विकास की अंधाधुंध होड़ बन रहा है बड़े मांसाहारियों के लिए सबसे बड़ा खतरा: अध्ययन

वैश्विक स्तर पर पिछली शताब्दी में मांसाहारी आबादी में भारी गिरावट देखी गई है, शेर और बाघ अपनी ऐतिहासिक सीमा के 90 प्रतिशत से अधिक गायब हो चुके हैं।
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, चार्ल्स जेम्स शार्प
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एक नए अध्ययन के मुताबिक शेरों, बाघों और भेड़ियों जैसे बड़े मांसाहारी जीवों की आबादी में गिरावट इनके रहने की जगहों के नुकसान या जलवायु परिवर्तन की तुलना में तेजी से मानव आर्थिक विकास की होड़ इसके पीछे का कारण हो सकता है। अध्ययन में पाया गया कि तेजी से हो रहे आर्थिक विकास मांसाहारी जीवों की आबादी में तेजी से गिरावट का कारण बन रहा है।

शोधकर्ता थॉमस जॉनसन ने कहा कि, तेजी से विकास के बीच, लोग मांसाहारियों के प्रति कम सहनशील होते दिखाई दे रहे हैं, इनके बीच संघर्ष बढ़ रहे हैं, साथ ही अवैध शिकार और उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ रही हैं।

जॉनसन ने बताया कि कुछ मांसाहारियों का उनके मांस या वन्यजीवों के व्यापार के लिए शिकार किया जाता है, जबकि अन्य जैसे शेर, किसी की आजीविका के लिए खतरा पैदा होने के चलते जैसे कि उनके मवेशी या उनके जीवन लिए खतरे को देखते हुए उन्हें मार दिया जाता है।

जॉनसन ने कहा, ये चीज़ें वास्तव में आवासों के नुकसान की तुलना में कहीं अधिक प्रभाव डाल रहे हैं। परंपरागत रूप से, निवास स्थान के नुकसान को मांसाहारी आबादी के लिए प्राथमिक खतरा माना जाता है, लेकिन शोधकर्ताओं ने कहा कि मानव विकास द्वारा इन्हें "बौना" कर दिया गया है।

अध्ययन में कहा गया है कि जैसे-जैसे मानव समुदाय समृद्ध होता है और सामाजिक आर्थिक विकास धीमा होता है तो मांसाहारी आबादी बढ़ जाती है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि यह बेहतर निवास स्थान संरक्षण से इन्हें बचाया जा सकता है, लोगों के बीच जागरूकता से जानवरों की देखभाल करने और लोगों की उन्हें मारने की इच्छा भी कम होती है।

यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के शोधकर्ताओं के अनुसार, यूरोप में ग्रे वुल्फ की आबादी पहले ही बढ़ चुकी है, जो 1960 के दशक से जीवन की बेहतर गुणवत्ता और महाद्वीप पर धीमी आर्थिक विकास के कारण 1,800 प्रतिशत बढ़ गई। वह बहाली न केवल संरक्षित पार्कों में बल्कि जंगली इलाकों में भी हो रही है।

जॉनसन ने कहा कि यूरोप में भूरे भालू और लिंक्स की आबादी भी ठीक होने लगे हैं, जबकि भारत में बाघों की आबादी इसी तरह से बढ़ने लगी है।

लेकिन अफ्रीका के कई हिस्सों ने इन निष्कर्षों का समर्थन नहीं किया, जबकि महाद्वीप ने तेजी से विकास नहीं देखा, फिर भी यहां की मांसाहारी आबादी में गिरावट आई है। जॉनसन ने कहा कि ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि दशकों पहले औपनिवेशिक शासन के तहत आबादी में गिरावट आई थी।

निष्कर्ष मानव विकास बनाम मांसाहारियों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने के बीच एक तनाव को सामने लाते हैं। जॉनसन ने सुझाव दिया कि धनी राष्ट्र - बड़े मांसाहारी आबादी में गिरावट के लिए जिम्मेदार, वित्तीय सहायता के माध्यम से उन्हें बचने के लिए कम विकसित देशों की मदद कर सकते हैं। इसमें संरक्षण को बढ़ावा देने के साथ-साथ जीविका कमाने के लिए पर्याप्त जैव विविधता में निवेश करने वाले समुदाय शामिल हो सकते हैं।

जॉनसन ने कहा यदि आप लोगों को गरीबी में धकेलते हैं, तो लोग कभी भी जैव विविधता के साथ नहीं रहेंगे, उन्हें आशा है कि नीति मांसाहारी जीवों के नुकसान को एक अहम मुद्दे के रूप में मानने से आगे बढ़ेगी। उन्होंने कहा हम इसके बारे में एक सामाजिक आर्थिक समस्या के साथ-साथ एक पर्यावरणीय समस्या के रूप में सोचना शुरू करें।

इस कार्य में पिछले 50 वर्षों में 80 से अधिक देशों में मांसाहारियों की 50 प्रजातियों को देखा गया। वैश्विक स्तर पर पिछली शताब्दी में मांसाहारी आबादी में भारी गिरावट देखी गई है, शेर और बाघ अपनी ऐतिहासिक सीमा के 90 प्रतिशत से अधिक गायब हो चुके हैं। यूके में, कई स्थानीय मांसाहारी प्रजातियां जैसे लिंक्स, भेड़िया और भालू पहले ही विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके हैं।

शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई है कि इस अध्ययन के निष्कर्ष मांसाहारी जीवों की आबादी की रक्षा के लिए नीतियों में सुधार करने में मदद कर सकते हैं, जो दुनिया के कई हिस्सों में विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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