भले ही देश भर में हाथियों और इंसानों के बढ़ते आपसी संघर्ष के लिए हम इस निरीह जानवर को जिम्मेवार ठहराते हों लेकिन सच यही है कि इस बढ़ते संघर्ष के लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं, जिन्होंने अपने फायदे के लिए हाथियों के आवास की 86.2 फीसदी जमीन हड़प ली है।
इंसानों ने यह करामात पिछले 315 सालों में की है। एक रिसर्च में जारी आंकड़ों के मुताबिक जहां वर्ष 1700 में हाथियों के लिए उपयुक्त जमीन का कुल क्षेत्रफल 16,55,527 वर्ग किलोमीटर था, वो 2015 में घटकर केवल 2,28,354 वर्ग किलोमीटर रह गया था। मतलब की इन तीन सदियों में इंसानों ने हाथियों की 86 फीसदी से ज्यादा जमीन पर अतिक्रमण कर लिया है।
यह जानकारी यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया द्वारा की गई नई रिसर्च में सामने आई है, जिसके नतीजे जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुए हैं। ऐसा नहीं है कि हाथियों की यह जमीन भारत में ही छीनी गई है। रिसर्च के मुताबिक इसका असर उन सभी देशों पर पड़ा है जहां एशियाई हाथी पाए जाते हैं।
आंकड़ों के मुताबिक इन 315 वर्षों में एशियाई हाथियों के आवास के लिए योग्य कुल क्षेत्र में करीब 64.2 फीसदी की गिरावट आई है जो 1700 में 52.3 लाख वर्ग किलोमीटर से घटकर 2015 में 18.7 लाख वर्ग किलोमीटर रह गया है।
रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए हैं उनके अनुसार एशियाई हाथियों के आवास में सबसे ज्यादा गिरावट चीन में देखने को मिली है। इसके बाद भारत का नंबर आता है। गौरतलब है कि इन पिछले 315 वर्षों के दौरान चीन में हाथियों के आवास क्षेत्र में 94.2 फीसदी की गिरावट देखी गई है जो 1700 में 10,87,183 वर्ग किलोमीटर से 2015 में घटकर 65,189 वर्ग किलोमीटर रह गया है।
वहीं 71.8 फीसदी की गिरावट के साथ बांग्लादेश इस मामले में तीसरे स्थान पर हैं जहां हाथियों का आवास क्षेत्र 44,046 वर्ग किलोमीटर से घटकर केवल 12,405 वर्ग किलोमीटर रह गया है। इसी तरह थाईलैंड में 67 फीसदी वियतनाम में 58.6 फीसदी, इंडोनेशिया (सुमात्रा) में 58.5 फीसदी, म्यांमार में 32.3 फीसदी और नेपाल में 24.4 फीसदी की गिरावट देखी गई है।
कहां घटी, कहां बढ़ी इनकी आबादी
इस मामले में श्रीलंका और भूटान की स्थिति भी ऐसी ही हैं जहां श्रीलंका में हाथियों के लिए उपयुक्त आवास क्षेत्र में इन 315 वर्षों में 24.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई हैं वहीं भूटान में यह गिरावट 17.4 फीसदी रही। हालांकि इस दौरान कुछ देश ऐसे भी रहे जहां हाथियों के आवास क्षेत्र में बढ़ोतरी भी हुई है इनमें लाओस 7.3 फीसदी और मलेशिया का बोर्नियो शामिल हैं जहां आवास क्षेत्र में करीब 62 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।
एशियाई हाथी एशिया में जमीन पर पाया जाने वाला सबसे बड़ा स्तनपायी जीव है। इसका वैज्ञानिक नाम एलिफस मैक्सिमस है। इस जीवो की ऊंचाई 6.5 से 11.5 फीट, जबकि लंबाई करीब 21 फीट होती है। यदि आईयूसीएन द्वारा जारी रेड लिस्ट को देखें तो इस जीव को ऐसे जीवों में रखा गया है जो विलुप्त होने के कगार पर हैं।
इनकी आबादी में किस तरह गिरावट आई है इसे इसी से समझा जा सकता है कि 20वीं शताब्दी की शुरुआत में एक लाख से से अधिक एशियाई हाथी मौजूद थे जो अभी घटकर 50 हजार से भी कम रह गए हैं। इसके करीब 50 फीसदी भारत में हैं। गौरतलब है कि भारत में हाथी हमारी संस्कृति का हिस्सा रहे हैं इसके बावजूद इनकी आबादी में तेजी से गिरावट आई है। पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2017 में जारी इनकी गणना के अनुसार देश में अभी केवल 27,312 हाथी बचे हैं।
यही वजह है कि भारत में इस विशाल जीव को बचाने के लिए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की पहली अनुसूची में रखा गया है। लेकिन फिर भी इनको बचाने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं वो काफी नहीं हैं। यही वजह है कि 2021 में वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड फॉर नेचर (डब्लूडब्लूएफ) ने भी अपनी रिपोर्ट में हाथियों के लिए रिजर्व बनाने पर बल दिया था। यह बेहद मिलनसार और सामाजिक जीव है जो झुंड में रहना पसंद करता है। यह जीव अपने दिन का दो-तिहाई से ज्यादा हिस्सा भोजन में बीतता है।
यदि इनके आवास में आती गिरावट की वजह को देखें तो इसके लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं। सैकड़ों वर्षों से जिस तरह हमने वनों का विनाश किया है और कृषि एवं बुनियादी ढांचे के लिए भूमि को मानव अनुकूल बनाने की कोशिश की है। उसका खामियाजा अन्य जीवों को भुगतना पड़ रहा है, जिसमें यह हाथी भी शामिल हैं।
इतना ही नहीं खनन जैसी गतिविधियों ने जंगल के अंदर भी इनके आवास को नष्ट कर दिया है। आज इंसान उन रास्तों पर बस गया है जिनपर कभी यह हाथी आते-जाते थे। इन सबका नतीजा यह हुआ कि हम इंसानों के साथ इनका संघर्ष भी बढ़ता गया कभी इंसान ने इस जीव की जान ली तो कभी इस जीव ने इंसान की और यह सिलसिला चलता रहा।
क्या है समाधान
विशेषज्ञों का भी कहना है कि हाथी एक विशाल जीव है, लाजिमी है कि उसे खाने के लिए बहुत ज्यादा भोजन की जरूरत पड़ती है। यही वजह है कि वो खाने की तलाश में अपने आवास के 150 से 200 किलोमीटर के दायरे में एक जगह से दूसरी जगह पलायन करता रहता है। ऐसे में खनन, इंसानी संरचनाएं, जैसे रोड, रेलवे लाइन, बांध, नहरें आदि उनके रास्ते में बाधा बन जाती है और इनके पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रही हैं। नतीजन इनके और इंसानों के बीच झड़पें बढ़ रहीं हैं।
रिसर्च के मुताबिक तीन शताब्दी पहले एक हाथी अपने आवासीय क्षेत्र के 40 फीसदी हिस्से में बिना किसी रुकावट के घूम सकता था, क्योंकि यह एक बड़ा क्षेत्र था, जिसमें कई पारिस्थितिक तंत्र शामिल थे। लेकिन 18वीं शताब्दी की शुरुआत से यूरोपियन उपनिवेशीकरण के विस्तार के साथ-साथ हाथियों के आवास में भी गिरावट आती गई जो स्पष्ट रूप से इनके आवासों में बढ़ते इंसानी प्रभावों के साथ मेल खाती है। साथ ही वैज्ञानिकों ने अपने इस अध्ययन में हाथियों पर पड़ते जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को भी महत्वपूर्ण माना है, जो इनके आवास पर असर डाल रहा है।
ऐसे में यह जरूरी है कि इंसान अपनी जरूरतों के साथ-साथ अन्य जीवों की आवश्यकता को भी समझे। आज इनके आवासों को दोबारा बहाल करने की जरूरत है। हालांकि इस बहाली का मतलब यह नहीं है कि उन्हें स्थिर रखा जाए। इसके लिए हमें किसानों, ग्रामीणों और स्थानीय समुदायों की भूमिका को बेहतर ढंग से समझने की जरूरत है।
यह ऐसा वर्ग है जो हमेशा हाशिए पर रहता है, लेकिन यह वो भी हैं जो सीधे तौर पर इनके संपर्क में आता हैं। हमें इन दोनों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की जरूरत है। साथ ही भविष्य में बढ़ती इंसानी आबादी और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को देखते हुए कैसे इन जीवों के आवासों और प्रवास के रास्तों को बनाए रखा जा सकता है इसपर विचार करने की जरूरत है।