2023 के दौरान दुनिया में 37 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैले प्राथमिक उष्णकटिबंधीय जंगल नष्ट हो गए, जो आकार में करीब-करीब भूटान के बराबर हैं। देखा जाए तो हम हर मिनट औसतन 10 फुटबॉल मैदान के आकार के बराबर उष्णकटिबंधीय वनों को खो रहे हैं। जो मानवता पर मंडराते एक बड़े खतरे की ओर इशारा करता है।
कहीं न कहीं मनुष्य इन जंगलों को गंवा कर स्वयं ही अपने विनाश की पटकथा लिख रहा है। विश्लेषण के मुताबिक यह राजनीतिक नेतृत्व और मजबूत नीतियां का ही परिणाम है कि 2022 की तुलना में 2023 में वन क्षेत्रों को होते नुकसान में नौ फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। हालांकि इसके बावजूद सालाना जिस रफ्तार से यह सदियों से संजोए जंगल नष्ट हो रहे हैं वो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि हम 2030 तक जंगलों को बचाने के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किए गए थे, उसकी राह से भटक चुके हैं।
यह जानकारी मैरीलैंड विश्वविद्यालय और वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों में सामने आई है। गौरतलब है कि दुनिया भर के 144 नेताओं ने ग्लासगो में हुए कॉप-26 सम्मलेन के दौरान 2030 तक इन जंगलों को बचाने की प्रतिज्ञा ली थी। साथ ही 35 करोड़ हेक्टेयर क्षतिग्रस्त भूमि को दोबारा बहाल करने को लेकर सहमति की गई थी।
हालांकि आंकड़ों के मुताबिक ब्राजील और कोलंबिया में वनों को होते नुकसान में कमी देखी गई है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ बोलीविया, लाओस, निकारागुआ और अन्य देशों में मौजूद उष्णकटिबंधीय वन क्षेत्रों में प्राथमिक जंगलों को होते नुकसान में वृद्धि हुई है। इस तरह ब्राजील और कोलंबिया के वन क्षेत्रों के विनाश में आती गिरावट से जो उमीदें जगी थी उन्हें दूसरे देशों ने निराशा में बदल दिया है।
आंकड़ों के मुताबिक ब्राजील और कोलंबिया में पर्यावरण और वन संरक्षण पर ध्यान देने, राजनीतिक इच्छाशक्ति और नीतिगत बदलावों की वजह से वन विनाश में महत्वपूर्ण गिरावट आई है।
ब्राजील ने राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा के नेतृत्व में जहां वन क्षेत्रों को होती हानि में 36 फीसदी की गिरावट देखी है। जो 2015 के बाद से इसमें पाई गई सबसे बड़ी सफलता है। इसकी वजह से वैश्विक स्तर पर प्राथमिक वनों को होते नुकसान में ब्राजील की कुल हिस्सेदारी 2022 में 43 फीसदी से घटकर 2023 में 30 फीसदी रह गई है। इसी तरह, राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो उर्रेगो के नेतृत्व में कोलंबिया ने 2022 की तुलना में 2023 में अपने प्राथमिक वन क्षेत्रों को होते नुकसान को करीब आधा (49% कम) कर दिया है।
वैश्विक स्तर पर देखें तो जंगलों का सबसे ज्यादा विनाश ब्राजील में हो रहा है। इसके बाद डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो और बोलीविया क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। हालांकि ब्राजील के विपरीत, इन दोनों देशों में 2023 के दौरान वन विनाश में वृद्धि देखी गई है।
आंकड़ों के अनुसार जहां अफ्रीकी देश डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो ने 2023 में पांच लाख हेक्टेयर से अधिक प्राथमिक वर्षावन खो दिए। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कांगो बेसिन ऐसा अंतिम बचा प्रमुख उष्णकटिबंधीय वन क्षेत्र है जो अभी भी कार्बन सिंक के रूप में कार्य कर रहा है। यह उत्सर्जन की तुलना में कहीं ज्यादा कार्बन अवशोषित करता है।
2010 में, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में 19.8 करोड़ हेक्टेयर में प्राकृतिक जंगल मौजूद थे, जो इसके 85 फीसदी भू-क्षेत्र में फैले थे। वहीं 2002 से 2023 के बीच इसने अपने 68.6 लाख हेक्टेयर में फैले प्राथमिक आद्र वनों को खो दिया था। यदि सिर्फ 2023 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो 2023 में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो ने 13.2 लाख हेक्टेयर में फैले प्राकृतिक जंगलों का नुकसान झेला है।
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भारत में भी 21,672 हेक्टेयर में फैले प्राथमिक वनों का हुआ है नुकसान
इसी तरह बोलीविया में भी 2023 में प्राथमिक वनों को हुए नुकसान में 27 फीसदी की वृद्धि देखी है, जो लगातार तीसरे साल रिकॉर्ड ऊंचाई पर है। गौरतलब है कि डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो या इंडोनेशिया के आधे से भी कम वन क्षेत्र होने के बावजूद, बोलीविया उष्णकटिबंधीय देशों में प्राथमिक वन हानि में तीसरे स्थान पर है। वहां कृषि और आग की वजह से वन क्षेत्रों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है।
इसी तरह इंडोनेशिया ने भी प्राथमिक वनों को होते नुकसान में 27 फीसदी की वृद्धि देखी है। कहीं न कहीं इस नुकसान में जंगल में लगी आग की भी बड़ी भूमिका रही है। इसके अतिरिक्त, लाओस और निकारागुआ दोनों ने 2023 सहित हाल के वर्षों में प्राथमिक वन क्षेत्रों को होती हानि में वृद्धि देखी है।
अपने छोटे आकार के बावजूद, दोनों देशों में वन हानि की उल्लेखनीय रूप से उच्च दर है, लाओस ने 2023 में अपने प्राथमिक वनों का 1.9 फीसदी और निकारागुआ ने 4.2 फीसदी खो दिया है। इसके लिए कहीं न कहीं कृषि क्षेत्रों में होता विस्तार जिम्मेवार है।
इस बारे में डब्ल्यूआरआई के अध्यक्ष और सीईओ अनी दासगुप्ता ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, "जंगल, जलवायु परिवर्तन से लड़ने, आजीविका का समर्थन करने और जैव विविधता की रक्षा करने के लिए अहम पारिस्थितिक तंत्र हैं।" यह कहानी बताती है कि जब नेता कार्रवाई को प्राथमिकता देते हैं, तो हम क्या हासिल कर सकते हैं, लेकिन आंकड़े जंगलों और हमारे भविष्य की रक्षा के लिए गंवाए गए अवसरों के कई अहम पहलुओं को भी उजागर करते हैं।''
गौरतलब है कि अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने तेजी से किए जा रहे विनाश और कार्बन स्टोर करने की क्षमता को ध्यान में रखते हुए उष्णकटिबंधीय जंगलों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया है। इसके साथ ही जंगलों को होते नुकसान के लिए जिम्मेवार कारकों जैसे कृषि, वनों की बेतहाशा होती कटाई और आग की वजह से होती तबाही जैसे कारणों पर गौर किया है।
हालांकि वनों का होता विनाश केवल कटिबंधों तक ही सीमित नहीं था, इसके बाहर भी उसमें असाधारण वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए कनाडा को भी रिकॉर्ड तोड़ भीषण आग से भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है। आंकड़ों के अनुसार कनाडा में आग के चलते 80 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैले जंगलों को नुकसान पहुंचा है।
इसी तरह भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो 2023 के दौरान देश में 21,672 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले प्राथमिक जंगलों की हानि हुई है। वहीं 2022 में यह आंकड़ा 21,839 हेक्टेयर दर्ज किया गया था। वहीं 2001 से 2023 के आंकड़ों पर गौर करें तो इस दौरान भारत ने 23.3 लाख हेक्टेयर में फैले वृक्ष आवरण खो दिए हैं, जो 2000 के बाद से वृक्ष आवरण में आई छह फीसदी की गिरावट के बराबर है।
आंकड़ों में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि 2013 से 2023 के बीच, भारत में वृक्ष आवरण को हुआ 95 फीसदी नुकसान प्राकृतिक जंगलों के भीतर हुआ है।
देखा जाए तो यह जंगल न केवल हमारे पर्यावरण बल्कि जैवविविधता को बचाए रखने के लिए भी बेहद जरूरी हैं। यह पेड़-पौधों और जीवों की विविधता को बचाए रखने के साथ मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखने में भी मददगार होते हैं। इतना ही नहीं यह धरती पर फिल्टर की तरह काम करते हैं और वायु और जल गुणवत्ता को बनाए रखते हैं।
इसके साथ ही जलवायु में जिस तरह से बदलाव आ रहे हैं उन्हें नियंत्रित करने और बढ़ते उत्सर्जन को अवशोषित करने में भी इन जंगलों की बड़ी भूमिका है। ऐसे में यदि बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित रखना है तो इन जंगलों को बचाना बेहद अहम है।
वैश्विक स्तर पर जिस तरह से इन जंगलों का सफाया हो रहा है और भूमि उपयोग में बदलाव आ रहा है, वो ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन में भी योगदान दे रहा है। शोधकर्ताओं के मुताबिक 2023 में वन क्षेत्रों को जो नुकसान पहुंचा है वो करीब 240 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के बराबर है, जो अमेरिका में जीवाश्म ईंधन से होते वार्षिक उत्सर्जन का करीब-करीब आधा है।