से लकड़ी के अलावा बांस और प्रचुर मात्रा में विभिन्न प्रकार की लघु वनोंपज एवं औषधि प्रजातियां मिलती हैं।
प्रसंगवश बताते चलें कि मध्य प्रदेश में वन विभाग की स्थापना वर्ष 1860 में हुई और तभी से वनों का वैज्ञानिक प्रबंधन प्रारंभ हो गया । संभवत : मध्य प्रदेश भारत का ऐसा राज्य है जहां भारत की प्रथम वन नीति अनुसार वर्ष 1994 से ही वर्किंग प्लान बनाने का कार्य किया गया।
वनों के वैज्ञानिक प्रबंधन की परंपरा भारत सरकार के वर्तमान उद्देश्यों और नीति निर्देशक के अनुरूप जैव विविधता का संरक्षण और संवर्धन कर रही है।
भारत सरकार द्वारा अधिसूचित जैव विविधता अधिनियम वर्ष 2002 की धारा 63 (1 )के अनुसार मध्य प्रदेश जैव विविधता अधिनियम 2004 दिनांक 17 दिसम्बर 2024 को अधिसूचित किया गया । इसके अंतर्गत 11 अप्रैल 2005 में मध्य प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड का गठन किया गया ।
इसका उद्देश्य मध्य प्रदेश में जैव विविधता का संरक्षण करना , जैव विविधता के संगठनों का संवहनीय , पोषणीय उपयोग तथा जीव संसाधनों के ज्ञान के वाणिज्यिक उपयोग से अर्जित लाभ का उचित और साम्य पूर्वक वितरण करना है।