
राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एनबीडब्ल्यूएल) की स्थायी समिति ने शरावती घाटी लायन टेल्ड मकाक वन्यजीव अभयारण्य में 142 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्जन को सैद्धांतिक मंजूरी प्रदान कर दी है। इस परियोजना की पारिस्थितिकीय क्षति और व्यावसायिक व्यवहार्यता पर चिंता जताई गई है और अभी वन स्वीकृति नहीं मिली है।
यह अभयारण्य पश्चिमी घाट में स्थित है और लगभग 700 लायन टेल्ड मकाक का घर है जो किसी भी संरक्षित क्षेत्र में इस संकटग्रस्त प्रजाति की सबसे बड़ी आबादी है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के अनुसार, जंगल में लगभग 2,500 ऐसे मकाक ही बचे हैं और इनकी संख्या लगातार घट रही है।
142.76 हेक्टेयर भूमि के डायवर्जन का यह प्रस्ताव 26 जून 2025 को एनबीडब्ल्यूएल की 84वीं बैठक में मंजूर किया गया। इसमें 39.72 हेक्टेयर भूमि अभयारण्य के इको-सेंसिटिव जोन से ली गई है और इसका उपयोग 2,000 मेगावाट वाली शरावती पंप्ड स्टोरेज परियोजना के लिए किया जाएगा, जिसे कर्नाटक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड द्वारा शिवमोग्गा और उत्तर कन्नड़ जिलों में क्रियान्वित किया जाएगा।
पर्यावरण मंत्रालय के परिवेश पोर्टल पर अपलोड बैठक की कार्यवाही के अनुसार, यह प्रस्ताव राज्य के प्रधान मुख्य वन्यजीव संरक्षक, राज्य वन्यजीव बोर्ड और कर्नाटक सरकार द्वारा अनुशंसित किया गया है।
दस्तावेज के अनुसार, बांध पहले से ही बने हुए हैं। योजना के तहत लिंगानमक्की डैम से पानी को पावर चैनल के जरिए 55 मेगावाट पावरहाउस तक ले जाकर तलकलेले जलाशय में छोड़ा जाएगा, जो पहले से मौजूद 1,035 मेगावाट की शरावती परियोजना का संतुलन जलाशय है।
नई पंप्ड स्टोरेज परियोजना में तलकलेले और गरुसोप्पा जलाशयों को क्रमशः ऊपरी और निचले जलाशय के रूप में उपयोग करने का प्रस्ताव है, जिसमें 460 मीटर से अधिक की ऊंचाई के अंतर का उपयोग किया जाएगा। समिति ने पाया है कि इन मौजूदा संरचनाओं में कोई नया निर्माण नहीं किया जाएगा।
हालांकि, परियोजना के तहत लगभग 15,000 पेड़ों की कटाई की जाएगी, ताकि पहुंच मार्ग का निर्माण और जलाशयों को जोड़ने वाली भूमिगत पाइपलाइन बिछाई जा सके।
एनबीडब्ल्यूएल सदस्य एचएस सिंह ने कई प्रमुख मुद्दे उठाए, जिनमें मीडिया रिपोर्टों द्वारा परियोजना का विरोध शामिल है। उन्होंने पंप्ड स्टोरेज की आर्थिक व्यवहार्यता पर संदेह जताया, क्योंकि इसमें पानी को ऊपर चढ़ाने के लिए बिजली की आवश्यकता होती है और बाद में नीचे छोड़ने पर ऊर्जा उत्पन्न की जाती है जिससे ऊर्जा की हानि होती है और संपूर्ण संभावित ऊर्जा को बिजली में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। उन्होंने इसे आर्थिक रूप से अव्यवहार्य बताया है।
उन्होंने आगे कहा कि इससे गंभीर पारिस्थितिकीय क्षति होगी और वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 के तहत पहले अनुमोदन प्राप्त किया जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने साइट का निरीक्षण करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने की सिफारिश की।
भारतीय वन्यजीव संस्थान के निदेशक ने भी चिंता जताई कि यह अभयारण्य एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का हिस्सा है।
इस पर कर्नाटक के प्रधान वन्यजीव संरक्षक ने स्पष्ट किया कि परियोजना मौजूदा जलाशयों का उपयोग करती है और नए डैम का निर्माण नहीं होगा। टर्बाइन और पंप वही रहेंगे और सिस्टम सौर ऊर्जा से संचालित होगा, जिससे दिन में पानी को ऊपर और शाम को बिजली उत्पादन के लिए नीचे बहाया जाएगा।
उन्होंने कहा, “दोपहर में सौर ऊर्जा से पानी तलकलेले (ऊपरी जलाशय) में पंप किया जाएगा। शाम के समय पीक आवर में पानी गरुसोप्पा डैम (निचला जलाशय) में बहाया जाएगा जिससे बिजली उत्पन्न की जाएगी।” उन्होंने इसे एक हरित परियोजना बताया और कहा कि इससे क्षेत्र पर अधिक पारिस्थितिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। हालांकि सड़क निर्माण से पेड़ कटेंगे, लेकिन कैनोपी ब्रिज जैसे उपायों से मकाक की आवाजाही को सुनिश्चित किया जाएगा।
एनबीडब्ल्यूएल सदस्य रमण सुकुमार ने शरावती घाटी अभयारण्य की घनी वनस्पति और इसकी लायन टेल्ड मकाक के सबसे बड़े आवास के रूप में भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि प्रस्ताव में पारिस्थितिक प्रभाव का पर्याप्त विवरण नहीं है, जैसे कितने पेड़ काटे जाएंगे, कौन-कौन सी प्रजातियां प्रभावित होंगी और सड़क व अन्य निर्माण कार्यों का क्या प्रभाव होगा।
उन्होंने कहा, प्रस्ताव का गहन मूल्यांकन होना चाहिए। परियोजना के लिए विस्तृत पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन (ईआईए) आवश्यक है।
एनबीडब्ल्यूएल के सदस्य सचिव ने स्पष्ट किया कि वन स्वीकृति, वन्यजीव स्वीकृति और पर्यावरण स्वीकृति की प्रक्रियाएं समानांतर रूप से चल रही हैं। उन्होंने बताया कि वन स्वीकृति के तहत साइट निरीक्षण पहले ही किया जा चुका है और कोई नया डैम नहीं बनेगा। केवल मौजूदा डैम को भूमिगत पाइपों से जोड़ा जाएगा। अभयारण्य को नुकसान मुख्यतः सड़क निर्माण के कारण होगा।
उन्होंने आश्वासन दिया कि हालांकि कैनोपी में कुछ विघ्न आएंगे, लेकिन पर्यावरण मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार पर्याप्त शमन उपाय अनिवार्य होंगे। यदि कोई परियोजना संरक्षित क्षेत्र में आती है, तो वन्यजीव स्वीकृति मिलने के बाद ही वन स्वीकृति पर विचार किया जाता है।
समिति ने निष्कर्ष निकाला कि यह प्रस्ताव अंतिम मूल्यांकन के लिए स्थायी समिति के समक्ष केवल तभी लाया जाएगा जब इसे वन अधिनियम के तहत अनुमोदन मिल जाएगा।
अध्यक्ष ने यह भी सिफारिश की कि वन स्वीकृति प्राप्त होने के बाद प्रस्ताव को दोबारा समिति में विचारार्थ लाया जाए और सैद्धांतिक मंजूरी पर अतिरिक्त शर्तें भी लागू की जाएं।