भारतीय वन अधिनियम का पहला संशोधन मसौदा तैयार

संरक्षण और जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखकर तैयार मसौदा प्रतिक्रिया के राज्यों के पास भेजा गया है
Credit: Agnimirh Basu
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पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने भारतीय वन अधिनियम, 1927 के पहले व्यापक संशोधन मसौदे को अंतिम रूप दे दिया है। 123 पेजों का यह मसौदा उन अहम मुद्दों को परिभाषित करता है जो मूल कानून में गायब हैं।

यह मसौदा मंत्रालय द्वारा गठित एक कोर समिति के इनपुट के आधार पर तैयार किया गया है। इस मामले में वन महानिरीक्षक (वन नीति) नोयल थॉमस ने 7 मार्च को सभी राज्यों को पत्र भेजकर उनकी राय मांगी थी। सभी राज्यों को अपने सभी हितधारकों जैसे गैर लाभकारी संगठन और सिविल सोसायटी के सदस्यों के साथ परामर्श करना है और 7 जून तक मंत्रालय को प्रतिक्रियाएं भेजनी हैं।  

संशोधित मसौदा समुदाय को जाति, धर्म, जाति, भाषा और संस्कृति में भेदभाव किए बिना एक विशिष्ट इलाके में रहने वाले और संसाधनों के संयुक्त स्वामित्व के आधार पर व्यक्तियों के एक समूह के रूप में परिभाषित करता है।

मसौदे में वन को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि यह वह भूमि है जो सरकारी या निजी या संस्थागत भूमि के रूप में दर्ज की गई है अथवा वन भूमि के रूप में किसी भी सरकारी दस्तावेज में अधिसूचित है। साथ ही जो भूमि सरकार अथवा समुदाय द्वारा वन और मैंग्रोव के रूप में प्रबंधित है। इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया है वह भी वन भूमि में शामिल है जिसे राज्य या केंद्र सरकार अधिनियम के तहत वन भूमि घोषित करती है।  

भारतीय वन अधिनियम 1927 की प्रस्तावना में कहा गया है कि अधिनियम वन उपज को ढोने और उस पर लगने वाले कर से संबंधित कानूनों पर केंद्रित है। संशोधन ने वन संसाधनों के संरक्षण, संवर्धन और टिकाऊ प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया है। साथ ही जलवायु परिवर्तन और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता के मद्देनजर वनों की पारिस्थितिक सेवाओं को महत्व दिया गया है।  

अधिनियम के संशोधन मुख्य रूप से वन अधिकार अधिनियम, 2006 (एफआरए) से जूझते हैं। संशोधनों में कहा गया है कि अगर राज्य सरकार, केंद्र सरकार के साथ परामर्श करने के बाद महसूस करती है कि एफआरए के प्राप्त अधिकारों से वनों के संरक्षण के प्रयासों में बाधा आएगी तो राज्य ऐसे व्यक्तियों को बदले में धन का भुगतान या अन्य तरीकों से अनुदान में भूमि दे सकती है ताकि वनों पर निर्भर लोगों के हितों की रक्षा की जा सके।

संशोधन में वनों की एक नई श्रेणी भी शामिल की गई जिसे उत्पादक वन कहा गया है। इनमें वे वन शामिल हैं जो एक निर्दिष्ट अवधि के लिए देश में उत्पादन बढ़ाने के लिए लकड़ी, लुगदी, जलाऊ लकड़ी, गैर-लकड़ी वन उपज, औषधीय पौधों या देश में उत्पादन बढ़ाने के विशिष्ट उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक होंगे।

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