एक नए अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के मुताबिक हाल के दशकों में लोगों ने जिस तरह से भूमि के उपयोग में बदलाव किया है, उसके कारण दुनिया भर में प्रवासी पक्षियों की संख्या घट रही है।
अध्ययन से पता चलता है कि उन प्रजातियों की आबादी में सबसे अधिक गिरावट देखी जा रही है जहां लोगों से संबंधित बुनियादी ढांचे में अधिक विकास हो रहा हैं। जहां सड़कों का निर्माण, इमारतों, बिजली की लाइनों, विंड टरबाइन लगाई जा रही है उन हिस्सों में अधिकतर उनकी आबादी रहती है, जो अब खतरे में है।
शोधकर्ताओं ने कहा इसके साथ-साथ आवासों के नष्ट होने और जलवायु परिवर्तन भी इनके गिरावट के लिए जिम्मेवार है। यह अध्ययन पूर्वी एंग्लिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।
शोध दल ने कहा कि उन्हें यह उम्मीद है कि उनके इस नए अध्ययन से यह जानने में मदद मिलेगी कि संरक्षण के प्रयासों को सबसे अच्छे तरीके से कैसे अपनाया जाए।
यूईए स्कूल ऑफ एनवायर्नमेंटल साइंसेज के शोधकर्ता डॉ जेम्स गिलरॉय ने कहा कि हम जानते हैं कि प्रवासी पक्षियों के बिना-प्रवासी प्रजातियों की तुलना में अधिक गिरावट देखी जा रही है, लेकिन ऐसा क्यों है, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है।
शोधकर्ताओं ने कहा हम यह पता लगाना चाहते थे कि उनके जीवन चक्र में ये प्रवासी प्रजातियां मानवजनित प्रभावों से सबसे अधिक कैसे प्रभावित हैं।
शोध टीम ने प्रवासी पक्षियों के लिए 16 मानवजनित खतरों का पता लगाया, जिसमें पक्षी के लिए शोरगुल और टकराव से जुड़े बुनियादी ढांचे, प्राकृतिक आवास से लोगों के भूमि उपयोग के लिए इसमें बदलाव और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं।
उपग्रह चित्रों की मदद से टीम ने यूरोप, अफ्रीका और एशिया में 16 खतरों में से प्रत्येक के लिए खाका तैयार किया। टीम ने पूरे क्षेत्र में शिकार किए जाने का पहला बड़े पैमाने पर खाका भी बनाया।
प्रवासी पक्षियों की कुल 103 प्रजातियों का अध्ययन किया गया, जिनमें बड़े पैमाने पर डेटासेट का उपयोग करके कछुआ कबूतर और आम कोयल जैसी कई तेजी से घटती प्रजातियां शामिल हैं।
टीम ने प्रजनन स्थानों के साथ-साथ बिना प्रजनन वाली श्रेणियों में आवासों का नुकसान और जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों के लिए 'खतरे के स्कोर' की गणना भी की। फिर उन्होंने पैन-यूरोपियन कॉमन बर्ड मॉनिटरिंग स्कीम (पीईसीबीएमएस) द्वारा 1985 से 2018 तक गणना किए गए इन खतरे के स्कोर और पक्षी आबादी के रुझानों के बीच संबंधों का पता लगाया।
यूईए स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज के डॉ सी, लायरे बुकान ने कहा हमने पाया कि यूरोप, अफ्रीका और पश्चिमी एशिया में पक्षियों के वितरण रेंज में लोगों द्वारा किए गए बदलाव 100 से अधिक एफ्रो-यूरेशियन प्रवासी पक्षियों की घटती संख्या से जुड़ा हुआ है।
शोधकर्ता ने बताया कि जब हम परिदृश्य में बदलाव के बारे में बात करते हैं, तो हमारा मतलब सड़कों, इमारतों, बिजली की लाइनों, विंड टरबाइन जैसी चीजों से होता है, जो प्राकृतिक रूप से पहले से मौजूद नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि सबसे बड़े प्रभाव उन चीजों के कारण पड़ता है जो पक्षीयों को एकमुश्त मार देते हैं, उदाहरण के लिए एक विंड टरबाइन के आस-पास उड़ना, इमारत, बिजली की लाइन से लगने वाला बिजली का झटका, किसी वाहन की चपेट में आना या शिकार किया जाना आदि हैं।
शोधकर्ताओं ने पाया कि इन मानवजनित 'प्रत्यक्ष मृत्यु दर' के खतरों के संपर्क में पक्षी की सर्दियों की श्रेणियों में प्रजनन करने वाली पक्षियों की आबादी में कमी होती है।
यूईए के स्कूल ऑफ एनवायर्नमेंटल साइंसेज से डॉ एल्डिना फ्रैंको ने भी कहा हमारे निष्कर्ष महत्वपूर्ण हैं क्योंकि हमें यह समझने की जरूरत है कि मनुष्यों द्वारा उनके मौसमी प्रवास को नुकसान पहुंचाने वाली प्रजातियां सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही हैं।
इससे यह पता चलता है कि पक्षियों को इन खतरों द्वारा सबसे ज्यादा प्रभावित किया जाता है, इनमें सुधार कर हमें संरक्षण कार्य मदद मिल सकती है। यह अध्ययन ग्लोबल इकोलॉजी एंड बायोजियोग्राफी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।