देश-दुनिया में जिन पेड़ों को हम बड़ी बेरहमी से काट रहे हैं क्या आप जानते हैं वो पेड़ हमारे स्वास्थ्य, पर्यावरण और आर्थिक विकास की कुंजी हैं। खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा आज जारी रिपोर्ट “द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड फॉरेस्ट्स 2022” का कहना है कि वृक्षों के आवरण में वृद्धि करने से वैश्विक स्तर पर करीब 100 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में कृषि उत्पादकता बढ़ सकती है। इतना ही नहीं, 150 करोड़ हेक्टेयर में जो क्षेत्र भूमि गुणवत्ता में गिरावट का सामना कर रहे हैं, उसको भी बहाली से फायदा पहुंचेगा।
आज हम कोविड-19, संघर्ष, जलवायु संकट और जैव विविधता को तेजी से होते नुकसान जैसे अनगिनत खतरों का सामना कर रहे हैं, जिससे उबरने में यह जंगल हमारी मदद कर सकते हैं। लेकिन यह तभी मुमकिन हो पाएगा जब हम इनका सम्मान और संरक्षण करेंगे।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने ऐसा करने के लिए जो तीन रास्ते सुझाए हैं उनमें पहला वनों के तेजी से होते विनाश को रोकना, जबकि दूसरा गिरावट का सामना कर रही भूमि को बहाल करना और कृषि वानिकी का विस्तार करना है। वहीं इसके साथ वनों के सतत उपयोग को बढ़ावा देने के साथ ही ग्रीन वैल्यू चैन का निर्माण करना शामिल है।
रिपोर्ट के मुताबिक बदहाली का सामना कर रही इस धरती पर वनरोपण से जलवायु परिवर्तन की रोकथाम में भी मदद मिलेगी। अनुमान है कि इसके चलते 2020 से 2050 के बीच हर साल वातावरण से 150 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड हटाने में मदद मिलेगी। यह उत्सर्जन हर साल सड़क पर चलने वाली 32.5 करोड़ पेट्रोल गाड़ियों से होने वाले उत्सर्जन के बराबर है।
स्वस्थ धरती के बिना नहीं हो सकती मजबूत अर्थव्यवस्था
इसके साथ ही इस अवधि के दौरान वनों के विनाश को रोककर उन्हें बनाए रखने से हर साल लगभग 360 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड जितने उत्सर्जन से बचा जा सकता है। इसमें वो 14 फीसदी भी शामिल है जो 2030 तक वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए जरुरी है। इसके साथ ही यह प्रयास धरती की आधे से अधिक स्थलीय जैव विविधता को बचाए रखने में भी मददगार होगा।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि इन वनों के सतत उपयोग और ग्रीन वैल्यू चैन की मदद से भविष्य में वस्तुओं की मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी। गौरतलब है कि 2017 में सभी प्राकृतिक संसाधनों की जो वैश्विक वार्षिक खपत 9,200 करोड़ टन थी, वो 2060 में बढ़कर 19,000 करोड़ टन से ज्यादा हो जाएगी। इसके साथ ही पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा रोजगार के अवसरों की जरुरत होगी।
वनों को होता नुकसान किस अन्य संकटों को बढ़ा रहा है इस बारे में मुंबई का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा है कि वहां वन आवरण में हर एक फीसदी की हानि के साथ जल में गंदगी 8.4 फीसदी की दर से बढ़ रही है, जिसके चलते इस पानी के उपचार सम्बन्धी लागत में 1.6 फीसदी की वृद्धि हुई है।
हाल ही में मैरीलैंड विश्वविद्यालय द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि दुनिया में हर मिनट 21.1 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में फैले उष्णकटिबंधीय जंगल नष्ट हो रहे हैं, जिनका क्षेत्रफल 10 फुटबाल मैदानों जितना है। अनुमान है कि 2021 में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में फैले करीब 111 लाख हेक्टेयर में फैले जंगल खत्म हो गए थे।
यह तब है जब हाल ही में संपन्न हुए कॉप-26 सम्मलेन में दुनिया के 141 देशों ने जंगलों के बढ़ते विनाश को 2030 तक न केवल रोकने की प्रतिज्ञा की थी, साथ ही ‘ग्लास्गो लीडर्स डिक्लेरेशन ऑन फॉरेस्ट्स एंड लैंड यूज’ में इस बात पर भी सहमति जताई थी कि वो इन जंगलों की पुनः बहाली के लिए काम करेंगें।
लेकिन आंकड़ों को देखकर लगता नहीं है कि हम सही ढर्रे पर जा रहे हैं। ऐसे में यदि हमें बेहतर कल चाहिए तो उसके लिए आज से प्रयास करने होंगे। एफएओ रिपोर्ट का इस बारे में कहना है कि समाज जैव विविधता के संरक्षण के साथ ही इन जंगलों और पेड़ों का बेहतर उपयोग कर सकता है। जो मानव कल्याण के लिए बेहतर अवसर प्रदान कर सकते हैं। साथ ही इसकी मदद से विशेष रूप से ग्रामीणों के लिए आय के बेहतर अवसर पैदा किए जा सकते हैं।
पूर्वोत्तर भारत में, जंगली पौधों और कवक की 160 से अधिक प्रजातियों को स्थानीय बाजारों में बेचा जाता है, जो वहां के स्थानीय लोगों की आय में 75 फीसदी तक का योगदान देती हैं। इस तरह इन जंगलों से प्राप्त होने वाले यह उत्पाद लोगों की जीविका में अहम भूमिका निभाते हैं।
सिर्फ दोहन ही नहीं, संरक्षण पर भी देना होगा ध्यान
स्वस्थ धरती के बिना हम मजबूत अर्थव्यवस्था तैयार नहीं कर सकते। हमें प्रकृति और विकास को साथ लेकर चलना होगा। लेकिन इसके लिए पहले इन जंगलों को होते नुकसान को रोकने के लिए निवेश करना होगा। जो जरुरत से ज्यादा कम है।
अभी हम इन जंगलों का केवल दोहन कर रहे हैं लेकिन हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी। इन वनों पर किए जा रहे निवेश को 2030 तक तीन गुना और 2050 तक चार गुना बढ़ाना होगा, जिससे हम जलवायु, जैव विविधता और भूमि में आती गिरावट को रोकने के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके। अनुमान है कि 2050 तक वन क्षेत्र की बहाली और प्रबंधन पर हर साल 15.5 लाख करोड़ रुपए का निवेश करना होगा।