आर्थिक असमानता के कारण दुनिया में फल-फूल रहा है वन्यजीव व्यापार

1998 से 2018 के बीच 42.1 करोड़ से ज्यादा संकटग्रस्त वन्यजीवों का अंतराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार किया गया था।
इंडोनेशिया के प्रमुका बुरंग मार्केट में बेचने के पिंजरे में रखे गए दो बन्दर, फोटो: बुसरा तिरकल्यापन
इंडोनेशिया के प्रमुका बुरंग मार्केट में बेचने के पिंजरे में रखे गए दो बन्दर, फोटो: बुसरा तिरकल्यापन
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दुनिया भर में व्याप्त आर्थिक असमानता के चलते वन्यजीवों का व्यापार फलफूल रहा है जो न केवल इन जीवों की आबादी और जैवविविधता पर असर डाल रहा है, साथ ही इसके कारण इंसानों में भी महामारियों के फैलने का खतरा बढ़ रहा है।

हाल ही में अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस एडवांसेज में छपे एक शोध से पता चला है कि पिछले दो दशकों में 1998 से 2018 के बीच 42.1 करोड़ से ज्यादा वन्यजीवों का अंतराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार किया गया था। यह व्यापार करीब 226 देशों में फैला है। यदि साइटस द्वारा जारी सूचि के आधार पर देखें तो इनमें से ज्यादातर जीवों पर पहले ही संकट मंडरा रहा है।

विश्लेषण के अनुसार ज्यादातर जंगली जानवरों को कम आय वाले देशों से पकड़कर अमीर विकसित देशों में निर्यात किया गया था। उदाहरण के लिए मेडागास्कर और अमेरिका के बीच जंगली मेंढकों का व्यापार किया जाता है। इसी तरह थाईलैंड से पकड़ी गई जंगली मछलियों को हांगकांग भेजा जाता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि आय में व्याप्त असमानता इस व्यापार को चला रही है, जिसे स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है।

विश्लेषण के अनुसार 1998 से 2018 के बीच हुए जंगली जीवों के व्यापार को देखें तो इंडोनेशिया, जमैका और होंडुरास जीवों के सबसे बड़े निर्यातक थे। इस अवधि में अकेले इंडोनेशिया ने 7.1 करोड़ से ज्यादा वन्यजीवों को निर्यात किया था। वहीं जमैका ने 4.7 करोड़ और होंडुरास ने 3.8 करोड़ से ज्यादा वन्य जीवों को निर्यात किया था। इस अवधि में अमेरिका ने 20.4 करोड़ से ज्यादा वन्यजीवों का आयात किया था। इसके बाद फ्रांस (2.8 करोड़) और इटली (2.55 करोड़) दूसरे और तीसरे स्थान पर थे। 

शोधकर्ताओं के अनुसार ऐसे में जरुरी है कि उच्च आय वाले देश वन्यजीवों के संरक्षण के लिए गरीब देशों का सहयोग करें। जो देश सबसे अधिक वन्यजीवों का निर्यात कर रहे हैं उन्हें एक निर्धारित समय अवधि में व्यापार कम करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

वन्यजीवों का यह अंतराष्ट्रीय व्यापार जानवरों और पौधों की संकटग्रस्त प्रजतियों के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है। यदि देखा जाए तो इससे पहले पांच बार धरती का सामूहिक विनाश हो चुका है और अब यह छठा मौका है जब हम उस विलुप्ति की कगार पर जा रहे हैं। बस इन घटनाओं में इतना अंतर है कि पहले इसके लिए उल्कापिंडों का गिरना या ज्वालामुखी विस्फोट जैसे कारण जिम्मेवार थे और इस बार इसके लिए हम इंसान जिम्मेवार होंगें।

इंसानों पर भी बढ़ रहा है महामारियों के फैलने का खतरा

आज हमने जंगली जीवों को एक उत्पाद के रूप में देखना शुरू कर दिया है। जिस तरह से बिना सोचे समझे इनका व्यापार किया जा रहा है, उससे इनकी आबादी नाटकीय रूप से कम हो रही है। इसका असर ने केवल इन जीवों के पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ रहा है जिसका वह हिस्सा हैं साथ ही उन नए परिवेशों पर भी असर डाल रहा है जिनके लिए वो नए हैं। जब इन जीवों का व्यापार किया जाता है तो इनके साथ इनमें मौजूद जीवाणु और बीमारियां भी फैल रही हैं। ऐसा ही एक मामला उभयचर जीवों में सामने आया था जिनमें चिट्रिड फंगस के कारण बीमारी फैल गई थी, इसके कारण दुनिया भर में मेंढकों की करीब 200 से ज्यादा प्रजातियों पर खतरा मंडरा रहा है।

ऐसा नहीं है कि इन जीवों में मौजूद बीमारियां केवल जंगली जीवों और पौधों के लिए ही हानिकारक होती हैं। इनका इंसानो पर भी खतरा बढ़ता जा रहा है। ऐसे ही इबोला और मर्स जैसी बीमारियां इंसानों में फैल गई थी। हाल ही में फैली महामारी कोविड-19 इसका जीता जागता उदाहरण है।

शोधकर्ताओं का मानना है कोविड-19 के कारण जिस तरह चीन सहित अन्य देशों में वन्यजीवों की खपत में कमी आई है, उसके कारण अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव व्यापार में गिरावट आ सकती है। यह ऐसा मौका है जिसका फायदा बदलाव लाने के लिए किया जा सकता है। इसके लिए जरुरी है कि वन्यजीवों के व्यापार पर स्थाई तौर पर प्रतिबंध लगाया जाए। साथ ही लोगों को भी इसके प्रति जागरूक किया जाए।

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