भारत में 2021 में 126 बाघों की हुई मौत, दशक में सबसे अधिक

मध्य प्रदेश में 526 बाघों का घर था, यहां सबसे अधिक 42 बाघों की मौत हुई है, इसके बाद महाराष्ट्र में जहां 312 बाघ थे, यहां 26 बाघों ने अपनी जान से हाथ धोया
भारत में 2021 में 126 बाघों की हुई मौत, दशक में सबसे अधिक
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राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के मुताबिक भारत में 2021 में कुल 126 बाघों की मौत हुई, जो एक दशक में सबसे ज्यादा है। इस साल 29 दिसंबर तक एनटीसीए के आंकड़ों के मुताबिक मरने वाले 126 बाघों में से 60 संरक्षित क्षेत्रों के बाहर शिकारियों, दुर्घटनाओं और मानव-पशु संघर्ष के शिकार हुए हैं।  

भारत में बाघों की स्थिति-2018 की गणना के अनुसार भारत 2,967 बाघों का घर था। एनटीसीए ने 2012 से सार्वजनिक रूप से बाघों के मौत के आंकड़ों को रखना शुरू किया। 

सबसे ज्यादा बाघों की मौत कहां हुई?

इससे पहले 2016 में बाघों के मौतों की संख्या लगभग (121) लगभग 2021 जितनी अधिक थी। जबकि 2020 में दर्ज 106 बाघों की मौत की तुलना में 2021 में 126 बाघों की मौत लगभग 20 फीसदी की वृद्धि दिखाती है। इस साल के आंकड़ों ने चिंता बढ़ा दी है, विशेषज्ञों ने कठोर संरक्षण प्रयासों की मांग की है, विशेष रूप से उन्होंने वन रिजर्व जैसे स्थानों को और अधिक सुरक्षित बनाने की जरूरत पर जोर दिया है।

मध्य प्रदेश 526 बाघों का घर था, यहां सबसे अधिक 42 बाघों की मौत हुई है, इसके बाद महाराष्ट्र में, जहां 312 बाघ थे, यहां 26 बाघों ने अपनी जान से हाथ धोया है और कर्नाटक, जो कि 524 बाघों की मेजबानी करता है वहां 15 बाघ काल के गाल में समा गए, उत्तर प्रदेश, जहां लगभग 173 बाघ थे, उनमें से 9 मौतें दर्ज की गई हैं।

हालांकि विशेषज्ञों का मानना ​​है कि मरने वाले बाघों की संख्या अधिक हो सकती है, क्योंकि जंगलों के अंदर प्राकृतिक मौतों की एक बड़ी संख्या के बारे में अक्सर रिपोर्ट नहीं की जाती है। 

विशेषज्ञों का कहना है कि मानव-पशु संघर्ष को कम करने के लिए बेहतर संरक्षण योजनाओं को सुनिश्चित किया जाना चहिए। जानवर के लिए अन्य जंगलों में प्रवास के लिए एक स्पष्ट मार्ग सुनिश्चित किया जा सकता है। बाघ अपने क्षेत्र की तलाश में सैकड़ों मील की दूरी तय कर सकते हैं।

बाघों की मौतों को कम करने के लिए और क्या किया जा सकता है?

केंद्र सरकार ने 1973 में दुनिया की सबसे बड़ी प्रजाति के संरक्षण प्रोजेक्ट टाइगर की पहल शुरू की थी। प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) ने बाघों को लुप्तप्राय प्रजातियों की लाल सूची में वर्गीकृत किया है। विशेषज्ञों ने देश में संरक्षण रणनीतियों की निगरानी और मूल्यांकन को मजबूत करने की मांग की है।

2006 में, वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972, को एनटीसीए की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करने के लिए संशोधित किया गया था, जबकि इसे और अधिक मजबूत बनाने के प्रयास किए गए हैं। अवैध शिकार पर लगाम लगाने वाले दस्तों की तैनाती के लिए बाघ अभयारण्य वाले राज्यों के लिए धन उपलब्ध कराकर अवैध शिकार विरोधी गतिविधियों चलना। सरकार की रणनीति के अनुसार बाघ अभयारण्यों के पास के स्थानीय लोगों को भी संरक्षण प्रयासों में शामिल किया गया। कुछ टाइगर रिजर्व राज्यों में एक विशेष बाघ सुरक्षा बल (एसटीपीएफ) भी स्थापित किए गए हैं।

सरकार ने सरिस्का और पन्ना जैसे अभयारण्यों में बाघों को फिर से लाने का प्रयास किया है, जहां यह प्रजाति स्थानीय रूप से विलुप्त हो गई थी। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने संसद में बताया कि पन्ना में बाघों का सफल पुनरुत्पादन दुनिया में अपनी तरह का एक अनूठा उदाहरण है। उत्तराखंड में राजाजी टाइगर रिजर्व के पश्चिमी भाग में भी बाघों को फिर से लाया गया है।

विशेषज्ञों का कहना है कि मानव-पशु संघर्ष के कारण बाघों की मौत को टालने के लिए तत्काल सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। इसके अंतर्गत बाघों की सुरक्षित आवाजाही के लिए गलियारे बनाना होगा, क्योंकि बाघ सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा करने के लिए जाने जाते हैं। यहां तक ​​कि वन्यजीवों के आवासों के घटते दर भी चिंता का विषय है।

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