किस तरह हुआ दूध और शहद की भूमि कही जाने वाली उत्तरी तिब्बत का विकास

यह अध्ययन समझने के लिए महत्वपूर्ण है कि पूर्वी एशिया के पहाड़ी इलाकों और वहां की जैव विविधता, जलवायु तथा इस उल्लेखनीय समृद्ध क्षेत्र का विकास कैसे हुआ
किस तरह हुआ दूध और शहद की भूमि कही जाने वाली उत्तरी तिब्बत का विकास
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एक नए अध्ययन ने पहली बार दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों में से एक की उत्पत्ति का खुलासा किया है। यह उस तंत्र के बारे में बताता है जिसने पहाड़ों का विकास किया, साथ ही इस बारे में पता लगाया कि कैसे मौसम के साथ-साथ इसके वनस्पतियों और जीवों का विकास हुआ।

पहले यह माना गया था कि दक्षिणी तिब्बत और हिमालय, पूर्वी एशिया की बंजर भूमि को हरे-भरे जंगलों और तटीय क्षेत्रों में बदलने में सहायक थे, जो दुनिया के कुछ दुर्लभ प्रजातियों सहित पौधों, पशुओं और समुद्री जीवों का घर बन गया। लेकिन नए निष्कर्ष, इसके विपरीत हुए परिवर्तनों के बारे में बताते हैं, जहां उत्तरी तिब्बत ने अधिक प्रभावशाली भूमिका निभाई, जो 5 करोड़ से अधिक साल पहले शुरू हुई थी।

वैज्ञानिकों ने वनस्पति और पौधों की विविधता के बारे में पता लगाने के लिए एक अभिनव जलवायु मॉडल का इस्तेमाल किया, जो कि इस नए जैव विविधता हॉटस्पॉट का पता लगाने तथा नए जीवाश्म के साथ संयुक्त रूप से विकसित हुआ।ं

ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल में वैज्ञानिक और प्रमुख अध्ययनकर्ता डॉ. शुफेंग ली और चीन के युन्नान में क्सिशुआंगबन्ना ट्रॉपिकल बोटैनिकल गार्डन (एक्सटीबीजी) संस्थान में एसोसिएट प्रोफेसर ने कहा कि अब तक इसके बारे में जानकारी नहीं थी कि यहां की जलवायु किस तरह बदली, एक शुष्क, लगभग मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र जैसा नमी वाली पारिस्थितिकी तंत्र, जहां पौधे, जानवर और समुद्री जीवों का एक विशाल समूह पाया जाता है, जिसमें दुनिया की कुछ दुर्लभ प्रजातियां भी शामिल हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने विभिन्न तिब्बती स्थलाकृतियों का उपयोग करते हुए 18 संवेदनशील प्रयोगों का आयोजन किया, जो कि नए युग के परिस्थितियों के लिए पिछले कई लाख सालों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो लगभग सभी संभव तिब्बती विकास परिदृश्यों के बारे में पता लगाते हैं। यह अध्ययन साइंस एडवांस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

निष्कर्षों से पता चला है कि लगभग 2.3 से 4 करोड़ वर्ष पूर्व से लेकर आज तक तिब्बत के उत्तर और उत्तरपूर्वी हिस्से में वृद्धि जैव विविधता के विकास में सबसे महत्वपूर्ण कारक रही, क्योंकि पूर्वी एशिया में वर्षा, विशेष रूप से सर्दियों की बारिश में वृद्धि हुई थी, जहां पहले शुष्क सर्दियां होती थी।

इस तरह यहां एक स्थिर, नमी और गर्म जलवायु का विकास हुआ, जोकि बड़े-बड़े और अलग-अलग तरह के पौधों और जानवरों की प्रजातियों के विकास के लिए अनुकूल था। यह आज भी एक अरब से अधिक लोगों को ताजे पानी की आपूर्ति और जीवन रक्षक दवाइयों के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री प्रदान करने वाले जैव विविधता हॉटस्पॉट के रूप में जाना जाता है। यहां दुर्लभ प्रजातियां बंदर, बाघ, तेंदुआ, भालू, लोमड़ी, मोंगोज, हेजहोग, सील, डॉल्फिन और समुद्री शेर इस पारिस्थितिकी तंत्र में रहते हैं।

पहले के शोधों ने मुख्य रूप से दक्षिण में तिब्बती पर्वत निर्माण के प्रभाव के बारे में पता लगया, जब भारत के पर्वत लगभग 5.5 करोड़ साल पहले एशिया से टकराया था, जिससे हिमालय पर्वत और अंततः विशाल तिब्बती पठार बना था। हालांकि, हाल ही में पता चला है कि आधुनिक तिब्बती पठार का निर्माण जटिल था और मूल रूप से केवल एक चट्टान के रूप में इसकी वृद्धि नहीं हुई थी।

ब्रिस्टल विश्वविद्यालय में भौतिक भूगोल के प्रोफेसर सह अध्ययनकर्ता प्रोफेसर पॉल वैलेड्स, जिन्होंने मॉडलिंग समूह का नेतृत्व किया, ने कहा अधिकांश पिछले अध्ययनों ने दक्षिणी तिब्बत और हिमालय पर अधिक ध्यान दिया, लेकिन हमारे परिणाम यह संकेत देते हैं कि यह उत्तरी तिब्बत का विकास वास्तव में महत्वपूर्ण है।

उत्तरी तिब्बत की स्थानीय आकृति चीन के दक्षिणी हिस्से में पूर्वी एशियाई सर्दियों की मानसूनी हवाओं को कम करती है, जिससे पूर्वी एशिया में नमी वाली सर्दिया होती हैं और इससे वनस्पति और जैव विविधता का विस्तार होता है।

लोककथाओं में भी इस क्षेत्र को अपार उत्पादकता के कारण 'मछली और चावल की भूमि' के रूप में जाना जाता है। प्रोफेसर वाल्ड्स ने बताया कि उत्तरी तिब्बती पहाड़ों के विकास के बिना, यहां कुछ भी मौजूद नहीं रह सकता है।

लाखों वर्षों से टेक्टोनिक चट्टानों और स्थिर जलवायु परिस्थितियों के एक अनोखे संग्रह ने दक्षिण पूर्व एशिया के इन दुर्लभ प्रजातियों के विकास में अहम भूमिका निभाई है। हालांकि इस अनोखे पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के लिए ग्लोबल वार्मिंग, हानिकारक कृषि तकनीक, वनों को काटने से बचाने और एकीकृत संरक्षण करना होगा तथा पर्यावरण की सुरक्षा करनी होगी, ऐसा न होने पर एक बार इसका नाश हो गया, तो यह कभी दुबारा पहले जैसा नहीं होगा।  

जीवाश्म विश्लेषण का नेतृत्व करने वाले चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज के एक्सटीबीजी के प्रोफेसर झीकुन झोउ ने कहा कि प्रभावी तरीके से उत्तरी तिब्बती विकास के बिना, पूर्वी एशिया में यह 'दूध और शहद की भूमि' नहीं बचेगी। यह अध्ययन यह समझने में महत्वपूर्ण है कि पहाड़ी इलाकों और विभिन्न पौधों का जीवन तथा इस उल्लेखनीय समृद्ध क्षेत्र का गठन कैसे हुआ।  

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